दिल्ली दर्पण ब्यूरो,
नई दिल्ली, दिल्ली के वरिष्ठ नागरिक मंच ने एक बार फिर वृद्धजनों के लिए आध्यात्मिक और सामाजिक जुड़ाव का शानदार अवसर प्रदान किया। मंच द्वारा आयोजित तीन दिवसीय हरिद्वार धार्मिक यात्रा में 82 वरिष्ठ नागरिकों ने हिस्सा लिया। यह मंच 60 वर्ष से अधिक आयु के 500 से ज्यादा पुरुषों और महिलाओं को जोड़कर उनके लिए देश-विदेश के धार्मिक और सांस्कृतिक स्थलों की यात्राएं आयोजित करता रहा है। इस यात्रा का उद्देश्य उन वरिष्ठ नागरिकों को नई ऊर्जा और खुशी प्रदान करना था, जो अकेलेपन का सामना करते हैं या जिन्हें परिवार से पर्याप्त समय नहीं मिल पाता। मंच के इस प्रयास ने वरिष्ठ नागरिकों को हमउम्र लोगों के साथ मेल-मिलाप और आध्यात्मिक अनुभव का मौका दिया।
यात्रा की शुरुआत दिल्ली के मौर्या एनक्लेव से वातानुकूलित चार्टेड बसों के साथ हुई, जिसमें भजन-कीर्तन के साथ उत्साहपूर्ण माहौल बना। यात्रियों ने हरिद्वार, ऋषिकेश और शुक्रताल के प्रमुख धार्मिक स्थलों के दर्शन किए। हरिद्वार के चंडीदेवी, मनसा देवी, हर की पौड़ी, श्रीटपकेश्वर मंदिर और भद्रावाद टोल प्लाजा पर 5400 किलो वजनी पारे से निर्मित शिवलिंग के दर्शन यात्रियों के लिए विशेष आकर्षण रहे।

इसके अलावा, मुजफ्फरनगर के निकट शुक्रताल मंदिर में 5000 वर्ष पुराने अक्षयवट वृक्ष और परमार्थ निकेतन आश्रम की गंगा आरती ने यात्रियों को आध्यात्मिक शांति प्रदान की। यात्रियों को हरिद्वार की श्री नीलकंठ धर्मशाला में ठहराया गया, जहां स्वच्छ, सात्विक भोजन और शांतिपूर्ण वातावरण ने सभी का मन मोह लिया।वापसी के दौरान मेरठ के निकट शिवा ढाबे पर स्वादिष्ट भोजन और ग्रुप फोटो सेशन ने यात्रियों की एकता को दर्शाया।
मंच के प्रधान धर्मवीर गुप्ता ने कहा, “हमारा लक्ष्य वरिष्ठ नागरिकों को अकेलेपन से मुक्ति दिलाना और उन्हें जीवन के प्रति नया उत्साह देना है। इस यात्रा ने सभी के चेहरों पर मुस्कान बिखेरी।” मंच के उपप्रधान राजेश गुप्ता ने बताया, “ऐसी यात्राएं न केवल धार्मिक अनुभव देती हैं, बल्कि सामाजिक बंधन को भी मजबूत करती हैं।” यात्रियों ने भी इस अनुभव को अविस्मरणीय बताया। एक यात्री ने कहा, “गंगा आरती और मंदिरों के दर्शन ने मेरे मन को शांति दी।
हम उम्र लोगों के साथ यह समय बहुत खास रहा।”वरिष्ठ नागरिक मंच लंबे समय से वृद्धजनों के लिए इस तरह के आयोजन करता आ रहा है, जिससे वे सामाजिक और आध्यात्मिक रूप से सक्रिय रहें। यह यात्रा न केवल धार्मिक महत्व की थी, बल्कि वरिष्ठ नागरिकों के बीच एकता और खुशी का प्रतीक भी बनी।