– दिल्ली दर्पण ब्यूरो
नई दिल्ली, दिल्ली उच्च न्यायालय के जजेस लाउंज में 2 जून को अधिवक्ता परिषद, दिल्ली द्वारा आयोजित चर्चा में कानूनी विशेषज्ञों ने सिंधु जल संधि पर भारत के अधिक दृढ़ रुख का समर्थन किया। भारत और पाकिस्तान के बीच जल बंटवारे को नियंत्रित करने वाली इस संधि के कानूनी, तकनीकी और भू-राजनीतिक पहलुओं पर गहन विचार-विमर्श हुआ।

चर्चा में प्रो. मनोज सिन्हा (कुलपति, डीएनएलयू), जल विशेषज्ञ श्री डी बी धरेजा और पूर्व संयुक्त सचिव प्रो. नरेंद्र सिंह शामिल थे। श्री धरेजा ने कहा, “भारत अब संधि के तहत आवंटित जल का पूर्ण उपयोग करने और अंतर-बेसिन जल हस्तांतरण की संभावनाएं तलाशने की स्थिति में है।” प्रो. सिंह ने भू-राजनीतिक संदर्भ में संधि के पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता बताई।
प्रो. सिन्हा ने प्रधानमंत्री के बयान, “खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते,” को नीतिगत सिद्धांत करार दिया। अधिवक्ता परिषद के श्री श्रीहरि बोरिकर ने कहा, “पानी के प्रवाह की रणनीतिक समीक्षा राष्ट्रीय सुरक्षा के अनुरूप होनी चाहिए।”
अध्यक्ष श्री संजय पोद्दार और महासचिव श्री जीवेश तिवारी के नेतृत्व में आयोजित इस चर्चा में 273 कानूनी पेशेवर शामिल हुए। परिषद ने ऑपरेशन सिन्दूर की सफलता और ‘न्याय प्रवाह’ पत्रिका की सदस्यता को बढ़ावा दिया यह चर्चा भारत के रणनीतिक हितों को प्राथमिकता देने और सिंधु जल संधि की जटिलताओं पर प्रकाश डालने में महत्वपूर्ण रही। अधिवक्ता परिषद, दिल्ली कानूनी जागरूकता को बढ़ावा देने में अग्रणी भूमिका निभा रही है।