– ख़ुशबू शर्मा, दिल्ली दर्पण टीवी
दिल्ली दंगों के पीछे है सुनियोजित साज़िश, यानि कि ये अचानक नहीं हुए थे बल्कि पूरी योजना से करवाए गए थे. दरअसल दंगाइयों ने पहले से हथियार जमा कर रखे थे. GIA, यानि कि बुद्धिजीवियों और शिक्षाविदों के ग्रुप ने एक रिपोर्ट गृह मंत्रालय को सौंपी जिसमें इन बातों का ख़ुलासा किया गया. GIA ने ये 50 पन्नों की फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट गृहराज्य मंत्री जी. किशन रेड्डी को सौंपी. इस रिपोर्ट में ये साफ-साफ लिखा है कि फरवरी में हुए ये दंगे पूरी तरह प्लैन्ड थे. दिल्ली में दंगा कराने वाले बाहरी लोग थे. इस पूरे दंगे में अपराधी और असामाजिक तत्व शामिल थे जिन्होंने इस दंगे का पूरा फायदा उठाकर लूटपाट और चोरी-चकारी की. ये रिपोर्ट सबूत मांगने वालों को सबक सिखाती है और इसके मुताबिक इन दंगों को शहरी नक्सल और जिहादी नेटवर्क से जुड़े लोगों ने अंजाम दिया था. इसमें कहा गया है कि दंगे की वजह पिछले कई वर्षों से मुस्लिम समुदाय में बढ़ रही कट्टरता भी है. शाहीन बाग मॉडल की वजह से भी एक तनाव जैसा माहौल बनता रहा. रिपोर्ट में इस बात का भी ख़ुलासा हुआ कि दंगों के लिए हथियारों को पिछले कई दिनों से जमा किया जा रहा था. जिहादी भीड़ ने टारगेट हत्याएं की, चुनचुनकर लोगों को लूटा और ख़ास तबके की दुकानों को निशाना बनाया. दिल्ली दंगों के तार विदेशी ताकतों से जुड़े हुए हैं. आईबी ऑफिसर अंकित शर्मा और दिलबर नेगी की बर्बर हत्या में आईएसआईएस के तरीकों का इस्तेमाल किया गया है. साथ ही जेएनयू जैसे विश्वविद्यालय के छात्रों ने भी लोगों को उकसाया है. रिपोर्ट के मुताबिक, सीएए विरोध प्रदर्शन वाली जगहों से दंगों की शुरुआत हुई. सभी विरोध प्रदर्शन की जगहों पर महिलाओं को ढाल की तरह इस्तेमाल किया गया. धरना स्थलों पर लगातार नारेबाज़ी की वजह से स्थानीय लोग भयभीत थे. सड़कों, गलियों और बाज़ारों के पास प्रदर्शनों की वजह से अफरा-तफरी का माहौल रहा. प्रदर्शन हिन्दू विरोधी, भारत विरोधी, पुलिस विरोधी और सरकार विरोधी थे. इन दंगों में महिलाओं को हिंसा की कई वारदातों का सामना करना पड़ा. पीड़ितों में ज़्यादा तादाद अनुसूचित और जनजाति के लोगों की है. दंगाईयों की पहचान होना ज़रूरी है, ज़्यादातर दंगाई बाहरी थे. फैक्ट फाइंडिंग कमिटी की इस रिपोर्ट में दिल्ली पुलिस के साथ-साथ स्थानीय हिंदू-मुस्लिम नेताओं की भूमिका का भी ज़िक्र है. गृह मंत्रालय को सौंपी गई रिपोर्ट में भी राजधानी के स्कूलों को दंगाईयों ने किस तरह अड्डे के लिए इस्तेमाल किया, इसका भी ज़िक्र है. इस रिपोर्ट से ये पूरी तरह साफ़ हो गया है कि दिल्ली को एक सोची-समझी साज़िश के तहत सुलगाया गया.