दिल्ली… इस नाम में न जाने कितनी परतें छुपी हैं।
पुरानी दिल्ली की सँकरी गलियाँ, लाल किले की दीवारें, मेट्रो की आवाज़ें, सर्दियों की धूप, और वो ठेले वाले की आवाज़ — “भुट्टा ले लो गरम!”
हर चीज़ जैसे कहती है — “हाँ, मैं ही हूँ दिल्ली।”
लेकिन अब इस शहर का नाम फिर चर्चा में है।
बीजेपी सांसद परवेश साहिब सिंह वर्मा ने गृह मंत्री अमित शाह को एक चिट्ठी लिखी है —
उनकी मांग है कि दिल्ली का नाम बदलकर ‘इंद्रप्रस्थ’ कर दिया जाए।
उनका कहना है, “दिल्ली सिर्फ एक शहर नहीं, पांडवों की भूमि है। इसका असली नाम इंद्रप्रस्थ था, वही नाम इसे वापस मिलना चाहिए।”
ये सुनते ही सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई — कोई इसे “गौरव की वापसी” बता रहा है, तो कोई कह रहा है, “नाम बदलने से ट्रैफिक या प्रदूषण कम होगा क्या?”
लेकिन सच कहें तो, इस बहस के बीच कहीं न कहीं भावनाएँ भी हैं — इतिहास को महसूस करने की, अपनेपन की, और एक पहचान को फिर से पाने की।
पूर्वी दिल्ली के विजय चौक के पास चाय बेचने वाले रमेश ने मुस्कुराते हुए कहा,
“नाम कुछ भी रख लो साहब, बस लोग दिल्ली को समझें — ये शहर सबका है।”
वहीं, पुरानी दिल्ली में रहने वाली 70 साल की शोभा अरोड़ा जी बोलीं,
“हमने तो बचपन से सुना था, इंद्रप्रस्थ यहीं था। अगर नाम बदल जाए तो अच्छा ही लगेगा, अपनापन लगता है।”
दिल्ली ने हर दौर देखा है —
पांडवों की इंद्रप्रस्थ, तुगलकों की दिल्ली, मुगलों की शाहजहानाबाद, अंग्रेज़ों की न्यू दिल्ली…
हर युग ने इसे एक नया चेहरा दिया।
लेकिन शहर की आत्मा वही रही — ज़िद्दी, ज़िंदा, और कुछ अपनी सी।
बीजेपी सांसद वर्मा का कहना है कि ये राजनीति नहीं, संस्कृति का पुनर्जागरण है।
उनका तर्क है — “जब इलाहाबाद को प्रयागराज और फैजाबाद को अयोध्या कहा जा सकता है, तो दिल्ली को इंद्रप्रस्थ क्यों नहीं?”
लेकिन सब लोग इससे सहमत नहीं।
लाजपत नगर में रहने वाली एक नौकरीपेशा लड़की ने कहा,
“नाम बदलने से क्या बदलेगा? ट्रैफिक वही रहेगा, किराया वही रहेगा, और ठंड में स्मॉग भी वही रहेगा।”
और शायद वो गलत भी नहीं है।
क्योंकि किसी शहर की पहचान उसके नाम से नहीं, बल्कि उसके लोगों से होती है।
दिल्ली — या कहें इंद्रप्रस्थ — की खूबसूरती ही यही है कि यहाँ हर किसी की कहानी है।
किसी के लिए ये सपनों का शहर है, किसी के लिए बस एक ठहराव।
किसी के लिए घर, किसी के लिए संघर्ष।
और शायद यही वजह है कि ये शहर हर नाम में भी वही रहता है — ज़िंदा, बेचैन, और खूबसूरत।
नाम बदल भी जाए तो क्या फर्क पड़ता है?
दिल्ली की सर्दी अब भी सिहरन लाएगी, परांठे वाली गली अब भी भूख मिटाएगी, और इंडिया गेट के पास शामें अब भी मुस्कान दे जाएँगी।
शायद यही वजह है कि दिल्ली सिर्फ एक नाम नहीं — एक एहसास है।
चाहे उसे दिल्ली कहो, या इंद्रप्रस्थ.
वो वही रहेगी —
दिल वालों की दिल्ली।

