Monday, May 12, 2025
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पाकिस्तानी महिला ने दिल्ली हाईकोर्ट में लगाई वीजा की याचिका

  • अंशु ठाकुर , दिल्ली दर्पण टीवी

दिल्ली हाईकोर्ट ने पाकिस्तानी नागरिक और भारतीय नागरिक की पत्नी शेना नाज़ द्वारा दायर लॉन्ग टर्म वीजा से संबंधित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया. दिल्ली हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों में न्यायिक हस्तक्षेप का कोई स्थान नहीं है.

दरअसल, शेना नाज़ ने अपने निवास परमिट को रद्द न करने और लॉन्ग टर्म वीजा के आवेदन पर जल्द निर्णय लेने की मांग करते हुए याचिका दायर की थी. उनका निवास परमिट 26 मार्च से 9 मई तक वैध था. हालांकि, जम्मू-कश्मीर के पहलगाम क्षेत्र में हाल ही में हुए आतंकवादी हमले के बाद भारत सरकार ने 24 अप्रैल को एक आदेश जारी कर पाकिस्तानी नागरिकों के लिए वीजा सेवाओं को निलंबित कर दिया था और 27 अप्रैल तक भारत छोड़ने का निर्देश दिया था.

‘राष्ट्रीय सुरक्षा से बड़ा कुछ नहीं’
दिल्ली हाई कोर्ट में स्पेशल सुनवाई के दौरान जस्टिस सचिन दत्ता ने कहा विदेशियों अधिनियम, 1946 की धारा 3(1) के तहत केंद्र सरकार द्वारा पारित आदेश गंभीर राष्ट्रीय सुरक्षा कारणों से प्रेरित है. ऐसे मामलों में कोर्ट को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए और कोई भी अपवाद नहीं बनाया जा सकता. अदालत ने कहा कि जब सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर नीतिगत निर्णय लेती है, तो ऐसे मामलों में अदालत का दखल देना उचित नहीं होता.

अदालत के स्पष्ट संकेत को देखते हुए याचिकाकर्ता के वकील ने याचिका वापस लेने का निर्णय लिया. इसके बाद न्यायालय ने याचिका को औपचारिक रूप से खारिज कर दिया और सभी लंबित आवेदनों को भी निपटा दिया.

पहलगाम आतंकी हमला और सरकार का सख्त रुख
पिछले हफ्ते जम्मू-कश्मीर के पहलगाम क्षेत्र में एक भीषण आतंकवादी हमला हुआ था, जिसमें कई सुरक्षाकर्मी शहीद हुए थे. इस घटना के बाद भारत सरकार ने देश की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए पाकिस्तान से जुड़े सभी वीजा मामलों पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी थी. इसी आदेश के तहत सभी पाकिस्तानी नागरिकों को 27 अप्रैल तक भारत छोड़ने के निर्देश जारी किए गए थे.

सुरक्षा के मामले में अदालत सख्त
यह मामला एक बार फिर यह दर्शाता है कि जब बात राष्ट्रीय सुरक्षा की आती है, तो भारतीय न्यायपालिका भी किसी प्रकार का अपवाद या रियायत देने के पक्ष में नहीं रहती. अदालत ने अपने फैसले में राष्ट्रीय हित को सर्वोच्च प्राथमिकता दी और स्पष्ट किया कि सरकार के सुरक्षा संबंधी फैसलों में न्यायिक हस्तक्षेप उचित नहीं है.

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