Friday, November 22, 2024
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कोलीकाता से कोलकाता बनने का सफ़र

संवाददाता, दिल्ली दर्पण टीवी

1 जनवरी 2001 को कोलकाता को उसका आधिकारिक नाम कोलकाता मिला था। हर शहर की अपनी कुछ न कुछ खासियत होती हैं। इस शहर की भी कई खासियत हैं। जैसे दुर्गा पूजा, रसगुल्ले, यहां की भाषा आदि। लेकिन इस शहर का नाम कैसे पड़ा यह जाने बगैर इसका इतिहास अधूरा है।

ये वही शहर है जहां पहली बार मेट्रो दौड़ी थी।आज भी ज्यादातर लोग कोलकाता को कलकत्ता या कैलकटा कहते हैं। पहले भी कोलकाता को कई अलग-अलग नामों से लोग पुकारते थे और आज भी शहर के नाम को लेकर कई लोग उलझन में रहते हैं। इसी उलझन को सुलझाने के लिए सरकार ने शहर को 1 जनवरी को आधिकारिक नाम कोलकाता दिया।

कोलकाता को उत्तर भारत के लोग और हिंदी भाषा बोलने वाले कलकत्ता बोलते थे और बंगाली भाषा के लोग इसे कोलकाता या कोलीकाता बोलते थे और अंग्रेज शहर को कैलकटा बुलाते थे। शहर का बहुत पुराना इतिहास है। कोलीकाता नाम के पीछे भी एक कारण बताया जाता है। कहा जाता है कि इस शहर का नाम काली माता के नाम पर रखा गया है।

इस शहर में एक पुराना काली मां का मंदिर भी है। इस मंदिर का निर्माण महारानी रासमनी ने 1855 में करवाया था। मंदिर की कई मान्यताएं है। लोग दूर दूर से मंदिर में दर्शन के लिए वहां जाते हैं। कोलकाता भारत में सबसे पहले बसने वाले शहरों में से एक है। शहर का कोलकाता हाई कोर्ट देश का सबसे पुराना कोर्ट है।दिल्ली के अलावा कोलकाता भी भारत की राजधानी रह चुका है।

जब अंग्रेजों ने इस शहर को जीता तो उन्होंने कोलकाता को ब्रिटिश इंडिया की राजधानी बनाया था। कोलकाता 1772 से 1911 तक ब्रिटश इंड़िया की राजधानी रही। उसके बाद दिल्ली को राजधानी के रूप में चुना गया। तब से अब तक दिल्ली ही भारत की राजधानी है। इतिहास में चीन और फ्रांसीसी के व्यापारिक दस्तावेजों में कोलकाता बंदरगाह के रुप में दर्ज किया गया है। 

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