कभी-कभी कोई बस सही करना चाहता है — एक छोटी-सी कोशिश, किसी का गुस्सा शांत करने की, किसी की जान बचाने की। लेकिन इस शहर में अब शायद ‘सही करना’ सबसे बड़ा खतरा बन गया है। बुधवार रात, दिल्ली के द्वारका सेक्टर-12 में यही हुआ। एक 24 साल का लड़का — राहुल (काल्पनिक नाम) — सिर्फ इसलिए मारा गया क्योंकि उसने इंसानियत दिखाई थी।
वो रात, जो कभी खत्म नहीं हुई
राहुल अपने दोस्तों के साथ सड़क किनारे चाय पी रहा था। ठंडी हवा चल रही थी, हल्की सी हंसी, कुछ अधूरी बातें — बस एक आम सी दिल्ली की रात।
फिर उसने देखा — दो लड़के किसी तीसरे के साथ झगड़ रहे हैं। आवाज़ें तेज़ हो रही थीं। राहुल उठा, जैसे कोई भी उठे अगर सामने कुछ गलत होता दिखे। उसने बस कहा,
“भाई, लड़ो मत… बात से सुलझा लो।”
लेकिन आज के वक्त में शायद ये सबसे खतरनाक वाक्य है।कुछ सेकंड में झगड़ा और भड़क गया। उन लड़कों में से एक ने जेब से चाकू निकाला। सब कुछ इतना अचानक हुआ कि किसी को कुछ समझ ही नहीं आया।
कुछ ही पलों में राहुल ज़मीन पर था — सीने में खून, आंखों में हैरानी, और सांसों में डर।
दद कर रहा था…”
घर में अब बस रोने की आवाज़ है। राहुल की मां बार-बार दरवाज़े की तरफ देखती हैं — जैसे उसे अभी अंदर आते देख लेंगी।
“वो तो बस मदद करने गया था, उसे क्या पता था कि आज लौटेगा ही नहीं…” — उनकी आवाज़ में टूटन है, जो हर मां समझ सकती है।
पिता कुछ नहीं कहते। बस राहुल की पुरानी फोटो पकड़े बैठे रहते हैं।
“हर बात में कहता था — पापा, लोगों की मदद करनी चाहिए… लेकिन अब लगता है वो बहुत सीधा था इस शहर के लिए।”
मोहल्ला सन्न है, हवा भारी है
राहुल की गली अब चुप है। बच्चे जो उसके साथ क्रिकेट खेलते थे, बस खड़े हैं — खामोश।
एक पड़ोसी कहता है, “बहुत अच्छा लड़का था, सबकी मदद करता था। जिसने किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया, उसी को सबसे बड़ा नुकसान हुआ।”
किसी के घर से अब भी अगर हंसी की आवाज़ आती है, तो कुछ देर बाद वही रुक जाती है — जैसे सबको याद आ जाता है कि गली का सबसे हंसमुख चेहरा अब नहीं रहा।
पुलिस आई, लेकिन सन्नाटा नहीं गया
पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया है। CCTV देखे जा रहे हैं, दो संदिग्धों की पहचान हो चुकी है।
डीसीपी द्वारका, अनिल यादव ने कहा, “यह बेहद दुखद मामला है। मृतक निर्दोष था, बस मदद करने की कोशिश कर रहा था।”
पर सच्चाई यह है कि चाहे कितनी भी जांच हो जाए, चाहे आरोपी मिल भी जाएं — उस घर में जो खालीपन है, वो कोई नहीं भर सकता।
डर और शर्म — दोनों साथ
अब लोग कह रहे हैं, “अगर किसी की मदद करनी ही मौत बन जाए, तो क्यों करें?”
और यही सबसे डरावना सच है। हम उस दौर में पहुंच गए हैं जहां कोई गिरा हुआ दिखे तो लोग वीडियो बनाते हैं, लेकिन उठाते नहीं। जहां कोई झगड़ा होता है, वहां लोग दूर खड़े देखते हैं, क्योंकि ‘कहीं मेरा नंबर न आ जाए।’
राहुल ने वही किया जो इंसान को इंसान बनाता है — लेकिन शहर ने उसे इसकी सबसे भारी कीमत दी।
आखिर में बस एक सवाल
राहुल अब नहीं है।
उसकी मां की आंखें आज भी दरवाज़े की तरफ लगी हैं।
उसके दोस्तों की चैट में उसका नाम अब बस ग्रुप में रह गया है।
गली में उसकी हंसी अब गूंजती नहीं।
लेकिन उसकी मौत एक सवाल बनकर रह गई है —
क्या आज के वक्त में इंसानियत दिखाना मूर्खता है?
राहुल की कहानी कोई खबर नहीं है, ये उस हर इंसान की याद है जो दूसरों के लिए खड़ा हुआ — और हार गया।
पर शायद, अगर कोई अगली बार किसी की मदद करने का हौसला जुटाए, तो वो ये याद रखे — कि किसी राहुल ने कभी कोशिश की थी।

