धर्म- नवरात्रि के तीसरे दिन माँ चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। मां चंद्रघंटा की आराधना से लोगों के समस्त पाप और बाधाएँ नष्ट हो जाती हैं। माँ भक्तों के कष्ट का निवारण शीघ्र ही कर देती हैं। चंद्रघंटा माँ के मस्तक पर घंटे के रूप का अर्ध चंद्र है। इसी कारण इनको चंद्रघंटा के नाम से जाना जाता है। माता का ये रूप सुखद शांति देने वाला और मनमोहक है। माता का शरीर सोने के समान चमकदार है। माँ के गले में सफेद सुंदर फूलों की माला होती है। माँ के दस हाथ हैं। जोकि सब किसी ना किसी अश्त्र-शस्त्र से सजे हुए हैं। माता शेर पर सवारी करती है। ऐसा माना जाता है कि माता के घंटे की तेज और भयभीत कर देने वाली ध्वनि से असुर, अत्याचारी राक्षस और दानव सभी डरते हैं। ध्वनि सुनते ही असुर, अत्याचारी,राक्षस और दानव गायब हो जाते है। यह भी कहा जाता है कि इस दिन माँ चंद्रघंटा की उपासना करके महिलाओ को अपने घर पर बुलाकर भोजन कराया जाना चाहिए। और भेट स्वरूप उन्हे मंदिर की घंटी दी जाए तो माँ की कृपा सदा भक्तो पर बनी रहती है। इस दिन हरा रंग पहने से माँ चंद्रघंटा अत्यंत प्रसनन होती है और माँ चंद्रघंटा को दूध से बनी साबूदाना खीर अवं मखाना खीर आदि का भोग लगाया जाता है।