Women Empowerment : तो अब आरएसएस की शाखाओं में भी दिखाई देंगी महिलाएं ?

women empowerment : नागपुर में होने वाले दशहरा कार्यक्रम में पर्वतारोही संतोष यादव को बनाया गया है मुख्य अतिथि

सी.एस. राजपूत  

आरएसएस ने इस बार दशहरा कार्यक्रम में नागपुर में हर साल होने कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में पर्वतारोही संतोष यादव को बुलाया है। आरएसएस के इतिहास में यह पहली बार हो रहा है कि कोई महिला नागपुर में होने वाले कार्यक्रम में मुख्य अतिथि बनाई गई हैं। यह माना जा रहा है कि भाजपा के महिला मतदाताओं के बीच पैठ बनाने के मद्देनजर आरएसएस द्वारा बढ़ाया गया यह कदम है। तो क्या आरएसएस अब अपने संगठन में भी महिलाओं को तवज्जो देगा। दरअसल गत दिनों संघ महासचिव दत्तात्रेय होसाबले संगठन की बैठक में महिलाओं की भागीदारी में कमी पर खेद व्यक्त कर चुके हैं। दरअसल संतोष यादव मूल रूप से हरियाणा की रहने वाली हैं। वह दो बार माउंट फतह करने वाली पहली महिला हैं। उन्हें २००० में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। वैसे भी हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं।

दरअसल आरएसएस की छवि पुरुषों के संगठन के रूप में रही है। आरएसएस के संगठन और शाखाओं में महिलाओं की संख्या न के बराबर रही है। संगठन में महिलाओं को तवज्जो न देने की वजह से आरएसएस कई बार कई राजनीतिक दलों के निशाने पर रहा है। ऐसा माना जा रहा है कि संगठन में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की दृष्टि से दशहरा कार्यक्रम में संतोष यादव को आमंत्रित किया है। वैसे भी संघ के कुटुम्ब प्रबोधन कार्यक्रम का उद्देश्य परिवार और समाज के मूल्यों का प्रसार करना है। जिस पर संघ द्वारा नए सिरे से ध्यान केंद्रित किया गया है। दरअसल आरएसएस अपने कार्यक्रमों में मुख्य अतिथि के रूप में विभिन्न क्षेत्रों और राजनीतिक स्पेक्ट्रम के लोगों को आमंत्रित करता रहा है। जून २०१८ में नागपुर में आयोजित एक कार्यक्रम के समापन समारोह के लिए संघ ने दिवंगत पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को आमंत्रित किया था।
यदि आरएसएस के इतिहास की बात करें तो संघ ने अलग-अलग तरीकों से दलितों, आदिवासियों, महिलाओं और श्रमिकों को अपने से जोड़ा। हालांकि संघ पर इन सबके हितों के लिए कोई जगह न होने का भी आरोप लगता रहा है। यह अपने आप में दिलचस्प है कि संघ अपने कार्यक्रमों में महिलाओं को तवज्जो देने से बचता रहा है। संघ में महिलाओं की भूमिका पर कितने विद्तापूर्ण अध्ययन हुए हैं। इन अध्येताओं ने संघ के साहित्य, उसके चिंतकों के विचारों और उसके शीर्ष पदाधिकारियों के वक्तव्यों के आधार पर महिलाओं के संबंध में संघ की नीति का अध्ययन किया है।  वैसे संघ भारत की कल्पना एक स्त्री यानी कि भारत माता के रूप में करता है। संघ की मान्यता है कि महिलाएं देश के सम्मान का प्रतीक हैं और उन्हें बलात्कार आदि से अपवित्र करने वाले दुश्मन को नष्ट कर दिया जाना चाहिए।

संघ का राष्ट्र का आख्यान और परिकल्पना तय करती है कि राष्ट्र और समाज में महिलाओं को पत्नी और माता के रूप में देखा जाता है और यह माना जाता है कि परिवार में उनकी प्रमुख भूमिका है। संघ की सोच महिलाओं को घर की चारदीवारी के भीतर रहने की रही है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि फिर इतनी बड़ी संख्या में महिलाएं संघ की विचारधारा की अनुयायी कैसे हो गई हैं ? दरअसल संघ हिन्दू राष्ट्र और हिन्दुत्व के लिए महिलाओं का योगदान चाहता है। हालांकि संघ महिलाओं को आत्मरक्षा और हथियार चलाने का प्रशिक्षण देने की पैरवी करता रहा है। संघ यह भी बताता है कि परिवार में किन विषयों पर चर्चा हो सकती है। परिजन अपने पूर्वजों देवी-देवताओं, संस्कृति, धर्म और देशभक्ति पर आपस में चर्चा कर सकते हैं। ये वचन कुटुंब प्रबोधन परियोजना के सह संयोजक रविन्द्र जोशी के हैं। परिवार के अंदर भी लैंगिक भूमिकाएं सुपरिभाषित हैं और लीक से हटकर चलने को प्रोत्साहित नहीं किया जाता। प्रत्येक महिला चाहे वह ग्रहणी हो या कामकाजी सबकी प्राथमिक भूमिका माता की है।  
 

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