शिक्षा का कोई मोल नहीं होता। लक्ष्मी विद्या नहीं खरीद सकती पर विद्या अपने दम पर लक्ष्मी अर्जित कर सकती है। ये बात जगजाहिर है, लेकिन फिर भी सरकार ने महंगी होती भारतीय शिक्षा व्यवस्था पर शिकंजा कसने के लिए सीबीएसई स्कूलों में प्राइवेट बुक की बजाय एनसीईआरटी बुक लगाने के आदेश दिए हैं। सरकार के इस फैसले से प्राइवेट पब्लिशर्स को बड़ा नुकसान तो होगा ही, लेकिन बच्चों के भविष्य का क्या होगा ये भी सोचने वाली बात है। ये बात सिर्फ टीचर और अभिभावक ही नहीं, खुद स्टूडेंट्स भी जानते हैं कि एनसीईआरटी की किताबों में टॉपिक्स ठीक तरह से अपडेट नहीं किये जाते। सालों से किताबों में एक ही चीज़ छपती आ रही है और तो और जब-तब ये किताबें आउट ऑफ़ स्टॉक ही रहती हैं। वहीं प्राख्यात शिक्षा विद् और मल्टीपल इंटेलिजेंस काउंसलर डॉ. राजीव गुप्ता भी सरकार के फैसले से पूर्णूोतय: सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि स्टूडेंट्स के लिए एनसीईआरटी की किताबें ही काफी नहीं हैं। बल्कि उन्हें चीजों को बेहतर ढंग से समझने के लिए प्राइवेट पब्लिकेशन के बुक को अवश्य पढना होगा। वहीं स्कूली छात्रों का भी कहना है कि उनके लिए एनसीईआरटी की किताबों की अपेक्षा प्राइवेट प्रकाशकों की किताबें काफी बेहतर हैं। क्योंकि एनसीईआरटी की अपेक्षा प्राइवेट किताबों से समझने में आसानी होती है। तो ज़ाहिर सी बात है कि सरकार के इस फैसले से छात्रों का कैरियर भी प्रभावित होगा। जहां एक तरफ़ प्रधानमंत्री जी डिजिटल इंडिया की बात करते हैं, तो ऐसे में हम शिक्षा के मामले में कोई भी समझौता कैसे कर सकते हैं। ऐसे में देखना यह होगा कि इस मामले को लेकर सरकार क्या रुख अपनाती है।