निरीक्षण रिपोर्ट : क्षेत्र में हो रहा भूस्खलन और तेजी से चटक रहा ग्लेशियर
दिल्ली दर्पण टीवी ब्यूरो
रुद्रप्रयाग केदारनाथ आपदा में व्यापक तबाही मचाने वाला चोराबाड़ी ताल छह वर्ष बाद पुनर्जीवित हो रहा है। हालांकि इस बार केदारनाथ क्षेत्र को इसमें कोई खतरा नहीं है। चोराबाड़ी ताल फिर से पानी से लबालब भरा हुआ है। ताल के चारों ओर ग्लेशियर फैला हुआ है, जो टुकड़ों में टूट रहा है। यहां भूस्खलन हो रहा है लेकिन इसमें केदारनाथ क्षेत्र को कोई खतरा नहीं है। भू वैज्ञानिक जल्द ही क्षेत्र का जायजा लेंगे। साथ ही जिला आपदा प्रबंधन की टीमें भी चोराबाड़ी पहुंचकर वहां के हालातों का निरीक्षण कर रिपोर्ट जिलाधिकारी को सौंपेंगी।
दरअसल 16-17 जून 2013 को केदारनाथ में व्यापक तबाही मचाने वाले चोराबाड़ी ताल के खुले मैदान जैसे हिस्से में इस वर्ष भरपूर पानी जमा हो रहा है। यहां चारों ओर कई फीट मोटी बर्फ की चादर है। बीते 15 जून को सिक्स सिग्मा के सीईओ डॉ. प्रदीप भारद्वाज के नेतृत्व में केदारनाथ से चोराबाड़ी पहुंची उनकी टीम ने पूरे क्षेत्र का जायजा लिया। डॉ. भारद्वाज ने बताया है कि चोराबाड़ी में जगह-जगह पर भूस्खलन हो रहा है। साथ ही ग्लेशियर भी तेजी से चटक रहा है। आपदा में ताल का मुहाना (स्रोत) फूटने से जो मैदान बना था, वह इन दिनों पानी से लबालब भरा हुआ है। जमा पानी की गहराई करीब चार मीटर तक है।
इसके आसपास बड़े बोल्डर और कई जगहों पर जमीन दरकने से पानी का बहाव भी कम है, जिससे निचले हिस्से को खतरा नहीं है।
वाडिया हिमालय भू विज्ञान संस्थान देहरादून के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. डीपी डोभाल ने कहा कि चोराबाड़ी ताल से केदारपुरी व मंदिर क्षेत्र को आने वाले पांच दशकों तक किसी भी प्रकार के नुकसान की कोई आशंका नहीं है लेकिन फोटो से जिस तरह से ताल के खुले हिस्से में पानी जमा दिख रहा है, उसका स्थलीय निरीक्षण व भूगर्भीय अध्ययन जरूरी है। जल्द यहां पहुंचकर इस पूरे क्षेत्र का सर्वेक्षण कर हालातों का जायजा लेंगे। भावी संभावनाओं को लेकर भी चोराबाड़ी ताल व ग्लेशियर का अध्ययन किया जाएगा।
रुद्रप्रयाग के जिलाधिकारी के मंगेश घिल्डिया ने बताया कि चोराबाड़ी ताल व पूरे क्षेत्र का भू वैज्ञानिकों के माध्यम से अध्ययन किया जाएगा। इस बारे में वाडिया संस्थान के विशेषज्ञों से बातचीत हो रही है। साथ ही सिक्स सिग्मा के लोगों से भी वहां के बारे में पूरी जानकारी ली गइ है।
दरअसल साल 2013 में केदारनाथ धाम में आई विनाशकारी आपदा में लापता हुए लोगों का दर्द आज भी उनके परिजनों के चेहरों पर साफ दिखाई पड़ता है। 9 साल बाद भी इस आपदा के जख्म नहीं भरे हैं. इस आपदा में बड़ी संख्या में यात्री और स्थानीय लोग चपेट में आ गए, आज तक इन लोगों का पता नहीं चल पाया है. केदारघाटी के अनेक गांवों के साथ ही देश-विदेश से आए तीर्थयात्रियों ने आपदा में जान गंवाई। साल 2013 में 16-17 जून को आई इस आपदा में कम से कम 6000 लोग मारे गए थे, तब कई दिनों से हो रही मूसलाधार बारिश और फिर चौराबाड़ी झील के फटने से राज्य का यह हिस्सा तहस नहस हो गया था। अमूमन सौम्य दिखने वाली मंदाकिनी रौद्र रूप में आ गई. असल में मरने वालों की संख्या आधिकारिक आंकड़े से कहीं अधिक है।
साल 2013 में केदारनाथ धाम में आई विनाशकारी आपदा में लापता हुए लोगों का दर्द आज भी उनके परिजनों के चेहरों पर साफ दिखाई पड़ता है. हालांकि, आपदा के नौ साल गुजर गए हैं, लेकिन इस प्रलयकारी आपदा के जख्म आपदा की बरसी पर फिर से ताजे होते चले जाते हैं. इस भीषण आपदा में अब भी 3,183 लोगों का कोई पता नहीं चल सका है। 16 और 17 जून 2013 की भीषण आपदा में बड़ी संख्या में यात्री और स्थानीय लोग इस आपदा की चपेट में आ गए थे। आज तक इन लोगों का पता नहीं लग पाया है। केदारघाटी के अनेक गांवों के साथ ही देश-विदेश से आए तीर्थयात्रियों ने आपदा में जान गंवाई थी। सरकारी आंकड़ों को देखें तो पुलिस के पास आपदा के बाद कुल 1840 एफआईआर दर्ज हुईं थी। बाद में पुलिस ने सही तफ्तीश करते हुए 1256 एफआईआर को वैध मानते हुए कार्रवाई की. पुलिस के पास 3,886 गुमशुदगी दर्ज हुई, जिसमें से विभिन्न सर्च अभियानों में 703 कंकाल बरामद किए गए।
बड़े पत्थर ने बाबा के मंदिर को किया था सुरक्षित: कहा जाता है मंदिर के ठीक पीछे ऊपर से बहकर आए एक बड़े पत्थर ने बाबा के मंदिर को सुरक्षित कर दिया था. आज उस पत्थर को भीम शिला के नाम से जाना जाता है। इस प्रलय में 2241 होटल, धर्मशाला एवं अन्य भवन पूरी तरह ध्वस्त हो गए थे. पुलिसकर्मियों ने अपनी जान पर खेलकर करीब 30 हजार लोगों को बचाया था। यात्रा मार्ग एवं केदारघाटी में फंसे 90 हजार से अधिक लोगों को सेना द्वारा सुरक्षित बचाया गया।