डॉक्टरों पर हिंसा क्या मरे हुए मरीज में जान डाल सकती है ?
क्या डॉक्टरों को पीट कर स्वास्थ्य व्यवस्था को ठीक किया जा सकता है ?
क्या दूसरों को पीट लेने से मौत का दर्द कम हो जाता है ?
नहीं ना, फिर भी क्यों हर बार ये गलती हो ही जाती है, क्या कभी आपने सोचा है कि अपने मरीज के शोक में जिस डॉक्टर को पीट रहे हैं, वह भी आपके मरीज के जितना ही अपने परिवार के लिए महत्वपूर्ण है, वहीँ आपके पीटने की वजह से जाने कितने ही मरीज उस डॉक्टर से मिलने वाली इलाज से मरहरुम रह जाते हैं। सोचिए अगर वे अपना गुस्सा आप पर निकालें तो क्या होगा। इसलिए राजधानी दिल्ली के मशहूर गैस्ट्रो – एंट्रोलॉजिस्ट और वर्ष 2017 बेस्ट गैस्ट्रो क्लीनिक ऑफ़ द ईयर का अवार्ड पाने वाले डॉक्टर कैलाश सिंघला का मानना है कि एक आम इंसान की तरह डॉक्टरों का भी ह्यूमन राइट होता है कम से कम उसका तो सम्मान होना ही चाहिए।
डॉ सिंघला मानते हैं कि अस्पतालों में अव्यवस्था प्रशासन की जिम्मेदारी है, डॉक्टरों की नहीं, डॉक्टर तभी बेहतर सुविधा दे पाएगा, जब उसके अस्पताल में भी इलाज के अच्छे उपकरण हों। उनका कहना है की प्राइवेट अस्पतालों में मशीनें तो होती हैं लेकिन डॉक्टरों का खासा आभाव होता है, इसलिए एक डॉक्टर को ही कई डॉक्टरों का काम करना पड़ता है, वहीँ सरकारी अस्पतालों में तो मशीनें भी नहीं होतीं। और यह सब कुछ ओपीडी, वार्ड या इमरजेंसी में मरीज का इलाज कर रहा डॉक्टर ठीक नहीं कर सकता। इसलिए प्रशासन का गुस्सा डॉक्टरों पर नहीं उतारा जाना चाहिए।
डॉ कैलाश सिंघला को उनकी अमूल्य सेवा के लिए डीएमए इस वर्ष डॉक्टर्स डे पर डॉ बीसी रॉय अवार्ड से सम्मानित किया। बता दें कि डॉ सिंघला इससे पहले इंडियन मेडिकल एसोसियन के बेस्ट ब्रांच प्रेजिडेंट और सर गंगाराम अस्पताल की प्लैटिनम जुबली समारोह पर स्टेट्समैन ऑफ़ हॉस्पिटल का अवार्ड भी अपने नाम कर चुके हैं।