Friday, November 22, 2024
spot_img
Homeराष्ट्रीयDhanushkodi : देश का सबसे भयानक गांव क्यों माना जाता है...

Dhanushkodi : देश का सबसे भयानक गांव क्यों माना जाता है ?

धनुषकोडी  हिन्दुओं एक पवित्र तीर्थस्थल भी है। यहाँ दो समुद्रों के संगम है। पवित्र सेतु में स्नान कर तीर्थयात्री रामेश्वरम में पूजा के लिए अपनी यात्रा प्रारंभ करते हैं। यहाँ से रामेश्वरम करीब 15 किलोमीटर दूर है।  धनुषकोडी   में रात में रुकना मना है, क्योंकि 15 किलोमीटर का रास्‍ता सुनसान, भयानक डरावना और रहस्यमयी है। इसलिये सूर्यास्त से पहले रामेश्वरम लौट आएं।

धनुषकोडी  डरावनी होने के बावजूद पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करने में कामयाब है। आपको बता दें कि  धनुषकोडी  भुतहा जगहों की सूची में शुमार हो चुकी है। इसलिए पर्यटक दिन के उजाले में घूमने जाते हैं और शाम तक रामेश्वरम लौट आते हैं, क्योंकि पूरा रास्ता सुनसान-डरावना व रहस्य से भरा हुआ है।

एक पवित्र तीर्थ स्थल कैसे बन गया भुतहा गांव

धनुषकोडी  – एक भुतहा गांव और हिन्दुओं एक पवित्र तीर्थस्थल ! इस इलाके में अंधेरा होने के बाद घूमना मना है।

आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि भारत मे एक भुतहा गांव भी है।  धनुषकोडी  भारत के अंतिम छोर पर बालू के टीले पर है, जहाँ से श्रीलंका दिखाई पड़ता है।धनुषकोटि भारत और श्रीलंका के बीच है जो पाक जलसन्धि में बालू के टीले पर 50 गज की लंबाई में विश्‍व के लघुतम स्‍थानों में से एक है। यहाँ से श्रीलंका केवल 17 किलोमीटर दूरीपर है।  धनुषकोडी  हिन्दुओं एक पवित्र तीर्थस्थल है। धनुषकोडी समुद्र से घिरे होने के बाद भी यहाँ मीठा पानी मिलता है। यह एक प्राकृतिक चमत्कार है। तो आइए आप और हम जाने धनुषकोटि कि वो कहानी जो इतिहास के पन्नों में कहीं खो गया है।

22 दिसम्बर 1964 की रात में 270 कि.मी/घंटा से आया भयंकर चक्रवातीय लहर में धनुषकोटि ध्वस्त हो गई।  इस चक्रवात में केवल एक ही व्यक्ति बचा, उसका नाम कालियामन था। अब यहाँ खंडहर के अवशेष रह गये हैं। इस चक्रवात के बाद मद्रास सरकार ने इसे भुतहा शहर घोषित कर दिया। दशकों तक धनुषकोडी वीरान परा रहा, यहां कोई आता जाता नहीं था। अब सरकार फिर से पर्यटन और तीर्थस्थल से जोड़ने का प्रयास कर रही है। भुतहा शहर देखने की रुचि ने पर्यटकों की संख्या बढ़ने लगी हैं।

अंग्रेजों के समय धनुषकोटि बड़ा शहर और तीर्थ स्थल भी था। तीर्थ यात्रियों की जरूरतों के लिये वहां होटल, कपड़ों की दुकानें और धर्मशालाएं भी थी। उन दिनों धनुषकोडी में रेलवे स्‍टेशन, अस्‍पताल,  पोस्‍ट ऑफिस आदि भी थी। जब स्‍वामी विवेकानंद 1893 में यूएसए में आयोजित धर्म संसद में भाग लेकर पश्चिम की विजय यात्रा कर के श्रीलंका होते हुए लौटे थे, तो अपने कदम भारतीय भूमि धनुषकोडी पर रखे।

हिंदू धर्मग्रंथों में धनुषकोडी का धार्मिक एवं पौराणिक महत्व है। हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार भगवान राम ने नल और नील की सहायता से लंका में प्रवेश करने के लिए सेतु बनाये थे, इसलिये इसे रामसेतु के नाम से जाना जाता है। लंका से लौटने के बाद विभीषण के अनुरोध भगवान राम ने अपने धनुष के एक सिरे से सेतु को तोड़ दिया। इसलिये इसका नाम धनुषकोटि पड़ा।

यहाँ दो समुद्रों के संगम है। पवित्र सेतु में स्नान कर तीर्थ यात्रा रामेश्वरम में पूजा के लिए अपनी यात्रा प्रारंभ करते हैं। यहाँ  से रामेश्वरम करीब 15 किलोमीटर दूर है। धनुषकोडी में रात में रुकना मना है, क्योंकि 15 किलोमीटर का रास्ता सुनसान, भयानक डरावना और रहस्यमयी है। इसलिये सूर्यास्त से पहले रामेश्वरम लौट आएं। यहाँ भगवान राम से संबंधित यहां कई मंदिर हैं। पौराणिक महत्व, इतिहास, प्रकृतिक में रुचि रखने वालों को यह स्थान एक बार अवश्य देखना चाहिए।

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments