देश की राजधानी और लोगों के दिलों की धड़कन कही जाने वाली दिल्ली देश का वो मुख्य स्थान है जहां केंद्र सरकार की तीनों इकांइयां , कार्यपालिका, संसद और न्यायपालिका मौजूद है । इतना ही नहीं भारत में दिल्ली का ऐतिहासिक महत्त्व है, जिसके बिना भारत का इतिहास पूरा नहीं माना जा सकता है। इसके दक्षिण पश्चिम में अरावली पहाड़ियाँ और पूर्व में यमूना नदी अपनी धार से दिल्ली वासियों के दिलों को ठंडक पहुंचाने का काम करती है।। यह प्राचीन समय में गंगा के मैदान से होकर जाने वाले रास्ते का मुख्य पड़ाव था दिल्ली को (भारतीय महाकाव्य ) महाभारत काल में प्राचीन इन्द्रप्रस्थ, की राजधानी के रूप में जाना जाता है। बताया जाता है की 19वीं शताब्दी के आरंभ तक दिल्ली में इंद्रप्रस्थ नामक गाँव हुआ करता था जिसे आज पुरानी दिल्ली के नाम से पुकारते हैं । वहीं अगर दिल्ली की जनसंख्या की बात करे तो यह भारत का दूसरा ऐसा महानगर है जिसकी जनसंख्या कई छोटे देशों को भी पछाती नजर आती है। भारत की राजधानी दिल्ली में कई प्रकार के लोग है और यहां कई प्रकार की भाषाएं भी बोली जाती हैं। दिल्लीवासियों में कोई हिंदी बोलता हैं तो पंजाबी, उर्दू और अंग्रेजी आदि भाषाओं का भी यहां खूब बोलबाला है।
अतीत की बाते
पुराने समय से ही भारत पर शासन करने के लिए बहुत से विदेशी शासक आते रहें हैं फिर चाहे वो गुलाम वंश (1260 – 1290) हो, खिलजी वंश (1290 – 1320) हो, तुग़लक़ वंश (1320 – 1414) हो, सैयद वंश (1414 – 1451) हो या लोधी वंश (1451 – 1526)। तुर्क, अफगान, मुगल, ब्रिटिश कोई भी हो सभी के शासन में दिल्ली का नाम बहुत महत्वपूर्णं रहा हैं। सभी शासको ने दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया और यहा अपनी याद के रूप में किसी ना किसी ईमारत का निर्मान किया।
इतिहास में भी दिल्ली के तख्त को पाने के लिए सभी के बीच तरह तरह के छल-कपट या राजनीतिक गठबंधन से दिल्ली की सत्ता पाने की कोशिश चली आ रही हैं फिर वो कोई राजा हो, महाराजा हो या कोई सुल्तान। हमेशा से ही दिल्ली देश का महत्वपूर्णं अंग रहा हैं, और आज भी हैं। पुराने समय की तरह आज चाहे राजा और प्रजा वाला शासन काल समाप्त हो गया हो परंतु आज भी मुख्यमंत्री का पद किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए बहुत ही जरूरी हो जाती हैं, और इसलिए आज भी सत्ता पाने के लिए राजनैतिक पार्टियां तरह तरह के हथकंडे अपनाती हैं।