भारत में अंतरिक्ष के लिये निजी क्षेत्र की भूमिका को सीमित रखा गया है। सिर्फ कम महत्त्वपूर्ण कार्यों के लिये ही निजी क्षेत्र की सेवाएँ ली जाती रहीं हैं, उपकरणों को बनाना और जोड़ना तथा परीक्षण जैसे महत्त्वपूर्ण कार्य अभी भी इसरो ही करता है। यह ध्यान देने योग्य है कि विश्व का सबसे बड़ा अंतरिक्ष क्षेत्र का संस्थान नासा भी निजी क्षेत्र की सहायता लेता रहा है। मौजूदा समय में भारत में नवीन अंतरिक्ष से संबंधित 20 से अधिक स्टार्ट-अप मौज़ूद हैं। इन उद्यमों का दृष्टिकोण पारंपरिक विक्रेता/आपूर्तिकर्त्ता मॉडल से भिन्न है। ये स्टार्ट-अप सीधे व्यापार से जुड़कर या सीधे उपभोक्ता से जुड़कर व्यापार की संभावनाएँ तलाश रहे हैं।
डॉ. सत्यवान सौरभ
सभ्यता की शुरुआत से ही मानव अंतरिक्ष की रोमांचक कल्पनाएँ करता रहा है। इन रोमांचक कल्पनाओं में अंतरिक्ष कभी अध्यात्म का विषय बना तो कभी कविताओं और दंत-कथाओं का। पारलौकिक वाद से प्रभावित होकर कभी मानव ने अपनी कल्पना के स्वर्ग और नरक अंतरिक्ष में स्थापित कर दिये तो कभी मानवतावाद के प्रभाव में आकर पृथ्वी को केंद्र में रखा और अंतरिक्ष को उसकी परिधि मान लिया। धीरे-धीरे जब सभ्यता और समझ विकसित हुई तो मानव ने अंतरिक्ष के रहस्यों को समझने के लिये प्रेक्षण यंत्र बनाएं, जिनमें दूरबीनें प्रमुख थीं।
इसके बाद प्रारम्भ हुआ विज्ञान के माध्यम से अंतरिक्ष को समझने का प्रयास। इस क्रम में आर्यभट्ट से लेकर गैलीलियो, कॉपरनिकस, भास्कर एवं न्यूटन तक प्रयास होते रहे। न्यूटन के बाद आधुनिक अंतरिक्ष विज्ञान का विकास हुआ, जो आज इतना परिपक्व हो गया है कि हम मानव को अंतरिक्ष में भेजने के साथ अंतरिक्ष पर्यटन एवं अंतरिक्ष कॉलोनियां बसाने की भी कल्पना करने लगे हैं।
2021 तक, स्पेस टेक एनालिटिक्स के अनुसार, भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उद्योग में छठा सबसे बड़ा खिलाड़ी है, जिसके पास दुनिया की अंतरिक्ष-तकनीक कंपनियों का 3.6% हिस्सा है। स्पेस-टेक इकोसिस्टम की सभी कंपनियों में यूएस की हिस्सेदारी 56.4% है। भारतीय अंतरिक्ष उद्योग का मूल्य 2019 में $7 बिलियन था और 2024 तक $50 बिलियन तक बढ़ने की आकांक्षा रखता है। देश की असाधारण विशेषता इसकी लागत-प्रभावशीलता है।
अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में भारत ने निरंतर प्रगति की है और कई मामलों में साबित कर दिखाया है कि दुनिया के किसी भी विकसित देश से वह पीछे नहीं है। अब कई देश भारत के प्रक्षेपण यान से अपने उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने लगे हैं, इनमें ऐसे देश भी शामिल हैं जिनके पास उपग्रह प्रक्षेपण की उन्नत तकनीक है। भारत द्वारा एक-साथ 104 उपग्रहों का प्रक्षेपण इस बात का ज्वलंत उदाहरण है। इस तरह उपग्रह प्रक्षेपण कारोबार में भारत तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। इसी प्रगति की एक उल्लेखनीय उपलब्धि मिशन शक्ति है।
अंतरिक्ष में निजी क्षेत्र की भूमिका बढ़ती मांग को पूरा कर सकती है, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का वार्षिक बजट ₹10,000 करोड़ ($1.45 बिलियन) को पार कर गया है और लगातार बढ़ रहा है। हालांकि, भारत में अंतरिक्ष-आधारित सेवाओं की मांग इसरो द्वारा प्रदान की जा सकने वाली सेवाओं से कहीं अधिक है। इसलिए, निजी क्षेत्र का निवेश महत्वपूर्ण है, जिसके लिए एक उपयुक्त नीतिगत वातावरण बनाने की आवश्यकता है।
बोल्स्टर इनोवेशन से निजी खिलाड़ी अंतरिक्ष-आधारित अनुप्रयोगों और सेवाओं के विकास के लिए आवश्यक इनोवेशन ला सकते हैं। इसके अतिरिक्त, इन सेवाओं की मांग दुनिया भर में और भारत में बढ़ रही है, अधिकांश क्षेत्रों में उपग्रह डेटा, इमेजरी और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जा रहा है।
उपग्रह आधारित सेवाओं का विस्तार करने के लिए निजी क्षेत्र लागत प्रभावी उत्पाद या सेवा के विकास की सुविधा प्रदान कर सकता है, इस प्रकार नए उपभोक्ताओं का बड़ा आधार बना सकता है। तकनीकी उन्नति से व्यावसायीकरण से बेहतर तकनीकों का भी विकास होगा जो महत्वपूर्ण हैं। यह अंतरिक्ष अन्वेषण गतिविधियों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसी कई अन्य तकनीकों के एकीकरण की अनुमति देगा। अंतरिक्ष गतिविधियों के अनुभव से निजी क्षेत्र अन्य क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी की भूमिका बढ़ा सकता है।
प्रत्येक लॉन्च में विभिन्न जोखिम होते हैं। निजी क्षेत्र लागत कारक के जोखिम को साझा करने में मदद करता है। विफल लागत वितरित की जाएगी। साथ ही निजी भागीदारी बढ़ने से उपलब्ध मानव पूंजी और दिमाग में बढ़ोतरी के कारण असफलताएं कम होंगी। सार्वजनिक संसाधन- भूमि, श्रम, पूंजी सीमित हैं। निजी क्षेत्र की भागीदारी से संसाधनों और प्रतिभा का एक नया पूल खुलेगा। यह अधिक धन लाएगा, और अंतरिक्ष अन्वेषण गतिविधियों में अनुभव करेगा।
एफडीआई सुधार से सरकार घरेलू और अंतरराष्ट्रीय फंडिंग दोनों को प्रोत्साहित करने के लिए इस क्षेत्र के लिए अधिक उदार एफडीआई नियमों पर विचार कर सकती है। एक स्वतंत्र नियामक बनाने से निजी खिलाड़ियों के बीच विश्वास पैदा करने में मदद मिल सकती है। निजी कंपनियों को प्रोत्साहन: इसरो की परीक्षण सुविधाओं को निजी क्षेत्र के लिए खोलने से लागत कम होगी और फर्मों को परिचालन अंतरिक्ष यान बनाने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा।
भारत के अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों का अनुपालन सुनिश्चित करना, सुरक्षा सुनिश्चित करना, देनदारियों और मानकीकरण को कवर करना। बेहतर विनियामक वातावरण का अर्थ होगा निजी फर्मों के लिए प्रवेश की कम बाधाएँ। इनक्यूबेटर और अनुदान कार्यक्रम जो इस प्रारंभिक आरएंडडी चरण के दौरान क्षेत्र का समर्थन करते हैं, उनमें बहुत सुधार होगा और उद्यमिता और निवेशक भागीदारी, साथ ही इन स्टार्टअप की सफलता दर में वृद्धि होगी।
भारत में अंतरिक्ष के लिये निजी क्षेत्र की भूमिका को सीमित रखा गया है। सिर्फ कम महत्त्वपूर्ण कार्यों के लिये ही निजी क्षेत्र की सेवाएँ ली जाती रहीं हैं। उपकरणों को बनाना और जोड़ना तथा परीक्षण जैसे महत्त्वपूर्ण कार्य अभी भी इसरो ही करता है। यह ध्यान देने योग्य है कि विश्व का सबसे बड़ा अंतरिक्ष क्षेत्र का संस्थान नासा भी निजी क्षेत्र की सहायता लेता रहा है। मौजूदा समय में भारत में नवीन अंतरिक्ष से संबंधित 20 से अधिक स्टार्ट-अप मौज़ूद हैं। इन उद्यमों का दृष्टिकोण पारंपरिक विक्रेता/आपूर्तिकर्त्ता मॉडल से भिन्न है। ये स्टार्ट-अप सीधे व्यापार से जुड़कर या सीधे उपभोक्ता से जुड़कर व्यापार की संभावनाएँ तलाश रहे हैं।
जिस प्रकार विभिन्न स्वतंत्र एप्प निर्माताओं को सीधे एंड्राइड और एप्पल प्लेटफार्म में प्रवेश की अनुमति दी गई उसने स्मार्ट फ़ोन के उपयोग में क्रांति को जन्म दिया। इसी प्रकार अंतरिक्ष के क्षेत्र में निजी क्षेत्र को स्थान देकर इस क्षेत्र की संभावनाओं में वृद्धि की जा सकती है तथा यह भारत के दृष्टिकोण से भी लाभकारी होगा।
इसलिए, इन-स्पेस और न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड की स्थापना जैसी निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करने की हालिया पहल अंतरिक्ष क्षेत्र की क्षमता का एहसास करने के लिए एक अच्छा कदम है, जिसे उपरोक्त सुझावों के माध्यम से और बढ़ावा दिया जाना चाहिए। यह भारत को अंतरिक्ष क्षेत्र में एक वैश्विक केंद्र बनने में भी सक्षम बना सकता है।
(लेखक रिसर्च स्कॉलर, कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट हैं)