Saturday, November 8, 2025
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दिवाली से पहले दिल्ली में बड़ी कार्रवाई: 10 करोड़ के चाइनीज पटाखे जब्त, खुशियों की रोशनी के बीच ज़हर का कारोबार उजागर

दिवाली ख़तम हुई लेकिन इसके बीच कहीं न कहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो दूसरों की खुशियों से ज़्यादा अपने मुनाफे की चिंता में लगे हैं। दिल्ली पुलिस ने इस बार ऐसे ही लोगों का बड़ा खेल पकड़ लिया — करीब 10 करोड़ रुपये के अवैध चाइनीज पटाखे जब्त कर एक पूरे रैकेट का पर्दाफाश किया है।

ये सिर्फ़ कोई ‘छापा’ नहीं था — ये एक ऐसा कदम था जो शायद इस शहर को थोड़ा ज़्यादा सुरक्षित, और थोड़ा कम धुआँदार बना सके।

कहानी की शुरुआत

कुछ दिन पहले पुलिस को एक गुप्त सूचना मिली — दिल्ली के बाहरी इलाकों में पटाखों का बड़ा जखीरा जमा किया जा रहा है। कोई सोचे भी नहीं सकता था कि यह जखीरा इतना बड़ा होगा। जब पुलिस की टीम ने गोदाम पर छापा मारा, तो सामने था बारूद से भरा एक कमरा — दर्जनों पेटियाँ, जिनमें चमकीले कागज़ में लिपटे चाइनीज पटाखे रखे थे।
ट्रक, छोटे वैन और ई-रिक्शा के ज़रिए इन्हें बाज़ारों में पहुँचाया जाना था। दिल्ली के दिल में ये ‘बारूद का त्योहार’ मनाने की तैयारी चल रही थी — पर समय रहते पुलिस ने इसे रोक लिया।

पटाखे नहीं, बारूद का जाल

जो पटाखे जब्त हुए, वो वैसे मासूम नहीं थे जैसे बचपन में हम जलाया करते थे। ये चाइनीज पटाखे अंदर से ज़हर भरे थे — इनमें पोटैशियम क्लोरेट और पर्क्लोरेट जैसे ख़तरनाक केमिकल्स मिले थे। ये केमिकल्स ज़रा सी चिंगारी से धमाका कर सकते हैं और हवा में ज़हर घोल देते हैं।
कई बार तो ऐसे पटाखे हाथ में ही फट जाते हैं, और नतीजा होता है ज़िंदगीभर का निशान या किसी की जान चली जाना।

जब सरकार ने कहा — “बस अब और नहीं”

दिल्ली सरकार ने पिछले कुछ सालों से दिवाली पर पटाखों की बिक्री और जलाने पर पूरी तरह बैन लगाया है। वजह भी साफ़ है — ये शहर पहले ही सांस नहीं ले पा रहा। प्रदूषण की परतें हर सर्दी में इसे दम घोंटने पर मजबूर कर देती हैं।
पर फिर भी, कुछ लोग पैसे की लालच में इन बैन को तोड़ देते हैं।
दिल्ली के पर्यावरण मंत्री ने इस कार्रवाई के बाद कहा —
हमारे बच्चों की फेफड़ों की क़ीमत पर कोई त्योहार नहीं मनाया जा सकता। दिवाली रोशनी की है, धुएँ की नहीं।

लोगों की बातें “साँसें चाहिए, पटाखे नहीं”

दिल्ली में अब आम लोग भी समझने लगे हैं कि त्योहार का मतलब सिर्फ़ आवाज़ और धमाका नहीं है।
राजौरी गार्डन की रहने वाली रश्मि वर्मा कहती हैं —
बचपन में पटाखे जलाना मज़ेदार लगता था, पर अब जब अपने बच्चे को खाँसते देखती हूँ तो डर लगता है। खुशियाँ तब ही हैं जब सब स्वस्थ हों।
उधर, लाजपत नगर के एक दुकानदार ने बताया कि अब कई ग्राहक खुद आकर कह रहे हैं — “भाई, पटाखे नहीं, दीए दिखाओ।
शायद लोगों की सोच बदल रही है। धीरे-धीरे ही सही, लेकिन दिशा सही है।

पुलिस की चुनौती और आगे की लड़ाई

पुलिस अब यह जानने में लगी है कि ये पूरा नेटवर्क कहाँ-कहाँ तक फैला हुआ था। बताया जा रहा है कि ये रैकेट दिल्ली, हरियाणा, यूपी और बिहार तक जुड़ा हुआ था। कई लोग हिरासत में लिए गए हैं और पूछताछ जारी है।
साथ ही, अब ऑनलाइन बिक्री पर भी कड़ी निगरानी रखी जा रही है, क्योंकि कई लोग सोशल मीडिया और ई-कॉमर्स साइट्स के ज़रिए भी इन अवैध पटाखों की बिक्री करते हैं।

एक सच्चा सवाल — आखिर दिवाली का मतलब क्या है?

हर साल हम कहते हैं “दिवाली की रोशनी से अंधकार मिटे” —
लेकिन क्या ये पटाखों का शोर वही रोशनी है जिसकी हमें तलाश है?
क्या वो पलभर की चमक, उस सांस की कीमत पर सही है जो किसी बच्चे के फेफड़े में अटक जाती है?
शायद नहीं।
इस बार, दिल्ली पुलिस की कार्रवाई सिर्फ़ कानून का पालन नहीं थी — ये एक याद दिलाने वाली कहानी है कि त्योहार तब ही खूबसूरत होते हैं जब वो सबके लिए सुरक्षित हों।

अंत में.

हो सकता है इस दिवाली आसमान में पटाखों की चमक थोड़ी कम हो,
लेकिन अगर उस जगह थोड़ा साफ़ नीला आसमान दिखे,
अगर बच्चे बिना खाँसे दीए जला सकें,
तो शायद यही असली जीत है।

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