– दिल्ली दर्पण ब्यूरो
नई दिल्ली, 10 मई 2025: दिल्ली के एक कोर्ट में उस समय हड़कंप मच गया जब एक जज को अपने जजमेंट को स्थगित करना पड़ा क्योंकि उनके नियमित स्टेनोग्राफर ने आत्महत्या की धमकी दी और कोर्ट छोड़कर चले गए। यह घटना सीआर केस नंबर 9737/2016 (राज्य बनाम सुखदेव सुखा, एफआईआर नंबर 108/2012, गीता कॉलोनी) से संबंधित है, जिसकी सुनवाई 29 अप्रैल 2025 को दोपहर 2:00 बजे होनी थी। इस घटना का आदेश सोशल मीडिया और व्हाट्सएप ग्रुप्स में तेजी से वायरल हो रहा है, जिसने कोर्ट में कामकाज के बढ़ते दबाव और तनावपूर्ण माहौल पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। आदेश के अनुसार, जजमेंट लिखाने की प्रक्रिया शुरू होने वाली थी, लेकिन स्टेनोग्राफर ने कोर्ट में आत्महत्या की धमकी दी और वहां से चले गए। नतीजतन, जजमेंट को स्थगित करना पड़ा और मामले को 9 मई 2025 के लिए पुन: सूचीबद्ध किया गया। इस अभूतपूर्व घटना ने न केवल कोर्ट की कार्यवाही को प्रभावित किया, बल्कि न्यायिक प्रणाली में कार्यरत कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य और काम के दबाव को भी उजागर किया।

यह आदेश व्हाट्सएप ग्रुप्स और सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है, जहां वकील और कानूनी विशेषज्ञ इस पर अपनी चिंताएं और प्रतिक्रियाएं व्यक्त कर रहे हैं। वरिष्ठ वकील विष्णु शर्मा ने सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए कहा, “यह घटना कोर्ट में बढ़ते तनाव और कर्मचारियों पर अत्यधिक दबाव का स्पष्ट उदाहरण है। हमें न्यायिक प्रणाली में कार्यरत सभी लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देने की जरूरत है।” उनकी यह पोस्ट भी व्यापक रूप से साझा की जा रही है, जिसने इस मुद्दे को और अधिक चर्चा में ला दिया है। वकील समुदाय ने इस घटना को कोर्ट में कामकाज के माहौल और कर्मचारियों पर बढ़ते दबाव के संदर्भ में देखने की मांग की है। एक वकील ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “कोर्ट में समयसीमा, उच्च अपेक्षाएं और संसाधनों की कमी कर्मचारियों और अधिकारियों पर भारी पड़ रही है। यह घटना एक चेतावनी है कि हमें तत्काल सुधारों की जरूरत है।”
यह घटना केवल एक स्टेनोग्राफर की धमकी तक सीमित नहीं है, बल्कि यह न्यायिक प्रणाली में गहरे बैठे तनाव और मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को उजागर करती है। विशेषज्ञों का मानना है कि कोर्ट में बढ़ते केसों का बोझ, अपर्याप्त स्टाफ, और समय की कमी कर्मचारियों पर अत्यधिक दबाव डाल रही है। इस घटना को एक चेतावनी के रूप में देखा जाना चाहिए कि न्यायिक प्रणाली में सुधारों की आवश्यकता है, जिसमें कर्मचारियों के लिए बेहतर कार्य परिस्थितियां, मानसिक स्वास्थ्य सहायता, और संसाधनों का उचित वितरण शामिल है।
यह घटना न केवल कानूनी हलकों में, बल्कि आम जनता के बीच भी चर्चा का विषय बन गई है। सोशल मीडिया पर लोग इस बात पर बहस कर रहे हैं कि क्या यह घटना एक व्यक्ति की निजी प्रतिक्रिया थी या यह न्यायिक प्रणाली की बड़ी समस्याओं का लक्षण है। कुछ लोगों का मानना है कि इस तरह की घटनाएं कोर्ट की गरिमा को प्रभावित कर सकती हैं, जबकि अन्य का कहना है कि यह मानवीय संवेदनाओं और कार्यस्थल के तनाव को समझने का अवसर प्रदान करती है।
इस बीच, यह घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि न्याय प्रदान करने वाली प्रणाली को स्वयं कितना “न्याय” चाहिए। कोर्ट में बढ़ते काम के दबाव की वजह से ही कोर्ट में लोगों को न्याय के लिए सालों साल तक धक्के खाने पड़ते है। ऐसे में वाल तो बनता ही है कि क्या न्याय पालिका में में ही सबसे ज्यादा सुधार की जरूरत नहीं है ?