Friday, November 8, 2024
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एमसीडी उपचुनाव बन गया सभी दलों के नाक का सवाल

राजेंद्र स्वामी, संवाददाता

दिल्ली।। राजधानी में नगर निगमों की पांच सीटों के लिए हो रहे उप चुनाव में भारतीय जनता पार्टी, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के अतिरिक्त बहुजन समाजवादी पार्टी भी मैदान में है। कोई अपनी जमीन तलाशने में जुटी है तो कोई अपनी स्थिति को मजबूत करने का मंसूबा लिए हुए है। सभी को लगता है इस चुनाव की जीत से उनकी तरफ से लागों में उनकी लोकप्रियता का अच्छा संदेश जाएगा। इसक लाभ उन्हें अगले साल होने वाले एमसीडी के चुनाव में मिल सकता है।


सवाल यह है कि जहां चुनाव हो रहे हैं वहां के लोगों पर इसका क्या फर्क पड़ेगा? क्या लोगों की परेशानियों में कमी आएगी? क्या उन्हें बुनियादी सुविधाएं मिल पाएंगी? क्या क्षेत्र के विकास में चली आ रही बाधाएं दूर हो पाएंगी? इसका जवाब संभवतः न तो किसी उम्मीदवार के पास है और न ही उनके दलों के पास। कारण कायदे से देखें तो पाएंगे कि यह चुनाव मुद्दा विहीन लड़ा जा रहा है। उम्मीदवारों के पास क्षेत्र के विकास और असुविधाओं को दूर करने के लिए कोई ठोस खाका नहीं तैयार किया है। उन्होंने अपने-अपने दलों की नीतियों और उनके दिग्गज नेताओं के बयानों के आधार पर मतदाताओं को रिझाने की कोशिश की है।


राजनीतिक दलों में एमसीडी पर करीब डेढ़ दशकों से काबिज भाजपा से लेकर परंपरागत वोटों की दावेदार कांग्रेस और आज की विकास को नया नजरिया देने वाली पार्टी आम आदमी पार्टी ने वार्डों की समस्याओं से हटकर एक-दूसरे को ही आड़े हाथों लिया है। भाजपा के स्थानीय नेता हों या फिर केंद्रीय नेताओं में उनके सांसद, सभी आप की दिल्ली सरकार पर एमसीडी के वकाए फंड और उससे संबंधित दूसरी खामियां ही गिनवाने का काम किया है। इसके जवाब में आप के नेताओं ने पलटवार करते हुए भाजपा पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है।


इसमें मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तक शामिल हैं। यह अलग बता है कि आप द्वारा दिल्ली में विकास माॅडल की तरह बड़े प्रोजेक्ट के वादे किए गए हैं। चुनावी जनसभाओं में भी उनके बीच आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला बना रहा। कांग्रेस ने भी चुनाव प्रचार में दिग्गज नेताओं को मैदान में उतारा। उसके नेताओं ने भाजपा और आप के कामकाज पर उंगली उठाई। साथ ही अपने कार्यकाल में बेहतर काम की प्रशांसा की और खुद को गरीबों का हितैषी करार देते हुए केंद्र सरकार पर  पेट्रोल-डीजल और गैस के दाम बढ़ने पर निशाना साधा। इनके अतिरिक्त बसपा ने तीनों दलों के खिलाफ आवाज उठाई।

 

कुल मिलाकर देखों तो पाएंगे कि चुनाव प्रचार के दरम्यान जो बातें क्षेत्र के विकास के बारे में की जानी चाहिए थी उनमें कहीं न कहीं कमी रह गई। दिग्गज स्टार प्रचारकों के रोड शो और जनसभाओं में की गई घोषणाओं से अगर प्रत्याशी हासिए पर चले गए, तो मतदाता भी सही उम्मीदवार का चयन करने की दुविधा से घिर गए। बहरहाल, उपचुनाव के बहाने से भाजपा, कांग्रेस, आप और बसपा ने अपनी धार तेज करने की ही कोशिश की है। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि किसे कितनी सफलता मिलती है।

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