सी.एस. राजपूत
जिन किसानों को केंद्र सरकार दिल्ली में घुसने नहीं दे रही है वही हजारों की संख्या में किसान दिल्ली के रामलीला मैदान में आ डटे हैं। वह भी पूरे तामझाम के साथ। ये आंदोलनकारी किसान बसों और अपनी निजी गाड़ियों से आये हैं और लगातार पहुंच रहे हैं। जानकारी यह मिल रही है कि प्रदर्शनकारी किसान लगभग एक हजार बसों और पांच सौ गाड़ियां में भरकर देश की राजधानी में पहुंच रही हैं। ऐसे में प्रश्न उठता है कि जिस किसान के नाम पर केंद्र सरकार बिदक जाती है, दिल्ली में घुसने नहीं देती है। जिन किसानों को ठिठुरती ठंड, भीषण गर्मी और बरसात में केंद्र सरकार ने 13 महीने तक दिल्ली के बॉर्डर पर बैठाये रखा वे किसान इतनी आसानी से देश की राजधानी में कैसे घुस गये ?
दरअसल यह संगठन सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी के मातृ संगठन आरएसएस समर्थित भारतीय किसान संघ है। ये किसान एमएसपी गारंटी कानून की मांग नहीं रहे हैं। ये किसान केंद्र सरकार पर अपने वादे से मुकरने का आरोप भी नहीं लगा रहे हंै। इन किसानों में कोई बड़ा किसान नेता भी नहीं है। ये किसान तो कृषि आदानों पर जीएसटी को समाप्त करने और किसान सम्मान निधि की राशि में वृद्धि की मांग कर रहे हैं। ऐसे में प्रश्न उठता है कि जिस आरएसएस की इच्छा बिना बीजेपी में एक पत्ता भी नहीं हिलता है। जो आरएसएस बीजेपी के सत्ता में आने पर प्रधानमंत्री बनाता है प्रदेशों के मुख्यमंत्री बनाता है उसके समर्थित संगठन को आखिर अपनी ही सरकार के खिलाफ आंदोलन क्यों करना पड़ रहा है। तो यह कहा जाए कि यह आंदोलन नहीं बल्कि मोदी सरकार से किसान संघ की नूरा कुश्ती है। नहीं तो एक हजार बसें और निजी गाड़ियां केंद्र सरकार ने दिल्ली में कैसे घुसने दी ? जबकि दूसरे संगठनों के किसानों को तो दिल्ली बार्डर पर ही रोक दिया जाता है। वैसे भी आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को निर्देश देकर कृषि अदानों पर जीएसटी समाप्त करा सकते हैं। किसानों की सम्मान निधि की राशि बढ़वा सकते हैं। इसका सीधा मतलब यह है कि केंद्र सरकार कृषि आदानों पर जीएसटी हटाने जा रही है और किसान सम्मान राशि बढ़ाने जा रही है। किसानों को भ्रमित करने के लिए आरएसएस और भाजपा ने खुद ही अपने संगठन से यह आंदोलन करवा रहे हैं।
दरअसल एमएसपी गारंटी कानून की मांग और केंद्र सरकार के अपने वादे से मुकरने के विरोध में संयुक्त किसान मोर्चा का बड़ा आंदोलन देश में होने वाला है। जैसा कि संयुक्त किसान मोर्चा में शामिल और मध्य प्रदेश की किसान संघर्ष समिति के अध्यक्ष डॉ. सुनीलम ने बताया कि इस बार का आंदोलन राज्यों के मुख्यालयों पर होगा। मतलब दिल्ली बार्डर पर न जुटकर किसान अपने-अपने प्रदेशों की सरकारों पर दबाव बनाएंगे। किसान आंदोलन के सामने झुकने वाली केंद्र सरकार भी जानती है कि किसानों का आंदोलन 2024 के चुनाव प्रभावित कर सकती है। इसलिए संयुक्त किसान मोर्चा के आंदोलन के प्रभाव को कम करने के लिए आरएसएस और भाजपा अपने संगठन से प्रदर्शन कराकर उनकी मांगें मानकर किसानों में उनकी मांगें मानने का संदेश देना चाहती है और संयुक्त किसान मोर्चा की छवि खराब कराना चाहती है।
वैसे भी किसान संघ उन नये कृषि कानूनों का समर्थन करता रहा है जिसके विरोध में देश के किसान १३ महीने तक दिल्ली के बार्डरों पर बैठे रहे और केंद्र सरकार को उनके आंदोलन के सामने झुकना पड़ा। विभिन्न मुद्दों को लेकर होने वाले किसान आंदोलनों से नदारद रहने वाले किसान संघ के इस तरह से अपनी ही सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करने को दूसरे किसान संगठन संदेह की दृष्टि से देख रहे हैं। तो क्या आरएसएस कह सकता है कि मोदी सरकार किसान विरोधी है। दरअसल भारतीय किसान संघ की अगुआई वाली इस रैली में 55,000 से अधिक किसानों के रामलीला मैदान में प्रदर्शन करने की सूचना मिल रही है। यह भी अपने आप में दिलचस्प है कि जो दिल्ली पुलिस किसानों को बॉर्डर पर ही रोक देती थी वह इनका स्वागत कर रही है। ट्रैफिक परिवर्तित कर रही है।