Saturday, November 8, 2025
spot_img
Homeदिल्लीदिल्ली बना डिप्रेशन का हॉटस्पॉट: देशभर के कॉलेज छात्रों में बढ़ता मानसिक...

दिल्ली बना डिप्रेशन का हॉटस्पॉट: देशभर के कॉलेज छात्रों में बढ़ता मानसिक तनाव, चिंता की नई लहर

दिल्ली—देश की राजधानी, सपनों और संघर्षों का शहर। जहां हर गली में कोई न कोई अपने करियर, रिश्तों या भविष्य के लिए जूझ रहा है। लेकिन इसी शहर की एक सच्चाई अब डराने लगी है — दिल्ली धीरे-धीरे “डिप्रेशन का हॉटस्पॉट” बन रही है। हाल के अध्ययनों और मानसिक स्वास्थ्य रिपोर्ट्स में खुलासा हुआ है कि देशभर के कॉलेज छात्रों में बढ़ता मानसिक तनाव अब एक गंभीर सामाजिक समस्या का रूप ले चुका है।

तनाव की राजधानी: क्यों बढ़ रहा है मानसिक बोझ

दिल्ली में पढ़ाई करने आने वाले छात्र देश के अलग-अलग कोनों से आते हैं — कोई छोटे कस्बे से, कोई दूर के गांव से। बड़े सपनों और उम्मीदों के साथ वे यहां कदम रखते हैं, लेकिन जल्द ही उन्हें एहसास होता है कि यहां की जिंदगी उतनी आसान नहीं है जितनी उन्होंने सोची थी।

कॉलेज का दबाव, प्रतियोगिता, परिवार की अपेक्षाएं, सोशल मीडिया की तुलना और रिश्तों की उलझनें – ये सब मिलकर एक अदृश्य बोझ बना देती हैं। हर दूसरा छात्र किसी न किसी स्तर पर चिंता, अकेलापन या मानसिक थकान से जूझ रहा है।

“मुझे लगता था मैं कमजोर हूं,” दिल्ली यूनिवर्सिटी की एक छात्रा कहती है, “क्योंकि मैं हर रात रोकर सोती थी। लेकिन अब समझ में आता है कि ऐसा महसूस करने वाले सिर्फ मैं नहीं थी।”

सोशल मीडिया और शहर की भागदौड़

दिल्ली में जिंदगी बहुत तेज चलती है। सुबह से रात तक क्लास, असाइनमेंट, मेट्रो, और फिर देर रात तक सोशल मीडिया पर दूसरों की ‘परफेक्ट लाइफ’ देखना – ये सब छात्रों के अंदर एक गहरी असुरक्षा पैदा कर देता है।

हर किसी को लगता है कि बाकी सब आगे बढ़ रहे हैं, बस मैं पीछे रह गया हूं। यह ‘comparison culture’ धीरे-धीरे आत्मसम्मान को खा जाता है। और फिर एक दिन, मन टूटने लगता है।

मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि इंस्टाग्राम और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स ने युवा मन पर गहरा असर डाला है। जहां एक तरफ ये लोगों को जोड़ते हैं, वहीं दूसरी तरफ वे अकेलेपन की भावना को और गहरा कर देते हैं।

महामारी के बाद बढ़ी मानसिक थकान

कोविड-19 महामारी के बाद स्थिति और भी बिगड़ी। लॉकडाउन के महीनों ने छात्रों को सामाजिक रूप से अलग-थलग कर दिया। ऑनलाइन क्लासेस ने पढ़ाई का मज़ा छीन लिया, और ‘घर पर रहो’ ने दोस्तों, कॉलेज की चहल-पहल, और असली बातचीत से दूरी बना दी।

उसके बाद जब कॉलेज खुले, तब तक कई छात्र पहले से ही मानसिक रूप से कमजोर हो चुके थे। कुछ को डिप्रेशन हो गया, कुछ को एंग्जायटी, और कुछ ने तो आत्महत्या जैसे कदम तक उठा लिए।

मदद की कमी और कलंक की दीवार

सबसे दुखद बात यह है कि ज्यादातर छात्र मदद मांगने से डरते हैं। भारत में अब भी मानसिक स्वास्थ्य को लेकर बहुत कलंक है।
लोग कहते हैं – “इतना सोचते क्यों हो?” या “सबके साथ होता है, नॉर्मल है।”
लेकिन ये “नॉर्मल” अब खतरनाक हो चुका है।

दिल्ली के कई कॉलेजों में काउंसलिंग सेल हैं, पर छात्र वहां जाना ‘कमजोरी’ समझते हैं। किसी को डर है कि दोस्त मज़ाक उड़ाएंगे, किसी को ये चिंता कि माता-पिता समझेंगे नहीं।

क्या है रास्ता आगे का?

मानसिक स्वास्थ्य अब किसी “प्राइवेट प्रॉब्लम” का विषय नहीं रह गया, बल्कि यह एक सामाजिक जिम्मेदारी है। कॉलेजों को चाहिए कि वे छात्रों के लिए मेंटल हेल्थ अवेयरनेस प्रोग्राम्स, ओपन काउंसलिंग सेशंस, और पीयर सपोर्ट ग्रुप्स शुरू करें।

माता-पिता और टीचर्स को भी समझना होगा कि बच्चों से सिर्फ मार्क्स की बात नहीं, बल्कि मन की बात करना भी जरूरी है।

एक उम्मीद की किरण

दिल्ली भले आज डिप्रेशन का हॉटस्पॉट बन गई हो, लेकिन यह बदलाव की शुरुआत भी हो सकती है। क्योंकि अब आवाज़ें उठने लगी हैं। कॉलेजों में ‘मेंटल हेल्थ वीक’ मनाया जा रहा है, छात्र अपने अनुभव सोशल मीडिया पर शेयर कर रहे हैं, और धीरे-धीरे यह समझ आ रही है —
“मदद मांगना कमजोरी नहीं, बल्कि हिम्मत की निशानी है।”

कभी-कभी जिंदगी की सबसे बड़ी लड़ाइयाँ अंदर लड़ी जाती हैं — बिना आवाज़, बिना पहचान के।
और दिल्ली के इस शोर में, अगर कोई आवाज़ मन की चुप्पी तोड़ सके, तो शायद यही असली जीत होगी।

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments