आप सदैव संपन्न ,प्रसन्न ,स्वस्थ रहें।
ईश्वर से हम एक दूजे के लिए ऐसा कहें।
हम सदैव ईश्वर की शरण में रहें
कर्मफल मानकर सुख -दुख को सहैं।
हताशा निराशा का ना हो बोझ।
अवसाद का भी ना हो कहीं खोज।
ईश्वरप्राणिधान की हो भावनाएं
चित्त की वृत्तियों को रोक पाऐं
आत्मा रूपी गंगा को पवित्र बनाएं।
योग के आठ अंगों को अपनाएं।
5 कोषों को समझें, समझाएं।
जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति, तुरिया चारों अवस्थाओं को लोगों को बताएं।
वेद का संदेश जन -जन तक पहुंचाएं।
जीवन में योग की विभूति को अपनाएं।
शरीर को आत्मा का साधन बनाएं।
ईश्वर,जीवऔर प्रकृति तीनों को अलग-अलग होना बतलाऐं।
आत्मरत होकर ध्यानावस्था में जाएं।
स्वाध्याय ,जप ,तप में मन को लगाएं।
‘दूरितानी दुराम’ को अपनाएं।
विश्व को आर्य बनाएं।
मात्रवतपर्दारेषु को अपनाएं
मूलाधार से ब्रह्मरंध्र में जाएं।
जन्म मरण से छूटकर कैवल्य को पाएं।
योग साधना से ईश्वर को पाएं।
कर्ता भोक्ता से दृष्टा हो जाएं।
वीतराग विशोका ज्योतिषमति हो जाएं।
विषय वासनाओं को दूर भगाएं।
सबीज समाधि से निर्बीज में जाएं।
निर्विचार से नैरमल्य में जाएं।
रज -तम को सत से दबाएं ।
बुद्धि से ऋतंभरा को पाएं।
त्रिविद्या के महत्व को समझाएं।
ज्ञान, कर्म, उपासना को अपनाएं।
अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष, अभिनिवेश।
पांचों क्लेश को दूर भगाएं।
क्लेश का मूल दृष्ट -अदृष्ट जन्मों के कर्मों की होती है वासुनाएं।
मूल के रहते जाति, आयु और भोग -फल बताएं।
परिणाम, संस्कार दुख से निवृत्ति पाएं।
गुण प्रवृत्ति को बढ़ाएं।
मूल प्रकृति के 24 तत्व होने का ज्ञान अपनाएं।
25 वा जीव 26 वा परमात्मा जगत का कारण बताएं।
ज्ञेय,हेय, प्राप्य, चिकिरषा शून्यावस्था को पाएं।
प्रकृति के तीनों गुणों से बाहर होकर
आत्मा की अपने स्वरूप में स्थिति को पहुंचाएं।
जन्म जन्मांतर के संस्कार चित्त से दूर भगाएं।
संस्कार के साक्षात करने का भाव चित्त में न लाएं।
स्वाध्याय से ईष्ट को पाएं।
पांच प्राण पर काबू पाएं।
ध्यान में ध्येय का प्रकाश पाएं।
पंचमहाभूतोंऔर भौतिक पदार्थ को अपने वश में लाएं।
प्राकाम्य,ईशित्व को पाएं।
सदा ईश्वर के गुण गाएं।
मेरी ऐसी शुभकामनाएं।
देवेंद्र सिंह आर्य एडवोकेट