Saturday, November 8, 2025
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दिल्ली में रफ्तार का आतंक: वसंत कुंज में तेज रफ्तार THAR ने 13 साल के मासूम को कुचला मौके पर दर्दनाक मौत

दिल्ली में रफ्तार का आतंक: वसंत कुंज में तेज रफ्तार THAR ने 13 साल के मासूम को कुचला, मौके पर दर्दनाक मौत

दिल्ली… वो शहर जो कभी नहीं रुकता। लेकिन कभी-कभी, यही रफ्तार इतनी बेरहम हो जाती है कि किसी की पूरी दुनिया थम जाती है।
ऐसा ही कुछ हुआ वसंत कुंज में, जहां रविवार दोपहर एक तेज रफ्तार THAR ने 13 साल के आर्यन को इस तरह कुचल दिया कि वो ज़िंदगी से हमेशा के लिए हार गया।

उस पल की आवाज़ — ब्रेक की चीख, लोगों की चीखें, और फिर सन्नाटा — आज भी वहां गूंज रहा है।

वो दोपहर जो हमेशा के लिए ठहर गई

आर्यन बस एक टॉफी लेने दुकान तक गया था। एक मामूली, मासूम सी बात — जैसे हर बच्चा करता है।
वो लौट ही रहा था कि अचानक पीछे से आती काले रंग की थार ने रफ्तार के नशे में उसे टक्कर मारी।
टक्कर इतनी जबरदस्त थी कि आर्यन हवा में उछला और कुछ फीट दूर जा गिरा।
लोग भागकर पहुंचे, लेकिन सब खत्म हो चुका था। उसकी नन्ही सी सांसें सड़क पर ही थम गईं।

एक पड़ोसी ने कांपती आवाज़ में कहा —
“बस अभी थोड़ी देर पहले तो उसके हाथ में टॉफी देखी थी… अब वहीं सड़क पर खून फैला है।”

परिवार की दुनिया उजड़ गई

आर्यन अपने माता-पिता की आंखों का तारा था। पिता एक प्राइवेट कंपनी में ड्राइवर हैं, मां गृहिणी।
घर में अब सिर्फ सन्नाटा है — मां बार-बार बेहोश हो जाती हैं, पिता दीवार से टिके हुए चुप हैं, जैसे बोलने की ताकत ही खत्म हो गई हो।

एक पड़ोसी ने कहा, “आर्यन बहुत अच्छा बच्चा था। सबका दुलारा। सुबह हंसता-खेलता निकला था, शाम तक खबर आई कि नहीं रहा।”

हर घर में अब बस यही बात है — “अगर वो थार थोड़ा धीरे चलती…”

आरोपी ड्राइवर गिरफ्तार, पर सवाल कायम

हादसे के बाद गुस्साई भीड़ ने गाड़ी रोकी और ड्राइवर को पकड़ लिया। बताया जा रहा है कि वह एक कॉलेज छात्र था, जो तेज रफ्तार और स्टंट करने का शौकीन था।
पुलिस ने आरोपी को हिरासत में ले लिया है और IPC की धारा 279 और 304A के तहत मामला दर्ज किया है।

लेकिन असली सवाल यह नहीं है कि उसे गिरफ्तार किया गया या नहीं।
सवाल यह है कि — क्या सजा इतनी होगी कि अगला ड्राइवर सोचकर ब्रेक लगाए?

इलाके में गुस्सा और डर दोनों

वसंत कुंज के लोगों का गुस्सा अब शब्दों में नहीं, आंखों में दिख रहा है।
कई लोगों ने बताया कि यह सड़क रात को “रेस ट्रैक” बन जाती है। बाइक और थार जैसी गाड़ियां तेज रफ्तार में निकलती हैं, और पुलिस को कोई फर्क नहीं पड़ता।

एक बुजुर्ग ने कहा,
“यह सड़क अब बच्चों के लिए नहीं रही। हम उन्हें खेलने भी नहीं भेज पाते। हर वक्त डर लगता है कि अगला नंबर कहीं हमारे घर का न हो।”

अब इलाके के लोग मांग कर रहे हैं कि यहां स्पीड ब्रेकर लगाए जाएं, कैमरे लगें और रात में पेट्रोलिंग बढ़ाई जाए।

दिल्ली की रफ्तार अब मौत का दूसरा नाम बन चुकी है

दिल्ली में सड़क हादसे अब एक आम खबर बन गए हैं।
हर दिन औसतन चार से पांच लोग सड़क पर अपनी जान गंवा रहे हैं, और उनमें से ज्यादातर मासूम या पैदल चलने वाले होते हैं।
हर कैमरे, हर चालान के बावजूद लोग सीख नहीं रहे। शायद इसलिए क्योंकि हमारे शहर में “रफ्तार” अब “काबिलियत” का पैमाना बन गई है।

लेकिन कोई यह नहीं समझता कि उस रफ्तार की एक गलती किसी का पूरा घर तबाह कर सकती है।

एक मां का सवाल… जो सबके लिए है

आर्यन की मां ने रोते हुए कहा,
“मेरा बच्चा किसी से झगड़ा नहीं करता था, बस स्कूल जाता था, खेलता था। अब वो नहीं रहा… किसी की गाड़ी इतनी तेज क्यों चलती है?”

उनकी ये एक पंक्ति शायद इस पूरे शहर के लिए आईना है।
क्योंकि हम सब कभी न कभी उस सड़क पर होते हैं — किसी की जगह।
कभी ड्राइवर बनकर, कभी पैदल चलकर।

और जब तक हम जिम्मेदारी नहीं समझेंगे, हर दिन कोई नया आर्यन सड़क पर मरेगा, और कोई नई मां इस सवाल के साथ जिएगी —
“क्यों?”

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