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पुरानी दिल्ली में बहार वाली नाम की गली में वाक़ई जैसे आज भी “बहार” है। गली के निवासी समाजसेवी अहमद सैफी रोज़ाना दिन में दो-तीन बार अपनी गली के कोने-कोने में जाकर सफाई करते हैं। घर-घर जाकर कूड़ा उठाते हैं। इस काम में इनका साथ कुछ सफाई कर्मचारियों के अलावा मोहल्ले के लोग भी देते हैं। इस इलाके में अब कोई सड़क पर रास्ते पर कूड़ा नहीं फेंकता। अहमद भाई की सीटी बजते ही लोग ठेले में कूड़ा डालने आ जाते हैं। वहीं जो पर्दे वाली महिलाएं घर से नहीं निकलती हैं, उनका कूड़ा ये खुद लेकर ठेले में डाल देते हैं। इस सफाई अभियान की शुरुआत अब से बीस महीने पहले तब हुई, जब सफाई-कर्मियों की हड़ताल के चलते पूरी दिल्ली में गली मोहल्लों में कूड़े के ढेर बने हुए थे। “गली बहार वाली” के अहमद सैफी ने अपने मोहल्ले के लोगों के साथ मिलकर तब खुद ही सफाई और कूड़ा उठाने का काम शुरू किया। उस वक़्त चंदा इकट्ठा करके इन लोगों ने झाड़ू और खोमचे खरीदे, जिसका इस्तेमाल सफाई में किया। लोगों ने सहुलियत के हिसाब से टाइम भी दिया, बच्चे भी इस काम में लगे। अहमद सैफी ने तब से अब तक अपनी मुहीम को जारी रखा, जिसका नतीजा भी दिखाई दे रहा है। गली बहार वाली में तब से डेंगू ,मलेरिया जैसी बीमारियों ने भी दस्तक नहीं दी है, इलाके के लोग इस काम के लिए अहमद भाई की तारीफ करते हैं और उनका साथ भी देते हैं। ऐसी करो सफाई, जो सबको दे दिखाई,” ये नारा दिया था, समाज सेवी अहमद सैफी ने जब अपने इस अभियान की शुरुआत की थी।अगर आप भी अपनी गली मोहल्ले में सफाई चाहते हैं, तो बेहतर होगा कि इनसे प्रेरणा लें और खुद ही सफाई का बीड़ा उठाएं, अपने इलाके को साफ़-सुथरा और स्वच्छ रखने का हर संभव प्रयास करें।