जबर सिंह
आजादी का अमृत महोत्सव हम सब मना रहे हैं. मनाएंगे भी. यह लोकतांत्रिक देश, तिरंगा और भारत का संविधान हमारा है, हमारी आन, बान और शान है, जो हमें विरासत में मिला और इस दुनिया में हमें सबसे अलग, खूबसूरत और गौरवान्वित कराता है. ये सब हमें गांधी, अंबेडकर, नेहरू, भगत सिंह जैसे महापुरुषों की बदौलत विरासत में मिला है. लेकिन बीते 75 सालों में हम एक गरीब, मासूम कथित कमतर जाति के बच्चे को स्कूल के मटके से पानी पीने का अधिकार नहीं दिला पाए, इस देश में इस घटना पर कौन कौन गौरवान्वित महसूस करता है? किस किस की रूह नहीं कांपती इस तरह की घटनाओं से? कौन कौन अंदर ही अंदर खुश हो रहा है? अगर दुखी है तो किस तरह से वो इस पर दुखी है? कोई बताएगा??कतिथ कमतर आंकी जाने वाली जातियों को मूंछ नहीं रखनी, घोड़ी पर नहीं चढ़ना, पानी नहीं भरना, घर, मंदिर नहीं छूना, ये सब कायदे बनाने वाले और उसका पालन करने व कराने वाले आज के महापुरुष कौन हैं?
यदि कोई नहीं हैं तो राजस्थान के जालौन में इस पढ़े- लिखे कथित मास्टर ने इस अबौध बालक की हत्या क्यों की? क्यों इस शिक्षा के मंदिर को एक धार्मिक मंदिर में तब्दील किया गया है. कहाँ से पैदा हुआ ये कुबुद्धि, घटिया, दुष्ट, अमानवीय, मंदबुद्धि प्राणी, जो इंसान इंसान के बीच न सिर्फ फर्क करता है बल्कि सिर्फ इसलिए हत्या भी कर देता है क्योंकि किसी मासूम ने मटके का पानी छू लिया. देश भर में ही नहीं , पुरी दुनिया में हम, हमारी कौम जहाँ जहाँ पहुंची, वहाँ वहाँ हमने इस सड़े गले और बीमार दिमाग की उपज इस जाति व्यवस्था को पहुंचा कर बेडागर्क कर दिया. हम आज भी सुधरने को तैयार नहीं. सबसे बड़ा सवाल, हिन्दू, हिंदूत्व, हिन्दू धर्म हिन्दूराष्ट्र की बात करने वाले कथित राष्ट्वादियों को, उनके आकाओं को ऐसे वक्त क्यों सांप सुंघ जाता है? माना आजादी के 50 सालों तक कांग्रेस इस जाति व्यवस्था को जानबूझकर ढोकर लाई. इसलिए आज उसकी दुर्गति भी हुई और हो रही है. अभी और होगी.. होनी भी चाहिए.. मगर ये कथित सच्चे राष्ट्वादी, हिंदूवादी क्यों ऐसी विचलित कर देने वाली घटनाओं पर मौन साध लेते हैं? कहाँ है मोदी-योगी व जैनी बाबा? और संघ के आका? क्या ये सब चुप इसलिए कि उनका आने वाला कालखंड तो मनुस्मृति जैसा संविधान लागू करके और भी भयानक होने वाला है? इसलिए अभी हो रही घटनाएं तो उनके लिए छोटी मोटी ही है? क्योंकि अभी तो लोकतंत्र है, संविधान है तो आरोपी शिक्षक जेल जाएगा, फांसी पर लटकेगा. किंतु ये जातिवादी प्रवृत्ति समाज में रहे ही ना. ऐसी घटनाएं हो ही ना. ना किसी की जान जाए, न कोई जेल जाए, ऐसा महौल देश में कब और कौन निर्मित करेगा? जिस वसुदेव कुटुंबकम की हम बात करते हैं, वो अपने देश में लागू होगा? क्या एक ही विकल्प बचेगा, जैसे को तैसा? आज तेरी जात वाले ने मेरी जात वाले का शोषण किया और कल मेरी जात वाले तेरा शोषण करेंगे. मैं बार बार कहता हूँ, मारने वाला जातिवादी शिक्षक जन्म से छुआछूत का पालन करने वाला नहीं पैदा हुआ था, उसे ऐसा बनाया गया था इस समाज के द्वारा. उसके अंदर जातिवाद की इतनी नफरत भर दी गई कि पढ़ लिख जाने, शिक्षक बन जाने पर भी वो एक मासूम का हत्यारा बन बैठा और कानून के शिकंजे में फंसकर अपनी पुरी जिंदगी बर्बाद कर बैठा. ऐसे बहुतेरे हैं इस देश में. बल्कि कथित ऊंचे वाले शतप्रतिशत हैं. इसके लिए दोषी वह शिक्षक नहीं, बल्कि हमारा सदियों पुराना सड़ा गला, अपंग, दुर्गंध से भरा समाज और इस समाज के लोगों की गंदी मानसिकता है. ये मानसिकता समाज में चंद स्वार्थियों ने हजारों सालों में फैलाई और अब यह हमेशा जहर बनकर सामने आती है. इसका कड़ा मुकाबला न सिर्फ संविधान कर रहा है, बल्कि दमित-शोषित भी कर रहा है. इसका परिणाम टकराव भी है, जो आने वाली कही पीढ़ियों को फिर से तबाह बर्बाद करेगा. इसे संविधान का सही अमल करवा कर और समाज में व्यापक बदलाव की इबारत लिखकर संविधान की रक्षक सरकारें ही कर सकती है. ऐसा नहीं किया तो तिरंगा लहराने, नारे लगाने से कुछ नहीं होने वाला? राजस्थान में दलित मासूम को मटका छूने पर शिक्षक ने मार डाला, उत्तराखंड में आटा छूने पर शिक्षक ने ही दलित की हत्या कर दी, कुर्सी पर बैठकर खाना खाने और खाना छूने पर मौत के घाट उतार दिया. पुरा सिस्टम आरोपियों को बचाने में जुट गया, यही राष्ट्रीय शर्म का विषय है. और इस शर्म से हमारे तिरंगा का मान सम्मान भी घट रहा है. इसे बचाओ.. देश को बचाओ… इंसान और इंसानियत को समझौ, उसे बचाओ.. नेताओ.. ये जातिवाद ही सबे बड़ा आतंकवाद है.. इसे समझो..
(लेखक कांडीखाल ,उत्तराखंड
राष्ट्र सेवा दल के राष्ट्रीय महासचिव हैं)