प्रभुशरण तिवाड़ी
नई दिल्ली। आज संपूर्ण विश्व राग, द्वेष, अहंकार के कारण भयानक कष्ट पा रहा है तथा स्वहित के चक्रव्यूह में फंसे देशों की गलत सोच स्वार्थपरक नीति के कारण उसका अभिशाप सब को भोगना पड़ रहा है। वर्तमान की इस विषम परिस्थिति में विश्व को महाराजा अग्रसेन जी के बताए मार्ग पर चलने की आवश्यकता है। उनका दिया ज्ञान उनके दिए 18 जीवन मूल्य सिद्धांत संसार के कष्टों को नष्ट कर आनंद की धारा बहा सकते हैं। जिस प्रकार गंगा मैया के पावन जल से सगर पुत्रों का उद्धार हो गया, उसी प्रकार अग्रसेन जी का संदेश विश्व को क्लेश मुक्त करने में सक्षम है। भागवत सहित अनेक ग्रंथों में भगवान की जो अवतार धारणा है। वहीं अंशावतारों में विशेष लक्ष्य निहित होता है। महाराजा अग्रसेन को कुरुक्षेत्र के मैदान में भगवान श्री कृष्ण का सामीप्य व ज्ञान प्राप्त हुआ और उन्होंने उस को आत्मसात किया तथा अपने जीवन में अपनाकर सबको दिखलाया। उन्होंने अपने पुत्रों, प्रजा एवं विश्व को उच्च जीवन जीने के लिए 18 जीवन मूल्य सिद्धांत बतलाए जो निम्न प्रकार हैं-
- सत्य सत्य से बढ़कर कोई धर्म नहीं है सत्य ही धर्म का आधार है। मन और वाणी के यथार्थ कथन का नाम ही सत्य है। सत्य वह है जिससे सब दुर्गुण सद्गुणों के रूप में परिणित हो जाते हैं। महाराजा अग्रसेन ने इसे जीवन मूल्य का मुख्य आधार माना है।
2.धर्म जो समस्त विश्व को धारण करने वाला है उस सर्वशक्तिमान परमात्मा के विधान का नाम धर्म है। संपूर्ण प्राणी मात्र के अभ्युदय की कामना ही धर्म है।
3.अहिंसा धर्म के अनुसार ईश्वर की संतति की रक्षा, अभ्युदय ही अहिंसा है। सबके मंगल की कामना ही अहिंसा का व्रत है। जिसके कारण ही अग्रसेन जी ने क्षत्रियता का त्याग कर वैश्य वर्ण अंगीकार किया। - क्षमा मन के प्रतिकूल कार्य पर भी संयम प्रतिहिंसा का भाव न होना क्षमा है। श्रेष्ठ पुरुषों को इसे सदैव जीवन में अपनाना चाहिए। इससे विद्वेष स्वतः ही समाप्त हो जाता है।
5.दया मन में दया का भाव ही मानवता की निशानी है। मनुष्य सृष्टि के 84 लाख तरह के प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ है। दया उसका मुख्य आभूषण है। दया का अभाव मनुष्य को दैत्य बना देता है। - पुरुषार्थ महाराजा अग्रसेन ने जीवन में पुरुषार्थ को बहुत महत्व दिया है। पुरुषार्थ से ही मनुष्य जीवन में उन्नति के पथ पर आगे बढ़ता है तथा अपने लक्ष्य को प्राप्त करता है। किसी भी अवस्था में पुरुषार्थ का त्याग नहीं करना चाहिए।
- संयम मनुष्य जीवन में संयम द्वारा ही महानता को प्राप्त कर सकता है। स्वयं पर अनुशासन ही संयम है। संयम से मनुष्य में अपार शक्ति का उदय होता है और वह प्रत्येक कार्य को करने में सक्षम बनता है। महाराजा अग्रसेन ने जीवन पर्यंत संयमित जीवन जिया।
- प्रजा दारिद्रहरण (अंत्योदय) प्रत्येक शासक का मुख्य कर्तव्य है कि वह अपनी प्रजा को संपन्न बनाए। सर्वे भवंतु का उद्घोष राजा का लक्ष्य होना चाहिए। जो सबसे पिछड़ा है उनको उठाना पहला कर्तव्य होना चाहिए।
- पराक्रम पराक्रम ही स्वतंत्रता एवं शांति की पहली सीढ़ी है। जिसमें पराक्रम का अभाव हो गया आतातायी उसे पराधीन कर उसकी स्वतंत्रता छीन लेगा। यह सिद्धांत व्यक्ति, समाज, राष्ट्र सब पर समान रूप से लागू होता है।
- निर्भयता जिसे उन्नति एवं लक्ष्य की प्राप्ति करनी है उसके लिए निर्भय होना बहुत आवश्यक है। निर्भयता को सिद्ध करके ही महाराजा अग्रसेन ने समस्त कामनाओं को सिद्ध किया।
- नारी सम्मान एक नारी व्रत, ब्रह्मचर्य का पालन, गृह लक्ष्मी का सम्मान यह सभी सामाजिक धर्माचरण के कर्तव्य हैं। इनके पालन की शिक्षा महाराजा अग्रसेन ने अपने पुत्रों, प्रजाजनों एवं समस्त मानवता को दी।
- निराभिमान अभिमान मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। अभिमान आते ही मनुष्य संस्कार विहीन होकर अन्यायी बन जाता है। निराभिमानी ही सदैव सर्वहित के कार्य कर अपना विकास कर सकता है।
- विनयशीलता विनयशील होना मानवता व संस्कारित होने की पहचान है।मनुष्य में ज्यों ज्यों गुणों की; अच्छाइयों की वृद्धि होगी उसकी विनयशीलता बढ़ती जाएगी। इससे सद्भाव एवं आपसी प्रेम की वृद्धि होती है। यह मानवता का प्रमुख लक्षण है।
- दान प्रवृत्ति देने की प्रवृत्ति से ही मनुष्य में श्रेष्ठता आती है अन्यथा अपना भला व सब काम तो पशु भी करते हैं। अग्रसेन जी ने जीवन मूल्यों के लिए इसे बहुत आवश्यक माना है।
- शरणागति भगवान राम के वंशज होने के कारण अग्रसेन जी ने शरणागति को मानव का श्रेष्ठ मूल्य सिद्धांत माना है। उन्होंने अपने जीवन में अनेक बार स्वयं इसको प्रदर्शित किया है।
- समानता सभी मनुष्य एक समान हैं, मनुष्य में कोई बड़ा छोटा नहीं होता। सभी समान धर्मा हैं। गुणों एवं विशेषता से सम्मान बढ़ता है। मनुष्य में कोई भेद नहीं है यह महाराजा अग्रसेन विशेष मान्यता थी।
- अभयदान अभयदान श्रेष्ठ मनुष्य का उत्तम गुण है। महाराजा अग्रसेन ने इसे उच्च मानवता बताया है एवं अनेक बार घोर शत्रुओं को अभयदान प्रदान किया।
- भगवत प्राप्ति मनुष्य जीवन का उच्चतम उद्देश्य भगवान की प्राप्ति है। भगवान के साथ एकाकार होना; भगवतमय होना ही श्रेष्ठ जीवन का उद्देश्य व संकल्प होना चाहिए। महाराजा अग्रसेन ने स्वर्ग से आए विमान को लौटा कर केवल भगवत प्राप्ति की इच्छा बतलाई तथा उन्होंने अपने श्रेष्ठ जीवन को संपूर्ण कर अपने अंतिम लक्ष्य मोक्ष (भगवताकार होना) को प्राप्त किया। इन सिद्धांतों को अपनाकर मनुष्य संपूर्ण मानव बन सकता है और विश्व एक सुंदर संसार।