Sunday, December 29, 2024
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MCD 2022 : नए चेहरे रहे नाकाम, अब नया एमसीडी बनाने की कवायद में भाजपा

दिल्ली दर्पण
नई दिल्ली।
जब 9 मार्च को दिल्ली चुनाव आयुक्त ने प्रेस कांफ्रेंस बुलाई तब ज्यादातर लोगों ने यही अंदाजा लगाया था कि दिल्ली नगर निगम चुनाव का ऐलान होगा और दिल्ली में आचार संहिता लागू हो जाएगी, लेकिन वास्तविकता कुछ और निकली। चुनाव आयुक्त द्वारा प्रेस कांफ्रेंस यह बताने के लिए बुलाई गई थी कि बहरहाल चुनाव टल गए हैं। कारण रहा केंद्र सरकार से राज्य चुनाव आयोग को मिला एक पत्र जिसमें निगम के एकीकरण का हवाला देते हुए आयोग को चुनाव टालने को कहा गया। चुनाव में देरी की घोषणा के बाद चुनाव लड़ने की तैयारी में जुटे टिकटार्थियों या संभावित उम्मीदवारों के बीच एक असमंजस की स्थिति भी पैदा हो गई है। जानकारों का कहना है कि यदि तीनों निगमों का एकीकरण होता है तो वार्ड क्षेत्र में फिर से बदलाव हो सकते हैं और संभव यह भी है कि कुछ कम आबादी या क्षेत्रफल वाले इलाकों में दो वार्डों को मिला कर एक कर दिया जाए। ऐसे में संभव है कि कई टिकटार्थियों की तैयारी धरी रह जाए और चुनाव लड़ने की मंशा पर एकीकरण का ग्रहण लग जाए।
इस बीच शुक्रवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रेस कांफ्रेंस कर केंद्र पर गंभीर आरोप लगाए और और यहाँ तक कि दिल्ली चुनाव आयोग को भी नहीं बख्शा।
केजरीवाल ने कहा कि भाजपा को पता है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी की लहर चल रही है और निगम चुनावों में उनकी बड़ी हार होने वाली है। इसलिये चुनाव टाले गए हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री मोदी से हाथ जोड़ कर अपील की है कि वह दिल्ली निगम चुनाव न टालें। दिल्ली चुनाव आयुक्त पर आरोप लगाते हुए केजरीवाल ने कहा है कि संभव है उन्हें कुछ लालच दिया गया हो क्योंकि वह अप्रैल महीने में रिटायर हो रहे हैं। क्या रिटायरमेंट के बाद की लालसा ने चुनाव आयुक्त को चुनाव टालने के लिये मजबूर कर दिया है ?

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दूसरी तरफ केजरीवाल के प्रेस कांफ्रेंस के जवाब में भाजपा ने भी पलटवार किया। केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी और भाजपा दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष आदेश गुप्ता ने मीडिया को संबोधित करते हुए आरोप लगाया कि केजरीवाल सरकार ने निगम के 13 हजार करोड़ का फंड रोक दिया जिसके कारण बहुत सारे विकास कार्य बाधित हुए। उन्होंने निगम की बदहाली के लिये केजरीवाल सरकार को ही जिम्मेदार ठहराया।
लेकिन इन सब राजनीतिक आरोप प्रत्यारोप के बीच जमीनी स्तर पर निगम चुनाव की तैयारियों में जुटे संभावित उम्मीदवारों और टिकटार्थियों पर इसका व्यापक असर देखा जा रहा है। कई दावेदारों ने तो प्रचार भी शुरू कर दिया है और अब तक सोशल मीडिया मैनेजमेंट, होर्डिंग
-पोस्टर-बैनर, आचार-व्यवहार और तमाम शिष्टाचार आदि में अच्छे खासे पैसे भी खर्च कर लिये। उनकी स्थिति अब यह है कि किसी बड़े उलटफेर के चक्कर में उदय से पहले ही उनकी राजनीति का अस्त न हो जाए।
2017 निगम चुनाव में जब भाजपा की स्थिति कमजोर लग रही थी तब राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की चाणक्य रणनीति के तहत शीर्ष नेतृत्व से आदेश आया कि निगम चुनाव में तमाम पुराने निगम पार्षदों के टिकट काट कर नये चेहरे मैदान में उतारे जाए। ऐसा ही हुआ और इसका असर भी दिखा। भाजपा लगातार चौथी बार दिल्ली नगर निगम की सत्ता में काबिज हुई। पिछले चुनाव के समय भाजपा ने एमसीडी को आत्मनिर्भर बनाने का नारा दिया था लेकिन नये चहरों के पाँच साल का कार्यकाल खत्म होने के बाद भी निगम की तस्वीर बदलती नहीं दिखाई दी। भाजपा दिल्ली प्रदेश नेतृत्व और निगम में पदों पर बैठे नेता लगातार केजरीवाल सरकार पर फंड्स न देने का आरोप लगाते रहे और निगम की बदहाली के लिये दिल्ली सरकार को जिम्मेदार ठहराते रहे। लेकिन नये चेहरों के साथ पाँच साल में जनता को कुछ नया दिखाने में कामयाब नहीं रहे हैं।
अब जब 2022 के निगम चुनाव आये तो तमाम जानकारों का कहना है कि निगम में इस बार केजरीवाल का जोर दिखेगा और आम आदमी पार्टी की बड़ी जीत होगी। बदलाव की बयार के बीच भाजपा ने फिर नई रणनीति पर काम शुरू किया और सूत्रों की माने तो अब तक यह तय ही नहीं हो सका है कि एकीकरण करें या कुछ और। तमाम प्रयोग पर विचार विमर्श के बीच एकीकरण के नाम पर चुनाव बेशक कुछ दिनों के लिये टाल दिये गए लेकिन अब तक भाजपा का शीर्ष कमान अंतिम निर्णय तक नहीं पहुँच सका है।
बताया जा रहा है कि स्वयं भाजपा प्रदेश के नेताओं को भी अभी तक कोई जानकारी नहीं है कि निगम चुनाव में उनकी रणनीति क्या होगी और किस एजेंडा के साथ वह चुनावी मैदान में उतरेंगे।

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