Friday, April 19, 2024
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आज़ादी के 14 साल बाद गोवा यूं बना था भारत का 25वां राज्य 

30 मई को गोवा अपना स्थापना दिवस मनाता है दरअसल 30 मई 1987 को गोवा को पूर्ण राज्य का दर्ज़ा दिया गया था भारत के आज़ादी के 14 साल बाद तक गोवा पुर्तगाल के अधीन था 19 दिसंबर 1961 में भारत ने गोवा को पुर्तगाल से आज़ाद कराया था इस वजह से गोवा में 19 दिसंबर को मुक्ति दिवस मनाया जाता है

परिचय

गोवा क्षेत्रफल के हिसाब से भारत का सबसे छोटा राज्य है और जनसँख्या की दृष्टि से चौथा सबसे छोटा राज्य है पुरे विश्व में अपने खूबसूरत तट और वास्तु-कला के लिए मशहूर है गोवा पुर्तगाल का एक उपनिवेश था पुर्तगाल ने लगभग गोवा पर 450 साल तक हुकूमत किया बाद में 1961 में भारत को सौंप दिया

गाओ का इतिहास

महाभारत में गोवा का ज़िक्र गोपराष्ट्र यानी गाय चरानेवालों के देश के रूप में मिलता है वही दक्षिण कोंकण क्षेत्र का गोवाराष्ट्र के रूप में पाया जाता है। संतस्कृ के कुछ अन्य पुराने स्रोतों में गोवा को गोपकपुरी और गोपकपट्टन कहा गया है जिनका उल्लेख अन्य ग्रंथों के अलावा हरिवंशम और स्कंद पुराण में मिलता। गोवा को कहीं कहीं गोअंचल भी कहा गया है। अन्य नामों में गोवे, गोवापुरी, गोपकापाटन औरगोमंत प्रमुख हैं। टोलेमी ने गोवा का उल्लेख वर्ष 200 के आस-पास गोउबा के रूप में किया है। अरब के मध्युगीन यात्रियों ने इस क्षेत्र को चंद्रपुर और चंदौर के नाम से इंगित किया है जो मुख्य रूप से एक तटीय शहर था। जिस स्थान का नाम पुर्तगाल के यात्रियों ने गोवा रखा वह आज का छोटा सा समुद्र तटीय शहर गोआ-वेल्हा है। बाद में उस पूरे क्षेत्र को गोवा कहा जाने लगा जिस पर पुर्तगालियों ने कब्जा किया। गोवा के इतिहास की शुरुआत तीसरी सदी इसा पूर्व से प्रारंम्भ होता है जब यहां मौर्य वंश के शासन की शुरुआत हुई थी। बाद में पहली सदी के शुरुआत में इस पर कोल्हापुर के सातवाहन वंश के शासकों का अधिकार स्थापित हुआ और फिर बादामी के चालुक्य शासकों ने इस पर वर्ष 580 से 750 तक शासन किया। इसके बाद  इस पर कई अलग अलग शासकों ने अधिकार किया। वर्ष 1312 में गोवा पहली बार दिल्ली सल्तनत के अधीन हुआ लेकिन उन्हें विजयनगर के शासक हरिहर प्रथम द्वार वहां से खदेड़ दिया गया। अगले सौ सालों तक विजयनगर के शासकों ने यहां शासन किया और 1469 में गुलबर्ग के बहामी सुल्तान द्वारा  फिर से दिल्ली सल्तनत का अधीन बन गया। बहामी शासकों के पतन के बाद बीजापुर के आदिल शाह का यहां कब्जा हुआ जिसने गोआ-वेल्हा को अपनी दूसरी राजधानी बनाया। इस शहर पर मार्च 1510 में अलफांसो-द-अल्बुकर्क के नेतृत्व में पुर्तगालियों ने आकर्मण शुरू कर दिया। बिना किसी संघर्ष के गोवा को अपने कब्ज़े में ले लिया। पुर्तगालियों को गोवा से दूर रखने के लिए यूसूफ आदिल खां ने हमला किया। शुरू में उन्होंने पुर्तगाली सेना को रोक तो दिया लेकिन बाद में अल्बुकर्क ज्यादा बड़ी सेना के साथ लौटे और एक विरोधी अवसाद पर विजय प्राप्त कर उन्होंने शहर पर फिर से कब्जा कर लिया और एक हिन्दू तिमोजा को गोवा का प्रशासक नियुक्त किया। गोवा पूर्व दिशा में पुरे पुर्तगाली साम्राज्य की राजधानी बना  गया। इसे पुर्तगाल के नागरिक के समान अधिकार दिए गए और 1575 से 1600 के बीच यह तरक्की के उच्चतम शिखर पर पहुंचा।1809-1815 के बीच नेपोलियन ने पुर्तगाल पर कब्जा कर लिया और एंग्लो पुर्तगाली गठबंधन के बाद गोवा स्वयं ही अंग्रेजो के अधीन होगया। 1815 से 1947 तक गोवा में अंग्रेजों ने शासन किया और पूरे हिंदुस्तान की तरह अंग्रेजों ने वहां के भी संसाधनों का जमकर शोषण किया। आजादी के समय पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अंग्रेजों से यह मांग रखी थी गोवा को भारत के अधिकार क्षेत्र  में दे दिया जाए। वहीं पुर्तगाल ने भी गोवा पर अपना दावा ठोक दिया। अंग्रेजों की दोहरी नीति व पुर्तगाल के दबाव के कारण गोवा पुर्तगाल को सौंप दिया। गोवा पर पुर्तगाली अधिकार का तर्क यह दिया गया था कि गोवा पर पुर्तगाल के अधिकार के समय कोई भारत मौजूद ही नहीं था।

गोवा का स्वतंत्रता आंदोलन 1928 में शुरू हुआ जब गोवा के राष्ट्रवादियों ने मिलकर 1928 में मुंबई में ‘गोवा कांग्रेस समिति’ का गठन किया। गोवा कांग्रेस समिति के अध्यक्ष डॉ.टी.बी.कुन्हा थे। डॉ. टी. बी. कुन्हा को गोवा के राष्ट्रवाद का जनक माना जाता है। दो दशक तक लगभग गोवा का स्वतंत्रता आंदोलन थोड़ा धीमा रहा। 1946 में स्वतंत्रता सेना और प्रमुख समाजवादी नेता डॉ.राम मनोहर लोहिया के गोवा पहुंचने से आंदोलन को नई दिशा मिलती है। उन्होंने नागरिक अधिकारों के हनन के विरोध में गोवा में सभा करने की चेतावनी दे डाली। मगर इस विरोध का दमन करते हुए उनको गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।

तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और रक्षा मंत्री कृष्ण मेनन के बार-बार आग्रह के बावजूद पुर्तगाली भारत को छोड़ने तथा झुकने को तैयार नहीं हुए। उस समय दमन-दीव भी गोवा का हिस्सा था। जब पुर्तगाली ने पंडित जवाहर लाल नेहरू के आग्रह को नहीं माना तो अंत में भारत के पास ताकत का इस्तेमाल करने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था। 1954 के मध्य में गोवा के राष्ट्रवादियों ने दादर और नगर हवेली की बस्तियों पर कब्जा कर लिया और भारत समर्थक प्रशासन की स्थापना की। 1961 में भारतीय सेना के तीनों अंगों को युद्ध के लिए तैयार हो जाने के आदेश मिले। मेजर जनरल के.पी. कैंडेथ को ’17 इन्फैंट्री डिवीजन’ और ’50 पैरा ब्रिगेड’ का प्रभार मिला। भारतीय सेना की तैयारियों के बावजूद पुर्तगालियों पर किसी भी प्रकार का असर नहीं पड़ा। भारतीय वायु सेना के पास उस समय छह हंटर स्क्वॉड्रन और चार कैनबरा स्क्वाड्रन थे।

गोवा अभियान में हवाई कार्रवाई की जिम्मेदारी एयर वाइस मार्शल एरलिक पिंटो के पास थी। भारतीय सेना ने 2 दिसंबर को ‘गोवा मुक्ति’ अभियान शुरू कर दिया। वायु सेना ने 8और 9 दिसंबर को पुर्तगालियों के ठिकाने पर अचूक बमबारी की। भारतीय थल सेना और वायु सेना के हमलों से पुर्तगाली हैरान हो गए। इस तरह 19 दिसंबर, 1961 को तत्कालीन पुर्तगाली गवर्नर मैन्यू वासलो डे सिल्वा ने भारत के सामने समर्पण समझौते पर दस्तखत कर दिए। इस तरह भारत ने गोवा और दमन दीव को मुक्त करा लिया और वहां से पुर्तगालियों के 451 साल पुराने औपनिवेशक शासन को खत्म कर दिया। पुर्तगालियों को जहां भारत के हमले का सामना करना पड़ रहा था, वहीं दूसरी ओर उन्हें गोवा के लोगों का क्रोध भी झेलना पड़ रहा था।

बाद में गोवा में चुनाव हुए और 20 दिसंबर, 1962 को श्री दयानंद भंडारकर गोवा के पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री बने। गोवा और महाराष्ट्र को एक करने की भी बात चली, क्योंकि गोवा महाराष्ट्र के पड़ोस में ही स्थित था। वर्ष 1967 में वहां जनमत संग्रह हुआ और गोवा के लोगों ने केंद्र शासित प्रदेश के रूप में रहना पसंद किया। बाद में 30 मई, 1987 को गोवा को पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया गया और इस प्रकार गोवा भारतीय गणराज्य का 25वां राज्य बना।

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