Saturday, November 9, 2024
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बदलता भारतीय परिवेश

देश – भारत में अनेक प्रांत है। जिनकी अपनी भिन्न-भिन्न बोलियाँ, भाषायें, वेषभूषा, खान-पान और रहन-सहन है। साथ ही भारत में भिन्न-भिन्न जाति, पंथ, समुदाय व धर्म के लोग रहते है। विश्व का सबसे विशाल लोकतंत्र इन्हें एकता के सूत्र में पिरोने का कार्य करता है। परंतु धीरे-धीरे भारतीय संस्क्रति व परंपराओं का अस्तित्व खतरे में प्रतीत होता है। संस्क्रति किसी भी देश या व्यक्ति के जीवन जीने का आधार होती है। परंतु अब इसी संस्क्रति का अस्तिव खतरे में है। क्योंकि निजीकरण के पश्चात धीरे-धीरे विदेशियों ने भारतीय बाजारों पर प्रभुत्व स्थापित करना प्रारंभ कर दिया। जिसने व्यापार करने के माध्यम से अपनी विचारधारा व संस्क्रति का प्रसार-प्रचार करना शुरू किया और कही न कही वे लोग इसमें सफल होते दिखाई दे रहा है।  कैसे :-

सांस्क्रतिक साम्राज्यवाद के रूप

सिनेमा और कला

अगर हम 1990 से पूर्व का सिनेमा देखे तो स्पष्ट होता है कि उस समय का सिनेमा आज के सिनेमा से भिन्न है क्योंकि वर्तमान सिनेमा के विषय, वातावरण, वेशभूषा इत्यादि। इसके साथ-साथ भारतीय गीत-सगींत भी पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित हुआ है। वर्तमान भारतीय गीत-संगीत में अंग्रेजी शब्द, पाप म्यूजिक इत्यादि पश्चिमी सभ्यता की ही देन है। भरत नाट्यम जैसे न्रत्यों का अस्तिव खतरे में है। जो कि भारतीय संस्क्रति का परिचायक है। जहाँ एक ओर सिनेमा में भारतीय ग्रामों की परंपरा, समाज की समस्याओं का चित्रण, स्वतंत्रता संग्राम इत्यादि को प्रदर्शित किया जाता था। परंतु अब भारतीय सिनेमा में बडे-बडे बंगले व आलिशान घर, महँगी गाडियाँ इत्यादि प्रदर्शित की जाने लगी। इसके साथ ही भारतीय सिनेमा में पश्चिमी कलाकार दिखाई देने लगे है।

खान-पान और रहन-सहन

पश्चिमी सभ्यता ने भारतीय समाज के खान-पान व रहन-सहन को भी प्रभावित किया है। आज समाज में लोगों को साधारण भोजन से अधिक पीजा, बर्गर व चाऊमीन स्वादिष्ट लगती है और बडे-बडे होटलों में खाना पसंद करते है।  इतना ही नहीं, ऐसा करने पर स्वयं को गौरन्वित महसूस करते है। यह ऐसा समय है कि प्रत्येक व्यक्ति बडे माल/शारूम और बडे ब्राण्ड की वस्तु खरीदना पसंद करता है।

मीडिया और हिन्दी भाषा

वर्तमानित हिन्दी भाषा पर भी अंग्रेजी का प्रभाव देखने को मिलता है। अब व्यवहारिक भाषा न  तो पूर्णत: हिन्दी रह गई है, न तो इंग्लिश रह गई। इसी प्रकार रोजमर्रा के जीवन में व्यवहारिक भाषा हिन्दी में अंग्रेजी भाषा के शब्दों का बखूबी से इस्तेमाल करते है। इतना ही नहीं भारतीय मीडिया में भी हिन्दी भाषा पर अंग्रेजी भाषा का प्रभाव देखने को मिलता है। प्रिंट मीडिया में हम हिन्दी का सबसे लोकप्रिय समाचार-पत्र नवभारत टाइम्स की भाषा को उदाहरण के रूप में देख सकते है। जिसमें अंग्रजी भाषा के शब्दों का बखूबी से प्रयोग किये जाते है।

मूल्याकंन

स्पष्ट है कि किस प्रकार से हम भारतीय संस्क्रति को छोडकर पश्चिमी सभ्यता की अग्रेसर हो रहे है और पश्चिमी सभ्यता को विस्तार व प्रचार-प्रसार करने का कार्य में भारतीय समाज ही दोषी प्रतीत होता है। साथ ही भारतीय मीडिया विज्ञापन के माध्यम से समाज की मानसिकता परिवर्तित करने और पश्चिमी सभ्यता या संस्क्रति को व्यापकता देने में अपनी अहम भूमिका निभाई है। अत: किस प्रकार भारत पूर्व में पश्चिमी साम्राज्य के अधीन था और आज भी कहीं न कहीं हम पश्चिमी साम्राज्य के अधीन है। यह भविष्य में भारतीय समाज के अस्तित्व के लिए घातक सिद्ध हो सकता है।

 

 

 

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