दिल्ली दर्पण टीवी ब्यूरो
बढ़ता वजन ना सिर्फ पर्सनालिटी को खराब बनाता है बल्कि कई तरह की बीमारियों का भी शिकार बनाता है। महिलाएं बढ़ते मोटापा को कंट्रोल करने के लिए सबसे ज्यादा जतन करती हैं। मोटापा को कम करने के लिए महिलाएं तरह-तरह के आयुर्वेदिक नुस्खे अपनाती है, कई तरह का डाइट पैटर्न फॉलो करती हैं फिर भी उन्हें मनचाही बॉडी नहीं मिलती। पुरुषों की तुलना में महिलाएं ज्यादा हेल्थ कॉन्शियस होती हैं और वजन को कम करने के लिए इंटरमिटेंट फॉस्टिंग पर जोर देती हैं। वजन कम करने के लिए महिलाएं इसे बेहतर तरीका मानती हैं।
महिलाओं का मानना है कि इस फॉस्टिंग में वजन घटाने में वीकनेस नहीं होती। ये सच है कि वजन घटाने के लिए इंटरमिटेंट फास्टिंग बेस्ट ऑप्शन हैं लेकिन एक रिसर्च में ये बात सामने आई है कि वजन घटाने का ये तरीका महिलाओं की प्रजनन क्षमता को नुकसान पहुंचाता है। मोटापे पर एक अध्ययन प्रकाशित किया गया है जिसमें ये बात सामने आई है कि इंटरमिटेंट फास्टिंग से महिलाओं में प्रजनन हार्मोन पर असर पड़ता है।
प्रजनन क्षमता को प्रभावित करता वेट लॉस का ये तरीका:
हाल ही में, शिकागो में इलिनोइस विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने मोटापे पर एक अध्ययन प्रकाशित किया जिसमें ये बात सामने आई है कि वेट लॉस करने का ये तरीका महिलाओं में इनफर्टिलिटी की परेशानी बढ़ा सकता है। आइए जानते हैं कि कैसे इंटरमिटेंट फास्टिंग करने से महिलाओं में प्रजनन हार्मोन प्रभावित होता है।
हालांकि इंटरमिटेंट फास्टिंग वेट लॉस के लिए परखा हुआ सफल फार्मूला है लेकिन कुछ मामलों में यह महिलाओं के प्रजनन अंगों को नुकसान पहुंचा सकता है। शिकागो यूनिवर्सिटी को शोधकर्ताओं ने मोटापे से पीड़ित कुछ महिलाओं पर एक शोध किया है जिसमें कुछ महिलाएं मेनोपॉज से गुजर रही थीं जबकि कुछ महिलाएं मेनोपॉज से पहले की थी। 8 सप्ताह तक इन महिलाओं ने इंटरमिटेंट फास्टिंग की। ये महिलाएं या तो वेरियर डाइट ले रही थीं या इंटरमिटेंट डाइट पर थी। वेरियर डाइट में चार घंटे बाद खाना होता है जिसमें कैलोरी की गिनती नहीं होती। इसके बाद बिना पानी एक दिन तक भूखा रहना होता है।
शोधकर्ताओं ने इन महिलाओं के हार्मोन लेवल की जांच की। 8 सप्ताह के बाद देखा गया कि दोनों तरह से फास्ट करने वाली महिलाओं के ग्लोबुलिन हार्मोन में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। यह एक प्रोटीन है जो रिप्रोडक्टिव हार्मोन में ट्रांसपोर्ट करता है। लेकिन ट्रायल के अंत में पाया गया कि मेनोपॉज और बिना मेनोपोज वाली महिलाओं में डिहाइड्रोइपियानड्रोस्टेरोन के लेवल में 15 प्रतिशत की कमी आ गई जो एक फर्टिलिटी हार्मोन होता है।