Thursday, April 25, 2024
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RSS : तुर्की के सुल्तान के पक्ष में मुस्लिमों के चल रहे खिलाफत आंदोलन का समर्थन करने से महात्मा गांधी के विरोध में था आरएसएस ?

अंग्रेजों के द्वारा तुर्की के सुल्तान को अपदस्थ करने पर दुनियाभर के मुस्लिमों ने अंग्रेजों के खिलाफ छेड़ दिया था खिलाफत आंदोलन, भारतीय मुस्लिमों के इस आंदोलन के समर्थन में खड़े हो गये थे गांधी भी, खिलाफत आंदोलन और जलियांवाला बाग हत्याकांड के खिलाफ असहयोग आंदोलन को राष्ट्रवाद के उत्साह को ठंडा होने रूप में देख रहे थे डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार

सी.एस. राजपूत
आरएसएस पर कांग्रेस के साथ ही दूसरे कई दल अंग्रेजों का साथ देने का आरोप लगाते हैं। आरएसएस पर स्वतंत्रता संग्राम में भाग न लेने का आरोप भी लगता रहा है। आरएसएस के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार पर तो मुस्लिमों को यवन सर्प कहने का आरोप लगता है। देश में आरएसएस के प्रति एक धारणा है कि आरएसएस मुस्लिमों के प्रति नफरत का भाव रखता रहा है। इसके पीछे लोग आरएसएस के हिन्दू राष्ट्र मुद्दे को मानते हैं। हालांकि मौजूदा आरएसएस के सर संघचालक मोहन भागवत आरएसएस के प्रति इस धारणा को बदलने का प्रयास कर रहे हैं। किसी कार्यक्रम में वह सभी मंदिर में शिव लिंग न ढूंढने की बात करते हैं तो किसी कार्यक्रम में यह कहते हैं कि यदि कोई व्यक्ति मुस्लिमों को यहां से जाने की बात करता है तो वह हिन्दू नहीं हो सकता। मोहन भागवत एक संदेश देने के लिए मस्जिदों के इमामों से भी मिले थे। ईसाइयों के लिए भी उनके द्वारा क्रिसमस डे पर भोज समारोह के आयोजित करने की बात सामने आई थी।

दरअसल आरएसएस का मानना रहा है कि मुगलों ने बाहर से आकर देश पर लंबे समय तक राज गया। अंग्रेजों ने ही देश से मुस्लिमों का राज खत्म किया है। आरएसएस का मानना रहा है कि मुस्लिमों के शासन के चलते देश हिन्दू राष्ट्र नहीं बन सकता है। शायद यही वजह रही हो कि आरएसएस मुस्लिमों से ज्यादा अंग्रेजों को पसंद करता हो। पर जमीनी हकीकत यह भी है कि यदि आज आरएसएस और जनसंघ से निकली भारतीय जनता पार्टी देश पर राज कर रही है तो यह देश के आजाद होने के बाद ही संभव हो पाया है और आजादी की लड़ाई हिन्दू और मुस्लिम दोनों ने मिलकर लड़ी थी।


ऐसे में प्रश्न उठता है कि आखिरकार आरएसएस पर मुस्लिम विरोधी होने का आरोप क्यों लगता है ? दरअसल आरएसएस के सर संघचालकों के के विचार समय-समय पर बदलते रहे हैं। आरएसएस के संस्थापक केशव बलिराम 27 सितंबर 1925 को जब आरएसएस की स्थापना की उस दौर में खिलाफत आंदोलन चला था। हेडगेवार इस आंदोलन के लिए खिलाफ थे। दरअसल खिलाफत आंदोलन तुर्की के सुल्तान को अंग्रेजों द्वारा अपदस्थ करने के विरोध में शुरू हुआ था। दुनिया भर के मुसलमान तुर्की के सुल्तान को अपना खलीफा मानते थे। इन मुसलमानों में भारत के मुसलमान भी थे। जब महात्मा गांधी ने खिलाफत आंदोलन का समर्थन किया और साथ ही रॉलेक्ट एक्ट पंजाब में मार्शल लॉ लागू करने और जलियांवाला बाग हत्याकांड के खिलाफ असहयोग आंदोलन छेड़ दिया तो बलिराम हेडगेवार को लगा कि इससे भारतीय का राष्ट्रवाद ठंडा पड़ रहा  है। हेडगेवार के खिलाफत आंदोलन के पक्ष में इसलिए नहीं थे क्योंकि वह आंदोलन एक मुस्लिम शासक के समर्थन में चल रहा था। गांधी जी के इस आंदोलन के समर्थन करने करने की वजह से ही उनका विरोध गांधी जी से भी रहा होगा।

हालांकि जलियांवाला बाग हत्याकांड के खिलाफ चले असहयोग आंदोलन से यदि उनको दिक्कत थी तो यह हर स्तर से उनके खिलाफ जाता है। क्योंकि देश में जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद भी यदि किसी संगठन के मन में अंग्रेजों के प्रति हमदर्दी रही और राष्ट्रवाद की बात करने वाला संगठन इस कांड का विरोध न कर सका तो उसकी देशभक्ति पर उंगली उठना जायज है। हालांकि प्रथम विश्व युद्ध के बाद तुर्क साम्राज्य विभाजित हो गया और तुर्की के सुल्तान खलीफा को सत्ता से हटा दिसया गया।  आरएसएस भारतीय मुस्लिमों का आजादी की लड़ाई के शुरुआत में ही तुर्की के सुल्तान की वजह से अंग्रेजों के खिलाफ में मुस्लिमों के आंदोलन करने और इस आंदोलन का गांधी जी का समर्थन करने की वजह भी आरएसएस का गांधी जी विचारधारा से मेल न खाना रहा हो।


हेडगेवार की जीवन लिखने वाले सीपी भाषकर ने यह बात अपनी किताब में लिखी भी थी। उन्होंने लिखा है कि महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से हेडगेवार को देश में राष्ट्रवाद के ठंडा पड़ने की आशंका होने लगी थी। हेडगेवार का कहना था कि सामाजिक जीवन की वह सभी बुराइयां जो उस आंदोलन से उत्पन्न हुई थीं वे भयानक रूप ले रही थीं।  चारों ओर व्यक्तिगत कलह होने लगी थी। विभिन्न समुदायों के बीच संघर्ष शुरू हो गया था। ब्राह्मण हद गैर ब्राह्मण संघर्ष ने बड़ा रूप ले लिया था। यह वह दौर था कि कोई संगठन एकीकृत या एकजुट काम नहीं कर रहा था। हेडगेवार का कहना था कि असहयोग के दूध पर पाले हुए यवन सांप मतलब मुस्लिम देश में दंगे भड़का रहे थे। हेडगेवार संघ के सरसंघचालक 1940 तक रहे। हेडगेवार के बाद संघ के दूसरे सर संघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर बने। उनका कार्यकाल 1940 से 1973तक रहा था। गोवलकर को संघ और भाजपा के सदस्य गुरुजी भी कहते हैं। गोवलकर भी एक तरह से हेडगेवा के ही पदचिह्नों पर चल रहे थे। उन्होंने अपनी किताब बंच ऑफ थार्ट्स में मुसलमानों, ईसाइयों और कम्युनिस्टों को भारत के आतंरिक सुरक्षा के लिए खतरा बताया है।

गोवलकर ने अपनी किताब बंच ऑफ थॉट्स में मुसलमानों और कम्युनिस्टों को भारत के आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा बताया है। यही वजह है कि आरएसएस विचारधारा के लोग आज भी कम्युनिस्ट विचारधारा के लोगों को देशका हितैषी नहीं मानते हैं और कम्युनिस्ट खुलकर आरएसएस का विरोध करते हैं। गोवलकर अपनी किता वी.आर. अवर नेशनहुड डिफाइंड में अल्पसंख्यकों के प्रति वही रवैया अपनाने की सलाह देते पाए जाते हैं, जो एडाल्फ हिटलर ने यहूदियों के लिए अपनाया था। मतलब गोवलकर के मन में भी मुस्लिमों के प्रति नफरत का भाव था।


मोहन भागवत आरएसएस सर संघ चालकों की विचारधारा के प्रति लोगों की धारणा को बदलने का प्रयास कर रहे हैं। वह एक ओर जहां भारतीय मुस्लिमों में हिन्दुओं का डीएनए बता रहे हैं वहीं उनकी पैरवी भी कर रहे हैं।

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