कपास की कालाबाज़ारी और सट्टेबाज़ी से टूट रही है कपड़ा उद्योग की कमर,CITI दे रही है सरकार को झूठी रिपोर्ट : डॉ रिखब चंद जैन


दिल्ली दर्पण ब्यूरो 

दिल्ली। भारतीय गारमेंट इंडस्ट्री भी कालाबजारी और सट्टेबाजों की वजह से भारी संकट के दौर से गुजर रही है। कोरोना महामारी और कारोबार में मंडी के चलते एक तरफ जहाँ उपभोक्ताओं की जेब खाली है वहीँ गारमेंट्स  की कीमतें आसमान छू रही है। बाजार में कपड़ों की मांग नहीं है , एक्सपोर्ट नहीं हो रहा है। जिसके चलते यह इंडस्ट्री भारी संकट के दौर से गुजर रही है। देश के बड़े उघोगपति इस संकट की वजह विदेशी कपंनियों की शह पर हो रही कपास की कालाबाजारी और सट्टेबाजी को मान रहे है। देश के जाने माने गारमेंट कारोबारी डॉ रिखब चंद जैन ने अभी  अपैरल एक्सपोर्ट प्रमोशन कॉउन्सिल व  हौजरी, गारमेंट, इंडस्ट्री से जुड़े सभी एसोसिएशन और संस्थाओं को पत्र लिखकर सीआईटीआई (CITI ) द्वारा केंद्रीय मंत्री पियूष गोयल को दी गयी रिपोर्ट को भी झूठी और अफवाहों और सट्टेबाजों को मदद करने वाली बताया है।

white gold kapas

इस रिपोर्ट पर चिंता और हैरानी व्यक्त करते हुए डॉ रिखब चंद जैन ने तुरंत इस पर कार्रवाई करने की मांग की है। टेक्सटाइल इंडस्ट्री के विशेषज्ञ व कई मंचों पर महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके डॉ रिखब चंद जैन कहा कि टेक्सटाइल इंडस्ट्री में भी परस्पर मतभेद स्वभाविक है लेकिन इस आड़ में इंडस्ट्री से जुड़े किसी भी पक्ष को गलत जानकारी और गुमराह करने वाले तथ्य  नहीं देना चाहिए। उन्होंने CIIT द्वारा विगत सप्ताह कपड़ा, वाणिज्य और रेल मंत्री पियूष गोयल को दी गयी उस रिपोर्ट को झूठी और भ्रामक बताया है जिसमें कहा गया है कि सूत की लागत का 55 से 60 प्रतिशत और यार्न लागत का 20 से 25 प्रतिशत परिधान निर्मित लागत का हिस्सा है। 

डॉ रिखब चंद जैन ने कहा कि कपडे की कीमतों में हुयी बेहताश वृद्धि में कपास की अनावश्यक बड़ी कीमतें है। उन्होंने हैरानी व्यक्त करते हुए कहा कि देश और दुनिया में कपास की फसलों को कोई नुकशान नहीं हुआ है। बल्कि कॉटन की पैदावार पिछले वर्ष की तुलना में कही ज्यादा है। कॉटन का स्टॉक भी इतना ज्यादा है कि शायद ही पहले कभी हुआ हो। उसके बावजूद भी कपास की कीमतें आसमान छू रही है। सट्टेबाज और कालाबाज़ारी अपनी मोती कमाई के लिए पूरी कॉटन टेक्सटाइल चैन और इंडस्ट्री को तबाह करने में लगे हुए है।निर्यात और आयत करने वालों सहित गारमेंट इंडस्ट्री से जुड़ा है कारोबारी रो रहा है , चिल्ला रहा है लेकिन उनकी सुनाने वाला कोई नहीं है। कौन कब और कैसे इस पर संज्ञान लेगा पता नहीं है। 

डॉ रिखब चंद जैन ने कहा कि कपड़ों के दामों में बढ़ोतरी बुनाई और बुनाई प्रक्रिआ के बीच कीमतों के अंतर् से बढ़ रही है। उन्होंने कताई मिल एसोसिएशन और CITI सरकार को गलत जानकारी दे रही है कि यार्न की कीमत केवल 20 से 25 प्रतिशत बढ़ी है। CITI टेक्सटाइल इंडस्ट्री की शीर्ष निकाय नहीं है बल्कि भारतीय कपड़ा मिल संघ का नया रूप है। डॉ जैन ने गारमेंट , हौजरी ,मेड उप और खादी हथकरघा सहित फेब्रिक निर्माताओं से अपील की है कि वे इस बेवजह बढ़ रही कपास की कीमतों में बढ़ोतरी का विरोध करें। सरकार भी सट्टेबाजी पर लगाम लगाए और उचित करवाई करे। कपड़ा उद्योग को परेसान न करे। यह उद्योग भारत की आत्मा है। 

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