Sunday, December 29, 2024
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क्या है दिल्ली के ग्रुप हाउसिंग सोसाइटीज की ख़ुशी का राज

राजधानी दिल्ली का दायरा जब आबादी के बोझ से बढ़ने लगा और सरकार सबको छत देने में असमर्थ दिखने लगी, तब कुछ लोगों ने ग्रुप बनाकर सरकार से जमीन ली और सदस्यों से जुटाए पैसे से बहुमंजिला आवास बनवाया। सरकार ने जान छुड़ाने के लिए सड़क, सीवर और बिजली जैसी सुविधाओं के मेंटेनेंस का जिम्मा भी उन्ही पर थोप दिया। इन्हे ग्रुप हाउसिंग सोसाइटी का नाम दिया गया। इनकी खासियत यह है कि यहाँ लोग एक दूसरे के जितने करीब हैं उतने ही दूर, सभी के दायरे निर्धारित हैं इसलिए कूड़ा, पानी और पार्किंग जैसी समस्याएं पड़ोसियों के बीच झगडे का कारण नहीं बनती। दिल्ली में इनकी संख्या करीब एक हजार की है। लेकिन जो सेल्फ डिपेंडेंस इन ग्रुप हाउसिंग सोसाइटियों की शान हुआ करती थी, उसी के बोझ तले आज इनकी जान निकल रही है। कल तक जो चीज प्रिविलेज लगती थी आज सौतेला व्यवहार लग रहा है ।

इन सोसाइटी वालों का कहना है कि सरकार की तरफ से इसमें फंड नहीं लगने की वजह से मेंटेनेंस का बजट इतना ज्यादा हो जाता है कि कई लोग उसे नहीं पाने की वजह से डिफॉल्टर हो जाते हैं। ऐसा भी नहीं कि इस बाबत इन्होने पहले कभी नेताओं से शिकायत नहीं की और तत्कालीन सरकारों ने उस पर ध्यान नहीं दिया। वर्तमान और पिछली सरकारों ने भी इस दिशा में कदम उठाए थे, लेकिन वो ऊंट के मुंह में जीरे से ज्यादा कुछ साबित नहीं हो पाए। वहीँ वर्तमान सरकार का प्रयास भी पारदर्शिता के आभाव बेअसर होने लगा है ।

जानकारों की मानें तो इन सोसाइटियों की समस्याओं का एक मात्र रामबाण इलाज है एक्ट में बदलाव। जब तक एक्ट में बदलाव नहीं हो पाएगा तब तक इनकी जिम्मेदारियां सरकारी नहीं हो पाएंगी। वर्तमान मोदी सरकार ऐसे पुराने और अव्यवहार्य हो चुके एक्टोन को हटाने के लिए मशहूर है, तो वहीँ इस बार खुद दिल्ली सेलॉटरी बंद कराने वाले विजय गोयल ने आगे बढ़ कर इस मुद्दे को उठाया है, इसलिए इन सोसाइटी वालों को लग रहा है कि शायद इस बार उनकी बात बन जाए। 

    

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