राजेंद्र प्रसाद
दिल्ली। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन बेशक अच्छे इंसान कहे जाते हैं लेकिन अब वे अच्छे और काबिल नेता नहीं रहे। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में लगातार दो बार स्वास्थ्य मंत्री रहे डॉ हर्षवर्धन को मोदी टीम से बहार किये जाने के बाद ऐसा पहले बार हुआ होगा कि बीजेपी के साथ-साथ खुद उनकी कम्युनिटी में भी अंदर ही अंदर ख़ुशी का अनुभव किया जा रहा है।
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल 2014 में जब वे स्वास्थ्य मंत्री बने तो उन्हें कुछ ही समय बाद इस पद से हटा दिया गया। 2019 में दोबारा मोदी सरकार बनी तो डॉ हर्षवर्धन फिर से केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री बन दिए गए। लेकिन दूसरे कार्यकाल में वे न अपना मंत्रालय संभाल पाए और न ही बीजेपी कार्यकर्ताओं को, साथ ही नेताओं को व्यवहार से संतोष कर पाये। सबसे बड़ी बात देश का चिकित्सा वर्ग भी उनसे बेहद नाराज हो गया था। रामदेव और एलोपैथी विवाद ने चिकिस्ता के क्षेत्र में चिंताजनक स्थिति पैदा कर दी। कोरोना काल में देश की चिकित्सा व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गयी।
पूरा सिस्टम कालाबाज़ारियों और अव्यवस्थाओं के हवाले रहा। विपक्ष ने ऑक्सीजन और इलाज की कमी, धीमा टीकाकरण को लेकर तीखे हमले बोले। इनकी निगरानी में प्रधान मंत्री कार्यालय से गठित मंत्री समूह की जिम्मेदारी निभाने में भी वे नाकाम रहे। अब चर्चा है कि डॉ हर्षवर्धन भी बीजेपी के मार्गदर्शक मंडल में शामिल हो गए है। अटल-आडवाणी ,मुरली मनोहर जोशी, जसवंत और यशवंत की तरह उनकी राजनीति भी अब लगभग समाप्त हो गई है। वैसे भी मोदी का मंत्र है कि 65 साल से ज्यादा उम्र वालों को मार्गदर्शन की भूमिका निभानी चाहिए। अब हर्ष वर्धन अब 66 साल के हो गए है।
मामला केवल इतना नहीं है कि डॉ हर्षवर्धन की राजनैतिक जीवन के दिन अब पूरी हो गए है, मामला इससे भी गंभीर है। डॉ हर्षवर्धन के इस्तीफे को लेकर अब विपक्ष सीधे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को आड़े हाथों ले रहा है। पूर्व मंत्री कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने ट्वीट किया “एक अच्छे इंसान को अपनी विफलता छिपाने के लिए बलि का बकरा बना दिया”। इससे यह अंदजा लगाया जा सकता है कि राजनीति में खिल्ली उड़ने वाले कटाक्ष कितने कष्ट देते है।
बीजेपी के स्थानीय नेता खुद व लोकसभा क्षेत्र के लोगों को भी शिकायत रहती थी कि डॉ हर्ष वर्धन उन्हें समय और सम्मान नहीं देते थे। ऐसे में आने वाले समय में यदि कार्यकर्ता भी उन्हें मान नहीं दें तो अपमानित और उपेक्षति महसूस तो करेंगे ही। दिल्ली नगर निगम में के बड़े नेता के अनुसार “डॉ साहब के भी अच्छे दिन अब पुरे हो गए हैं ” दिल्ली नगर निगम चुनाव हो या नगर निगम में मेयर, नेता सदन सहित अलग अलग समितियों के चुनाव, डॉ हर्ष वर्धन के करीबी लोगों को नगर निगम में भाव और जगह कोई ख़ास नहीं मिली।
खुद बीजेपी में चर्चा है कि डॉ हर्षवर्धन सोशल सर्कल में कम सोशल मीडिया में ज्यादा एक्टिव रहते है। उनकी सभी योजनाएं सोशल मीडिया पर चलती है। जनता से फेस टू फेस नहीं फेसबुक पर मिलते हैं। दूसरे कार्यकाल में डॉ हर्ष वर्धन ने अपने चुनाव क्षेत्र की जनता से भी दूरी बना ली। सार्वजनिक आयोजनों में वे आना पसंद नहीं करते थे। जो भी लोग उन्हें निमंत्रण देने जाते है उनसे ठीक से मिल तक नहीं पाते है। लोगों में इसे लेकर काफी टीस है। खुद बीजेपी नेता यह मानते है कि डॉ हर्ष वर्धन को अब खुद ही सियासत से संन्यास ले लेना चाहिए।
डॉ हर्षवर्धन सभी पदों पर रह चुकें है। एक विधायक से लेकर केंद्रीय मंत्री और प्रदेश अध्यक्ष से लेकर मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी तक सभी पदों पर रह चुकें है। लेकिन अब उनकी उम्र, उनकी समझ और स्वाभाव उन्हें सियासत में शायद कहीं का नहीं छोड़ेगा।