Saturday, November 8, 2025
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दिल्ली में फिर गूंजेगा छठ का गीत: डेढ़ दिन की छुट्टी, 1500 घाटों पर अर्घ्य और फूलों की बारिश

छठ की तैयारी शुरू होते ही दिल्ली जैसे अपने पुराने रूप में लौट आती है — मोहल्लों से लेकर छतों तक से वो मीठी सी गूंज सुनाई देने लगती है — “केलवा जे जनमले हो…”। यह सिर्फ एक गीत नहीं, बल्कि लाखों प्रवासी दिलों की धड़कन है जो अपने गांव-घर से दूर, इस शहर में भी अपनी मिट्टी की खुशबू को ज़िंदा रखे हुए हैं। इस साल छठ का रंग और भी गहरा है। हवा में एक अलग-सी उत्सुकता है, जैसे पूरा शहर कह रहा हो — “चलो, फिर से मिलते हैं यमुना किनारे।”

डेढ़ दिन की छुट्टी — ताकि आस्था अधूरी न रहे

दिल्ली सरकार ने इस बार छठ के मौके पर डेढ़ दिन की छुट्टी का ऐलान किया है। और सच कहें तो, यह सिर्फ छुट्टी नहीं — यह एक राहत है उन हज़ारों परिवारों के लिए जो हर साल काम और पूजा के बीच झूलते रहते थे। अब लोग बिना किसी जल्दबाज़ी के, पूरे मन से सूर्यदेव की पूजा कर पाएंगे।
कई निजी कंपनियों ने भी अपने कर्मचारियों को आधा दिन या पूरा दिन छुट्टी देने का फैसला किया है। कहीं न कहीं, यह अपने आप में एक इशारा है कि दिल्ली अब सिर्फ एक शहर नहीं, बल्कि हर धर्म, हर परंपरा को अपनाने वाला परिवार बन गई है।

1500 घाट, एक ही भावना

इस साल दिल्ली में करीब 1500 घाटों पर छठ की तैयारी पूरी हो चुकी है। मयूर विहार, कालिंदी कुंज, गीता कॉलोनी, वजीराबाद, सोनिया विहार — हर जगह श्रद्धा की लहर है।
लकड़ी के अस्थायी घाटों पर बांस की सजावट, रंगीन लाइटें, फूलों की मालाएं, और चारों तरफ ठेकुआ की खुशबू… सब कुछ मिलकर एक ऐसा माहौल बना देते हैं कि लगता है जैसे पूरा शहर गांव में बदल गया हो। प्रशासन ने इस बार सुरक्षा और साफ-सफाई पर भी खास ध्यान दिया है। कई जगह कृत्रिम तालाब बनाए गए हैं ताकि लोग स्वच्छ पानी में अर्घ्य दे सकें। मेडिकल टीमें, महिला पुलिस कर्मी और वालंटियर्स हर जगह तैनात रहेंगे।

फूलों की बारिश — आस्था का उत्सव

इस बार छठ को और खास बनाने के लिए दिल्ली प्रशासन ने बड़ा कदम उठाया है। कुछ प्रमुख घाटों पर हेलीकॉप्टर से फूलों की बारिश की जाएगी।
ज़रा सोचिए, जब सुबह का सूरज यमुना के जल में सुनहरी परछाईं बनाएगा, और ऊपर से फूलों की बारिश होगी — तब हर श्रद्धालु के चेहरे पर जो मुस्कान होगी, वो सिर्फ तस्वीरों में नहीं, दिलों में बस जाएगी।

वो पल जब महिलाएं जल में खड़ी होकर हाथ जोड़कर सूर्य को नमन करेंगी, आसमान में लोकगीत गूंजेंगे, बच्चे ढोलक की थाप पर नाचेंगे — तब दिल्ली एक शहर नहीं, बल्कि एक जीवंत कविता बन जाएगी।

दिल्ली में छठ अब सबका त्योहार है

दिल्ली की खूबसूरती ही यही है कि यह किसी की भी नहीं, और सबकी है। पहले छठ सिर्फ बिहार और पूर्वी यूपी के लोगों का पर्व माना जाता था। लेकिन अब हर साल, पंजाबी, मराठी, बंगाली — हर कोई इस उत्सव में शामिल होता है।
पड़ोसी एक-दूसरे के साथ मिलकर घाट सजाते हैं, महिलाएं प्रसाद बांटती हैं, और बच्चे दादी से सीखते हैं कि खरना में चावल और गुड़ की खुशबू कैसी होती है।

छठ अब सिर्फ पूजा नहीं, बल्कि यादों और जड़ों से जुड़ने का पल बन चुका है।

चार दिन की भक्ति, एक उम्र की शांति

पहला दिन नहाय-खाय, जब शरीर और मन दोनों को पवित्र किया जाता है।
दूसरा दिन खरना, जब पूरा घर गुड़-चावल की खुशबू से भर जाता है।
तीसरा दिन संध्या अर्घ्य, जब सूरज ढलते वक्त लोग जल में उतरते हैं, और चौथा दिन उषा अर्घ्य, जब उगते सूरज के साथ हर मन अपनी मुराद मांगता है।

ये सिर्फ रिवाज़ नहीं, बल्कि एक भावनात्मक यात्रा है — संयम, त्याग, और आस्था की।

दिल्ली की रगों में बहता छठ

जो लोग अपने गांव से सालों पहले निकले थे, उनके लिए छठ वो धागा है जो अब भी उन्हें अपनी मिट्टी से जोड़े रखता है।
एक बुज़ुर्ग महिला ने कालिंदी कुंज घाट पर मुस्कुराते हुए कहा,
“बिटिया, यहां आके लगता है जैसे गंगा किनारे बैठे हैं बस अब घर की याद नहीं सताती।”
यही तो असली जादू है छठ का — यह दिल्ली को भी अपना बना लेता है। इस बार जब यमुना किनारे लाखों लोग एक साथ खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देंगे, और आसमान में फूलों की बारिश होगी — तो यकीन मानिए, दिल्ली फिर से गूंज उठेगी उसी भाव से

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