उर्मिलेश-
इनसे या इनकी पार्टी से मेरी कभी वैचारिक या व्यक्तिगत सम्बद्धता नहीं रही. हां, इन महाशय की कुछ बातें मुझे अच्छी लगती हैं, जैसे कई बातें बिल्कुल पसंद नहीं आतीं! पर इस तस्वीर को भला कोई कैसे पसंद नहीं करेगा! बहुत समय बाद किसी राजनीतिज्ञ की सभा का ऐसा दृश्य देखने को मिला.
गीताश्री-
यह तस्वीर न होती तो मैं फ़ेसबुक पर न लौटती …. कम से कम इस साल ! यह तस्वीर मैं सहेज कर रखना चाहती हूँ… मैंने इससे सुंदर तस्वीर हाल -फ़िलहाल कहीं नहीं देखी. मेरे ज़ेहन में चिपक गई है… तस्वीर नहीं, एक युग का मुकम्मल बयान है. मेरी धुँधलाती आँखें थोड़ी और चमक उठी हैं… कानों ने बहुत कुछ सुन लिया है ….
हरेंद्र मोरल-
भाजपा के उभार के दौर में आंखें खोलने से लेकर कुछ समय पहले तक सारे वोट भाजपा को ही दिये। ना हिन्दू देखा ना मुसलमान बस भाजपा पर ही ठप्पा मारते रहे…क्यों। क्योंकि सामने अटल बिहारी वाजपयी क़ा वो सौम्य चेहरा था जिसपर यकीन करने को दिल करता था। जिसे देखकर लगता है राजनीति कितनी भी बुरी हो ये आदमी बुरा नहीं हो सकता और इसके होते उसकी पार्टी भी बुरी नहीं हो सकती। और अटल जी ने हम जैसे कितनों क़ा वो विश्वास जीते जी बनाए रखा।
अब ना अटल रहे ना वो भाजपा, लेकिन अब उनकी जैसी ही संजीदगी धीरे धीरे इस आदमी में दिखाई दे रही है पार्टी में वो ईमानदारी कब आती है लेकिन पता नहीं।
रह रहकर अब इस चेहरे पर यकीन गाढ़ा होता जा रहा है की छल कपट और धार्मिक उन्माद में लिपटी इस राजनीति में कुछ उम्मीद इस चेहरे पर की जा सकती है और मुझे ये यकीन है।
विक्रम नारायण सिंह-
इस तस्वीर पर कल से सब लिख रहे हैं और मैं पढ़ रहा हूँ. अब जो शब्द मित्रों के लिखने के बाद बचे रह गए हैं वह लिख रहा हूँ यह कालजयी, शाश्वत तस्वीर है,इस सदी के भारत के महान नेता की तस्वीर है.आंधी, तूफान और बारिश के बीच एक जननेता का जनता से संवाद है.देश के प्रधानमंत्री ने अपने फोटोग्राफी के शौक में 50 करोड़ तो खर्च ही कर दिए हैं फिर भी उनकी एक ऐसी जीवंत तस्वीर नहीं है,हो ही नहीं सकता.क्योंकि कद इंसान का उनके पद,पैसे व पॉवर से बड़ा नहीं होता.
कद ऊंचा होता है तब जब मूसलाधार बारिश में शरीर को पीटती तेज बारिश,आंखों को चुभती बड़े बूंदों के बीच आप अडिग माइक पर खड़े हो जनता को संबोधित कर रहे हो और उसी तरह भींगती जनता आपको सुनने को तैयार है,बैठने के लिए लाई कुर्सियों को उल्टा सिर पर छाता बना दिये हैं.
यह वह समय है जब बारिश बाधा नहीं जरिया बन रही है जनता और राहुल के बीच.राहुल गांधी वर्तमान प्रधानमंत्री के कद से 100 गुना बड़े इंसान हैं.चुनावी हार जीत राहुल गांधी के लिए मायने नहीं रखता. वे देश की जनता के दिल में हैं. ऐतिहासिक भारत जोड़ो यात्रा में खुद को शामिल होने से नहीं रोक पा रहा हूँ, इस तस्वीर ने उद्देलित कर दिया है और जल्द भारत जोड़ो में शामिल होने साउथ जाऊंगा.आगे आने वाली पीढ़ी जब कभी हमसे तानाशाही के दौर और हमारी चुप्पी पर सवाल पूछेगी तो जवाब में यह भारत जोड़ो यात्रा और राहुल गांधी के साथ पैदल चलना जवाब होगा.
अव्यक्त-
बारिश में भींगती पदयात्रा …
(इतिहास पढ़ते रहना चाहिए। इतिहास सोशल मीडिया के जमाने से ही शुरू नहीं होता। तब हर बात पर, बात- बेबात, न भूतो, न भविष्यति कहने की आदत नहीं बनेगी)
साल 1954 में विनोबा की पदयात्रा बिहार में चल रही थी। फ्रांस के Lanza Del Vasto जिन्हें गांधीजी ने ‘शांतिदास’ का नाम दिया था, वे भी विनोबा के साथ थे। उन्होंने विनोबा की कुछ अद्भुत पेंटिंग भी बनाई थी।
लेकिन खास बात थी कि इटली के प्रसिद्ध फोटोग्रफर/फोटोजर्नलिस्ट फ्रैंक होरवाट पिछले डेढ़ साल से इस यात्रा को कवर कर रहे थे। उन्होंने विनोबा की कुछ बेहतरीन तस्वीरें खींची हैं जो फोटोग्रफी कला की दृष्टि से भी कमाल की हैं।
उनमें से एक तस्वीर बिहार के समस्तीपुर जिले (उन दिनों दरभंगा) के शुंभा ड्योढ़ी गाँव की है। 20 अगस्त, 1954 को कृष्णाष्टमी का दिन था। पहले से ही वहाँ बाढ़ की स्थिति थी। विनोबा कहीं कमर-भर तो कहीं छाती भर पानी में चलकर वहाँ पहुँचे थे।
मूसलाधार बारिश हो रही थी। आतिथ्य सत्कार को कौन कहे, भोजन-भात की भी व्यवस्था नहीं थी। ग्रामीणों ने पड़ोस के गाँव से रसोई तैयार कर नावों से किसी तरह पहुँचाई थी।
विनोबा जब बारिश में भींगते हुए ही बोलने को खड़े हुए तो उन्होंने चारों तरफ हज़ारों की भीड़ देखी। कुछ मनुष्य अपनी छतरी ताने अपनी धोती भींजने से बचा रहे होंगे, लेकिन विशाल जनसैलाब विनोबा के साथ भींगते हुए उन्हें सुन रहा था।
विनोबा ने बाद में उसे ‘देवदुर्लभ दृश्य’ कहा। यह भी कहा कि ‘मुझे तो वहाँ विश्वरूप का ही साक्षात्कार हुआ।’
लेकिन विनोबा के साथ ही इस ‘देवदुर्लभ दृश्य’ को फोटोग्रफर फ्रैंक होरवाट भी भींगते हुए अपने 50 एमएम वेदर-शील्ड लाइका लेंस से पकड़ने की कोशिश कर रहे थे। इस फोटो में वह कोशिश कामयाब होती दिखती है।
इस दौरान की दो दिलचस्प घटनाएँ उल्लेखनीय हैं। बाढ़ के हालात में विनोबा को ज़मीन मांगते देख एक जमींदार ने झुंझलाकर कहा — ‘इधर हम मरे जा रहे हैं और आप जमीन का दान मांग रहे हैं!’
इसपर विनोबा ने कहा — ‘तो क्या मरने से पहले आप दान करना पसंद नहीं करेंगे?’
इस पर सबलोग हँस पड़े और उस तमतमाए हुए भाई को भी जोर की हँसी आ गई।
एक दूसरी घटना हुई। विक्रमगंज के नटवार में विनोबा को सुनने के लिए चालीस-पचास हजार मनुष्यों की भीड़ जुटी थी। लेकिन बच्चे उन्हें देख नहीं पा रहे थे। पच्चीस-तीस बच्चे दूर के किसी टीले पर खड़े होकर विनोबा को देखने की कोशिश करने लगे।
एक युवक ने जब किसी तरह विनोबा को जाकर यह बात बताई तो विनोबा मंच पर से कूद पड़े और भीड़ को चीरते हुए उन बच्चों के पास जा पहुँचे। वे उन नन्हें बच्चों के साथ बच्चे की ही तरह कूदने, नाचने और खेलने लगे।
होरवाट की खींची इस तस्वीर में छाताधारियों के बीच भींगते बूढ़े विनोबा ही नहीं हैं। एक रहस्य बालक और विनोबा के बीच आँखों से ही हो रहा मौन संवाद भी है जिसमें वे संभवतः एक-दूसरे की ओर ही देखते प्रतीत होते हैं।
नवनीत चतुर्वेदी-
बारिश में भीगते हुए एक प्रमुख विपक्षी नेता के वायरल फोटो पर समर्थक लहालोट हुए जा रहे हैं.औऱ दूसरों से ये अपेक्षा की जा रही हैं कि हिम्मत है तो तुम भी इस तरह की फिटनेस बना कर दिखाओ, बारिश में भीग कर दिखाओ, रोजाना 25किमी चल कर दिखाओ!!
अब राजनीति में क्या यही बाकी रह गया हैं कि स्वयं को सिद्ध करने के लिए अब दूसरे नेताओं को तरह तरह के स्टंट कर के दिखाने होंगे!!
यदि कल को कोई दांत से रस्सी पकड़ कर ट्रक खींच दें
आग के गोले में से कूद कर दिखाए
मौत के कुंवे में बाइक चला कर दिखाए
तो क्या वो प्रधानमंत्री कैंडिडेट बना दिया जायेगा??
मुल्क में बेरोजगारी इतनी हैं यदि आज कह दिया जाए कि फलाना जॉब के लिए बारिश में ही एग्जाम होगा या फॉर्म भरने के लिए बारिश में ही लाइन लगाओ तो कितनी ही तेज बारिश हो लाखों युवा लाइन में लग जायेंगे
तो क्या सभी को जॉब दे दी जाएगी कि भाई तुम बारिश में भीग गए हो वाह्ह्हह्ह्ह्ह क्या बढ़िया फोटू आईं हैं…
Dear कांग्रेस के मित्रों बारिश में भीगने से वोट नहीं मिलते हैं
यहां गुजरात में देखो पाँव के नीचे से जमीन गायब कर दी गई हैं (साभार : भड़ास फॉर मीडिया )