मन्नत, दिल्ली दर्पण टीवी
परिवार-समाज की समृद्धि और हर व्यक्ति द्वारा ऋतु परिवर्तन का मनाये जाने वाला जश्न इस बार कोरोना संक्रमण के सन्नाटे में खो गया। हिंदू धर्म के अनुसार एकादशी-पूर्णिमा और सत्यनारायण स्वामी की पूजा, मस्जिदों में नमाज पढ़ने, चर्च की प्रार्थनाओं में हिस्सा लेने और गुरुद्वारों में अरदास करने जैसे धार्मिक-अध्यात्मिक अनुष्ठान से लेकर बड़े-बड़े सामाजिक सरोकार और संस्कार को दर्शाने वाले त्यौहार मानो कोरोना की भेंट चढ़ गए।
कोरोना से पड़ा त्योहारों का रंग फिक्का
कोरोना काल के हाल में समाने की शुरुआत त्यौहारों से भरे अप्रैल के बैसाखी, रामनवमी, ईस्टर, नवरोज, रमजान माह से ही हो गई थी। तब संभवतः इसका अंदाजा किसी को भी नहीं था कि उसकी वजह से रामनवमी, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, रक्षा-बंधन, गणेश चतुर्थी और मोहर्रम के बाद दशहरे में आयोजित की जाने वाली सैंकड़ों साल पुरानी रामलीलाओं पर भी ग्रहण लग जाएगा। इनका व्यापक असर सामान्य जन-जीवन पर हुआ। हर किस्म का त्यौहारी माहौल काफी फीका हो गया।
कोरोना काल में हुआ रामलला मंदिर का भूमिपूजन |
लोगों के मन में महामारी को लेकर मायूसी और नीरसता को दूर करने के लिए धार्मिक भावनाओं से मिलने वाले आत्मबल का मनोवैज्ञानिक सहारा भी छिनने जैसा हो गया। यहां तक कि अयोध्याम में दशकों से लंबित रामलाला के लिए भव्य भवन का भूमिपूजन भी कोरोना के साये में संपन्न हुआ। नतीजा लोगों का उत्साह और उमंग भी टीवी के पर्दे तक ही सिमटा रहा।
कोरोना काल में किया नियमो का पालन
यह स्थिति महामारी के संक्रमण को फैलने से रोकने की जरूरत के कारण बनी। इस सिलसिले में चिकित्सा विज्ञानियों के सुझावों को अहमियत दी गई। सरकार के दिशा-निदेर्शों का पालन किया गया। लोगों ने आपसी फासले को कायम रखने की पूरी कोशिश की। साथ ही धार्मिक या सामाजिक स्तर के सामूहिक आयोजनों से लोगों ने पूरी तरह से परहजे भी किया। यह सब करीब छह माह से चल रहा है। इस बीच आवश्यक जरूरतों को ध्यान में रखकर कई छूट मिली चुकी है, फिर भी धार्मिक आयोजनों पर पाबंदियां लगी हुई है।
पूजा-पाठ और त्योहार की ही क्यों बली दी जाए?
सवाल है कि कोरोना काल में केवल आस्थाएं ही क्यों आहत हों? धार्मिक भावनाएं ही क्यों कुचली जाएं? पूजा-पाठ और त्योहार की ही क्यों बली दी जाए? जबकि हम अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए कमर कस चुके हैं? क्या त्योहारों के धार्मिक अनुष्ठानों के लिए हम अनुशासित नहीं बन सकते हैं? कोई तरीका निकाला जाना चाहिए।
आनेवाले दिनों में कई त्यौहार हैं, जिनसे लोगों की गहरी आस्था जुड़ी हुई है। उनमें सबसे महत्वपूर्ण दुर्गापूजा और इस दौरान मंदिरों में आयोजित होने वाली नौरात्राएं हैं। इन्हीं दिनों दिल्ली में जगह-जगह आयोजित होने वाली रामलीलाओं का मंचन भी महत्वपूर्ण है। इन्हीं के साथ पर्व-त्यौहारों के बेहतर आयोजन का अगर हमारा एक संकल्प होना चाहिए, इसके लिए सरकारों को भी कर्तव्य का निर्वाह करना चाहिए।