Friday, November 22, 2024
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Navratri 2022 : देवी माँ के नौ रूप और दैवीय शक्तियों का आह्वान

Navratri 2022 : नवदुर्गा के आराधना का माह है आश्विन माह

दैवीय शक्ति के आह्वान का महीना आश्विन माह है | शक्ति जागरण का माह भी कहते हैं इसे| अपनी जीवनी शक्ति के लिए शक्ति के नए केंद्र से लय स्थापित कर एकाकार होने का माह है अश्विन माह| महिषासुर के आतंक से त्रस्त सभी देव मिलकर जिस शक्ति को जागृत करके उसे अपनी शक्ति प्रदान करते हैं उसी सामूहिक शक्ति का नाम दुर्गा है| दुर्गा के नौ रूप की आराधना नवरात्रि में की जाती है| देवी कवच में शक्ति के नौ रूप क्रम से इस प्रकार हैं-प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।।नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।।

1 – शैलपुत्री – मूलाधार चक्र की अधिष्ठात्री देवी हैं| इनका वाहन वृषभ है| नवरात्रि के पहले दिन इनकी आराधना की जाती है| शास्त्रों में ऐसा वर्णन मिलता है कि कुंडली में चंद्र जन्य दोषों के निवारण के लिए शैलपुत्री की आराधना की जानी चाहिए|

2 – ब्रह्मचारिणी – नवरात्रि के दूसरे दिन इनकी आराधना की जाती है| स्वाधिष्ठान चक्र की अधिष्ठात्री देवी के रूप में भी इनकी आराधना की जाती है| अपने आचरण में विशेष सकारात्मक बदलाव किस प्रकार किये जाएं कि संघर्ष के समय में और कठिन परिस्थितियों में मन विचलित न हो, इसका ज्ञान हमें दुर्गा के ब्रह्मचारिणी रूप की आराधना से होता है| कुंडली में उपस्थित मंगल जन्य दोषों के निवारण के लिए ब्रह्मचारिणी की उपासना की जानी चाहिए|

3 – चन्द्रघण्टा – नवरात्रि के तीसरे दिन इनकी आराधना की जाती है|

मणिपुर चक्र की अधिष्ठात्री देवी के रूप में भी इनकी आराधना की जाती है| इनकी आराधना से प्रकृति का रहस्य धीरे धीरे प्रकट होने लगता है और हमारे भीतर का अनावश्यक भय समाप्त होने लगता है| घंटे की ध्वनि से नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह शुरू होता है| कह सकते हैं की देवी के इस रूप की आराधना का विशेष महत्व है| ये इतनी शक्तिशालिनी हैं की प्रारब्ध के लिखे को भी बदलने की सामर्थ्य रखती हैं| इनकी आराधना से जीवन यात्रा निर्बाध हो जाती है|

4 – कूष्माण्डा – नवरात्रि के चौथे दिन इनकी आराधना की जाती है| अनहत चक्र की अधिष्ठात्री देवी के रूप में इनकी आराधना की जाती है| ब्रह्माण्ड के सृजन के मूल में जो शक्ति निहित है उसे समझने के लिए शक्ति के कुष्मांडा रूप की अवधारणा है|नव सृजन का डिम डिम घोष करने वाली शक्ति के रूप में इनकी आराधना की जाती है| सूर्य ग्रह पर इनका आधिपत्य है| कुंडली में यदि रोग देने वाले ग्रहों की दशा चल रही है या अन्य किसी भी प्रकार की व्याधि का संकेत मिल रहा है, तो शक्ति के इस रूप की आराधना की जानी चाहिए| इनकी आराधना से रोग का समूल नाश होता है और आरोग्य एवं बलि काया की प्राप्ति होती है|

5 – स्कंदमाता – नवरात्रि के पांचवें दिन इनकी आराधना की जाती है| विशुद्धि चक्र एवं नव चेतना के निर्माण की अधिष्ठात्री देवी के रूप में इनकी उपासना की जाती है| बुध ग्रह पर इनका आधिपत्य है| कहते हैं कि एक निरक्षर व्यक्ति भी इनकी आराधना से साक्षर तो होता ही है असीमित ज्ञान को भी प्राप्त करता है|

6 – कात्यायिनी – नवरात्रि के छठे दिन इनकी आराधना की जाती है| आज्ञा चक्र की अधिष्ठात्री देवी के रूप में इनकी आराधना की जाती है| इनकी उपासना से चारों पुरुषार्थ की सहज ही प्राप्ति होती है| वृहस्पति ग्रह पर इनका आधिपत्य होने की वजह से सभी प्रकार के शोध कार्य और व्याकरण रचना इनके अधिकार क्षेत्र में आता है| कुंडली में यदि वैज्ञानिक बनने का याग है, उच्च श्रेणी के शोधकर्ता होने का योग है, वैय्याकरण बनने का योग है तो उसकी प्राप्ति के लिए शक्ति के कात्यायिनी स्वरुप की पूजा की जानी चाहिए|

7 – कालरात्रि– नवरात्रि के सातवें दिन इनकी आराधना की जाती है| सहस्त्रार चक्र की अधिष्ठात्री देवी के रूप में इनकी आराधना की जाती है| इनकी उपासना से समस्त आसुरी शक्तियों का नाश होने लगता है और सिद्धि प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है| इनकी उपासना से भी सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा का क्षय होता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार आरम्भ होता है| व्यक्ति निर्भीक और निडर हो जाता है|

8 – महागौरी – नवरात्रि के आठवें दिन इनकी आराधना की जाती है| गौर वर्णी हैं ये| संचित सभी प्रकार के पाप कर्मों का नाश इनकी आराधना से हो जाता है| कुंडली में वैवाहिक जीवन से सम्बंधित दोष यदि है तो देवी के महा गौरी रूप की उपासना की जानी चाहिए|

9 – सिद्धिदात्री – नवरात्रि के नौवें दिन इनकी आराधना की जाती है| नौ दिवसीय उपासना में ये अंतिम देवी हैं| मान्यता है कि इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। मन की अधिष्ठात्री देवी के रूप में इनकी आराधना की जाती है| कुंडली में यदि मनोचिकित्सक बनने का योग है तो इनकी आराधना की जानी चाहिए| कुछ लोग, जीवन में हलकी सी कोई लहर आते ही निराशा के चपेट में चले जाते हैं| वे यह सोचने लगते हैं कि, उनके जीवन में कभी कुछ अच्छा घटित ही नहीं होगा| सारी अच्छी घटनाएं दूसरों के जीवन में ही घटित होंगी| निराशावादी व्यक्ति धीरे धीरे अपने आपको हर एक संबंधों से काटता चला जाता है| निराशा इस कदर बढ़ती जाती है कि इसकी वजह से व्यक्ति अवसाद/ विषाद के चपेट में जाता है और यहाँ तक कि आत्महत्या तक कर लेता है|

इन सबसे पार पाने के लिए शक्ति के इस रूप के शरणागत हो जाना चाहिए|नौ दुर्गा से शक्ति प्राप्त करके अपने शरीर के भीतर मौजूद चक्रों को ऊर्घ्वाकर गति दीजिए|अपनी अपनी कुंडली को जानिए| कुंडली का प्रथम भाव से लेकर अष्टम भाव तक संचारित होने वाले ऊर्जा के प्रवाह को जानिए| उसके साथ एकात्म स्थापित कीजिये , निर्भीक और निडर होकर सांसारिक कर्मों में प्रवृत होइए| स्वयं को पहचानिये| स्वयं में अन्तर्निहित ऊर्जा से सम्बन्ध स्थापित कीजिये| इसको जब आप जान लेंगे तो समय रहते स्वयं में छोटे छोटे परिवर्तनों के द्वारा रोग पर विजय प्राप्त करके ऊर्जा से भरपूर नए जीवन की शुरुआत करेंगे| इन सभी के द्वारा आप अपने लक्ष्य तक पहुँचाने वाली मार्ग के बारे में जान सकेंगे| एक बात याद रखिए कि ईश्वर ने आपके जैसा सिर्फ आपको ही बनाया है| कोई दूसरी प्रति नहीं बनाई है| आप अद्वितीय और अप्रतिम हैं|अंत में एक बात याद रखिए- “नाभिषेको न संस्कारः सिंहस्य क्रियते वने |विक्रमार्जितसत्वस्य स्वयमेव मृगेन्द्रता ||” शेर को किसी संस्कार के द्वारा जंगल का राजा नियुक्त नहीं किया जाता बल्कि वह अपने बल पर राजपद हासिल करता है|या देवी सर्वभूतेषु शक्ति -रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः || @

बी. कृष्णा नारायण

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