Friday, November 22, 2024
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स्कूल खोलने पर लोगों की आवाज हुई बुलंद, पक्ष-विपक्ष के बीच तर्क-वितर्क जारी

संवाददाता, दिल्ली दर्पण टीवी

दिल्ली। कोरोना का कहर कम हुआ तो अब स्कूलों को खुले जाने की आवाजें तेज़ हो गयी है। कहा जा रहा है की बस अब बहुत हुआ अब स्कूलों को खोलने का समय आ गया है, विश्व स्वास्थ्य संगठन और बच्चों के लिए काम करने वाली संस्था यूनिसेफ के क्षेत्रीय निदेशक ताकेश कसई और करिन हलशेफ अपने एक संयुक्त लेख में पुरे ठोस तर्क देकर स्कूलों को सुरक्षा के साथ खोले जाने पर जोर दिया है। यही समाज और बच्चों के चहुमुखी विकास के लिए बेहतर है। 

अपने लेख में इन संयुक्त निदेशकों ने कहा कि लम्बे समय से स्कूल बंद होने के कारण बच्चों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। ऑनलाइन पढाई से उनके सीखने की कला और स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है। 

सोशल मीडिया पर यह विषय वायरल है। अलग अलग संस्थाओं और शख्सियतों ने तो लगता है कि मुहिम ही शुरू कर दी है। ट्विटर पर मोदी सरकार और केंद्रीय मंत्रियों से अपील जा रही है कि सरकार एसओपी (SOP ) बनाएं और जल्द से जल्द स्कूलों को खोलें। लोग सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सवाल पूछ रहे है कि अगर कोरोना 10 साल तक नहीं जाएगा, तो क्या 10 साल तक बच्चे स्कूल नहीं जायेंगे? 

सोशल मीडिया पर ऐसे कंटेंट वायरल हो रहे है जिनमें ऑनलाइन पढ़ाई के साइड इफेक्ट बताए जा रहे हैं। लगातार मोबाइल पर रहने से बच्चे मोबाइल के आदि हो रहे है। इससे उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है। 

स्कूलों को खोले जाने की सलाह देते कई शिक्षाविद्ध ठोस तर्क भी दे रहे है। जिसमें कहा जा रहा है कि कोरोना की दूसरी लहर बच्चों के लिए ज्यादा हानिकारक नहीं रही है। एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया ने अपने एक बयान में कहा है कि ऐसे कोई सबूत नहीं है की कोविड की तीसरी लहर बच्चों के लिए खतरनाक है। एहतियात बरतने से  तीसरी लहर से बचा जा सकता है। ऐसे ही कई संस्थाओं और स्वास्थ्य जगत के जानकारों ने भी कोरोना को बच्चों के लिए ज्यादा हानिकारक मानने से इनकार करते हुए कहा है कि दुनिया भर में ऐसे कोई एविडेंस नहीं मिले हैं। 

कोरोना के चलते लम्बे समय से स्कूल बंद होने से एजुकेशन सेक्टर को भी भारी हानि उठानी पड़ रही है। स्कूलबंदी के चलते दुनियाभर में करीब 1250 बिलियन डॉलर का नुक्सान हुआ है। 

स्कूल बंदी के बाद फीस को लेकर भी स्कूल मैनेजमेंट और अभिभावकों में तकरार बढ़ी रही है। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। अभिभावक कह रहे है कि कई एक्टिविटी कम होने और ऑनलाइन पढाई की वजह से स्कूलों के खर्चे कम हो गए है ऐसे में स्कूलों को फीस कम करने चाहिए। स्कूलों का कहना है कि उनके कुछ ही खर्चे कम हुए है। स्कूलों ने फीस में डिस्काउंट भी दिया है लेकिन यह डिस्काउंट अभिभावकों को कम लग रहा है। अगर स्कूल खुलते है तो दोनों के बीच फीस को लेकर तनातनी काफी कम हो सकती है। 

सबसे बड़ा सवाल उन गरीब बच्चों का है जो गरीबी और संसाधनों के आभाव के चलते ऑनलाइन पढ़ाई नहीं कर सकते ऐसे में उनका क्या होगा? स्कूल में टीचर पढ़ाते हैं तो वे बच्चों के हावभाव भी पढ़ते हैं कि बच्चा कितना गंभीर है। ऑनलाइन पढाई प्रत्यक्ष पढाई का विकल्प नहीं हो सकती। 

दुनिया भर में कई देश ऐतिहात के साथ स्कूल खोल चुके हैं, मीडिया में उनके क्लासरूम की तसवीरें भी प्रकाशित हो रही है। इन सबको देखकर स्कूलों को खोलने की मांग तेज़ होने लगी है। सवाल उठाये जा रहे है कि किसान आंदोलन , चुनावों की भीड़ और बाज़ारों में भीड़भाड़ से कोरोना को क्या ख़तरा नहीं है। ऐसे में यदि स्कूलों को पूरी एहतियात के साथ SOP बनाकर खोल दिए जाए तो बेहतर है। 

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