पुनीत गुप्ता , दिल्ली दर्पण टीवी
नई दिल्ली। देश में कोरोना वायरस के नए वैरिएंट्स का खतरा लगातार बना हुआ है. ऐसे में भारत सरकार जल्द ही कोरोना वायरस टेस्टिंग के नियमों में संशोधन कर सकती है. बदलाव के बाद कोरोना वायरस जांच में लक्षण वाले मरीजों को प्राथमिकता दी जाएगी, बजाय इसके कि उनकी मेडिकल हिस्टी और टीकाकरण की स्थिति क्या है ? ये बदलाव विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के निर्देशों के मुताबिक ही होगा, जिसने कोरोना वायरस संक्रमण की जांच को लेकर ताजा गाइडलाइन जारी की है।
बता दें कि देश में अब तक 32 करोड़ से ज्यादा वैक्सीन की खुराक लोगों की दी जा चुकी है. इनमें से बहुत सारे लोग जो वैक्सीन की दोनों खुराक ले चुके हैं या जो लोग संक्रमण से उबर चुके हैं, उन्हें टेस्ट कराने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं है. लेकिन स्थिति तब बिगड़ जाती है, जब कोरोना के अल्फा, बीटा, गामा, डेल्टा और डेल्टा प्लस वैरिएंट्स के चलते वैक्सीन की दो खुराक लेने वाले भी संक्रमित हो जा रहे हैं।
WHO के मुताबिक अगर संसाधन सीमित हैं और बिना लक्षणों वाले सभी लोगों का टेस्ट करना मुमकिन नहीं है, तो जिन लोगों में संक्रमण का गंभीर खतरा है. जैसे स्वास्थ्य कर्मी, अस्पताल में भर्ती मरीज, लक्षणों वाले मामले या फिर सीमित जगहों पर रहने वाले ऐसे लोग जिनमें लक्षण हों, साथ ही जिन जगहों पर संक्रमण फैला हो, वैसे स्थानों पर लंबे इलाज के लिए बने अस्पतालों को संक्रमण की जांच में प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
इसके साथ ही विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सीरो सर्वे की प्रासंगिकता को भी खारिज कर दिया है, जिसके आधार पर एक बड़ी आबादी की स्क्रीनिंग की जाती है और कोविड सेल्फ टेस्ट की अनुमति दी जाती है. WHO ने कहा है कि कोरोना की जांच सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठानों की देख रेख में होनी चाहिए ताकि बेहतर इलाज और सपोर्ट लोगों को मिल सके और प्रभावी तरीके से संक्रमण की चेन तोड़ने के लिए कॉन्ट्रैक्ट ट्रेसिंग की जा सके