नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय वायुसेना (IAF) की एक महिला अधिकारी को बड़ी राहत प्रदान करते हुए केंद्र सरकार और वायुसेना को निर्देश दिया है कि उन्हें सेवा से मुक्त न किया जाए। यह फैसला विंग कमांडर कविता भट्टी की याचिका पर सुनवाई के दौरान आया, जिन्हें स्थायी कमीशन (Permanent Commission) देने से इनकार किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अगली सुनवाई 6 अगस्त, 2025 को निर्धारित की है।
मामले का विवरण
विंग कमांडर कविता भट्टी, जो शॉर्ट सर्विस कमीशन (SSC) अधिकारी हैं, ने दावा किया कि उन्हें गलत तरीके से स्थायी कमीशन से वंचित किया गया। सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें जस्टिस उज्जल भुयान और जस्टिस मनमोहन शामिल थे, ने 16 जून, 2025 को सुनवाई के दौरान कहा कि भट्टी को अगली सुनवाई तक सेवा में बने रहने की अनुमति दी जाए। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह आदेश पक्षों के अधिकारों को प्रभावित नहीं करेगा और न ही अधिकारी के पक्ष में कोई इक्विटी बनाएगा।

इससे पहले, 22 मई, 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने एक समान मामले में विंग कमांडर निकिता पांडे को राहत देते हुए केंद्र और IAF को उनकी सेवा से मुक्त न करने का आदेश दिया था। पांडे ने ऑपरेशन बालाकोट और ऑपरेशन सिंदूर में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, लेकिन उन्हें भी स्थायी कमीशन से वंचित कर दिया गया था। कोर्ट ने भट्टी के मामले में उसी आदेश को लागू करने का निर्देश दिया।
सुप्रीम कोर्ट का रुख

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान IAF को एक पेशेवर बल बताया और कहा कि ऐसी अनिश्चितता, जहां अधिकारियों को 10-15 साल की सेवा के बाद स्थायी कमीशन नहीं मिलता, सशस्त्र बलों के लिए अच्छी नहीं है। जस्टिस सूर्य कांत ने पहले निकिता पांडे के मामले में टिप्पणी की थी, “हमारी वायुसेना दुनिया की सर्वश्रेष्ठ संगठनों में से एक है। अधिकारी बहुत ही सराहनीय हैं। उनकी समन्वय की गुणवत्ता बेजोड़ है। इसलिए, हम हमेशा उनकी सलामती करते हैं। वे राष्ट्र के लिए एक बड़ी संपत्ति हैं।”
कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया कि सशस्त्र बलों को ऐसी नीति बनानी चाहिए, जिसमें सभी योग्य SSC अधिकारियों को स्थायी कमीशन में समायोजित किया जा सके। जस्टिस कांत ने कहा, “अगर आपके पास 100 SSC अधिकारी हैं, तो आपके पास उन्हें स्थायी कमीशन में लेने की क्षमता होनी चाहिए, बशर्ते वे उपयुक्त पाए जाएं।”
केंद्र और IAF का पक्ष
केंद्र और IAF की ओर से पेश हुईं अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (ASG) ऐश्वर्या भट्टी ने तर्क दिया कि IAF में “तीव्र पिरामिड संरचना” के कारण सीमित पद उपलब्ध हैं, जिसके चलते कुछ अधिकारियों को 14 साल की सेवा के बाद बाहर जाना पड़ता है। उन्होंने यह भी कहा कि कविता भट्टी ने सुप्रीम कोर्ट में सीधे याचिका दायर की, बिना पहले कोई प्रतिनिधित्व दाखिल किए। हालांकि, उन्होंने आश्वासन दिया कि भट्टी के मामले की समीक्षा के लिए दूसरा चयन बोर्ड गठित किया जाएगा।
महिला अधिकारियों के लिए सुप्रीम कोर्ट की प्रतिबद्धता

सुप्रीम कोर्ट ने हाल के वर्षों में सशस्त्र बलों में महिला अधिकारियों के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए कई महत्वपूर्ण फैसले दिए हैं। 2020 में बबीता पुनिया मामले में कोर्ट ने सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने का आदेश दिया था। 2022 में, 32 पूर्व IAF महिला अधिकारियों को पेंशन लाभ देने का निर्देश दिया गया, जिन्हें स्थायी कमीशन से वंचित किया गया था।
हाल ही में, कोर्ट ने सेना के जज एडवोकेट जनरल (JAG) शाखा में महिलाओं के लिए कम रिक्तियों पर भी सवाल उठाए और केंद्र से पूछा कि जब महिलाएं राफेल जेट उड़ा सकती हैं, तो JAG जैसे गैर-लड़ाकू भूमिकाओं में उनकी भागीदारी क्यों सीमित है।
क्यों महत्वपूर्ण है यह फैसला?
यह फैसला न केवल विंग कमांडर कविता भट्टी के लिए राहत लेकर आया है, बल्कि सशस्त्र बलों में लैंगिक समानता की दिशा में एक और कदम है। सुप्रीम कोर्ट का यह रुख दर्शाता है कि वह सशस्त्र बलों में महिला अधिकारियों के योगदान को महत्व देता है और उनके साथ भेदभाव को बर्दाश्त नहीं करेगा। यह फैसला अन्य SSC महिला अधिकारियों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत हो सकता है, जो स्थायी कमीशन की मांग कर रही हैं।
आगे क्या?
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई 6 अगस्त, 2025 को निर्धारित की है, जब IAF से संबंधित अन्य मामलों की भी सुनवाई होगी। तब तक विंग कमांडर कविता भट्टी अपनी सेवा में बनी रहेंगी। कोर्ट ने यह भी सुनिश्चित किया है कि इस अंतरिम आदेश से उनके पक्ष में कोई स्थायी अधिकार नहीं बनेगा, और सभी कानूनी दावे खुले रहेंगे।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भारतीय वायुसेना में महिला अधिकारियों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। यह न केवल लैंगिक समानता को बढ़ावा देता है, बल्कि सशस्त्र बलों में योग्य अधिकारियों के करियर को सुरक्षित करने की दिशा में भी एक सकारात्मक संदेश देता है। यह निर्णय उन सभी महिला अधिकारियों के लिए उम्मीद की किरण है, जो अपने समर्पण और कड़ी मेहनत के बावजूद नीतिगत बाधाओं का सामना कर रही हैं।