दिल्ली मेयर पद के लिए उभर के आ रहे हैं हैं पांच विकल्प
सी.एस. राजपूत
Delhi MCD Mayor : भले ही बीजेपी ने हिमाचल प्रदेश की हार पचा ली हो पर दिल्ली एमसीडी चुनाव में केजरीवाल के सामने हार पचा नहीं पा रही है। यही वजह रही कि आदेश गुप्ता से बीजेपी के दिल्ली अध्यक्ष पद से इस्तीफा ले लिया गया । पंजाबी समाज से आने वाले वीरेंद्र सचदेवा को दिल्ली का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है। बीजेपी अब एमसीडी चुनाव में हार का बदला दिल्ली में अपना मेयर बनाकर लेना चाहती है। वैसे भी 7 दिसंबर को मतगणना में ही बीजेपी सांसद मनोज तिवारी ने कह दिया था कि मेयर तो उनका ही बनेगा। आदेश गुप्ता के साथ ही दिल्ली के कई बीजेपी नेताओं ने अपना मेयर बनाने का दावा किया है। इसके पीछे उन्होंने पार्षदों की आत्मा का हवाला दिया है। वैसे भी दिल्ली का मेयर अप्रैल तक बन सकता है। ऐसे में एक तो बीजेपी के पास समय बहुत है दूसरा एमसीडी चुनाव गुप्त रूप से होता है। ऐसे में बीजेपी मेयर बनाने में बड़ा खेल कर सकती है। अब देखना यह है कि 250 में से 104 सीटें जीतने वाली बीजेपी 134 सीटें जीतकर दिल्ली एमसीडी पर कब्ज़ा करने वाली आम आदमी को मेयर बनाने से कैसे रोकती है। यही वजह है कि बीजेपी और आम आदमी पार्टी में एक दूसरे के पार्षद तोड़ने के आरोप प्रत्यारोप का दौर शुरू हो चुका है।
दरअसल दिल्ली नगर निगम में आम आदमी पार्टी ने बंपर जीत हासिल की है। बहुमत के साथ आप आदमी पार्टी ने 250 में से 134 वार्डों में जीत मिली है, वहीं 15 सालों से एमसीडी पर राज करने वाली बीजेपी को केवल 104 सीटें मिली हैं। कांग्रेस 9 सीटों पर ही सिमट गई है। दिल्ली में अब बिसात मेयर चुनाव को लेकर बिछनी है। एमसीडी पर केजरीवाल का कब्ज़ा होने के बाद अब सबकी निगाहें दिल्ली के मेयर पद पर है। चारों और यही सवाल तैर रहा है कि अब मेयर किस पार्टी का और कौन होगा।
किसके लिए काम कर सकता कौन सा समीकरण है?
दरअसल 15 दिसंबर को राज्य चुनाव आयोग एमसीडी निर्वाचन की प्रक्रिया पूरी कर लेगा। नोटिफाई होने के बाद जीते हुए पार्षदों की सूची उपराज्यपाल के पास नए नगर निगम के गठन के लिए भेज दिए जाएंगे। अब देखना यह है कि मेयर चुनाव के लिए कौन से 5 विकल्प हो सकते हैं?
आम आदमी का मेयर
एमसीडी में हर बार ऐसा ही होता रहा है कि जिसके पास बहुमत या ज्यादा सीटें हों उसी का मेयर बनता है। मेयर के लिए सत्ताधारी दल अपने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को नामांकित करते हैं और बाकी पार्टी के पार्षद पार्टी लाइन के मुताबिक वोट करके अपना मेयर चुन लेते है। अगर बात आप की करें तो आप को बहुमत मिल चुका है। ऐसे में लगता है कि पार्टी को ज्यादा दिक्कत नहीं होने वाली है।
विधायक-सांसद के दम पर AAP का मेयर बने
दिल्ली में जो मेयर को चुनने की प्रक्रिया होती है, उसमें जो पार्षद वोट करते हैं उसमें विधायक और सांसद भी शामिल होते हैं, दिल्ली में कुल 70 विधायक हैं तो उनमें से 5 साल के लिए 14-14 विधायक एमसीडी के सदस्य के तौर पर नामित किए जाते है। यह करने का अधिकार दिल्ली के विधानसभा अध्यक्ष के पास होता है। इन 14 विधायकों में तीन साल के दौरान 12 विधायक आम आदमी पार्टी के होंगे तो दो विधायक बीजेपी जबकि बाकी बचे दो सालों में 13 विधायक आम आदमी पार्टी के होंगे सिर्फ एक विधायक बीजेपी का होगा। लोकसभा के दिल्ली से सातों सांसद और राज्यसभा से तीन सांसद भी वोट कर सकते हैं। यहां भी आप का पल्ला भारी है। संख्या की बात करें तो बीजेपी से 8 या 9 वोट आएंगे वहीं आप को 15 या 16 वोट मिल सकते हैं।
कन्फ्यूजन दूर तो BJP का मेयर होगा!
दिल्ली के मेयर पद के लिए अटकले काफी तेज चल रही हैं। बीजेपी ने जब से यह दावा किया है कि मेयर उनका होगा तब से नॉमिनेटेड यानि मनोनीत सदस्यों को लेकर अटकलें तेज हो गईं हैं। अगर बात 2012 की करें तो जब एमसीडी के तीन जोन नहीं हुआ करते थे तब केवल 10 नॉमिनेटेड सदस्य होते थे लेकिन उनके पास वोटिंग का हक़ नहीं हुआ करता था।
कांग्रेस की नेता ओनिका महरोत्रा ने हाईकोर्ट में वोटिंग अधिकार को लेकर केस किया और 2015 में एक फैसले में मनोनीत सदस्यों को वार्ड कमेटी में होने वाले चुनावों को लेकर वोटिंग का हक़ मिल गया। अभी दिल्ली नगर निगम तीन हिस्सों में बटा हुआ है और सभी हिस्सों में 10-10 सदस्य मनोनीत किए गए है. एमसीडी के बटवारे के बाद अभी यह साफ़ नहीं है कि केवल 10 नॉमिनेटेड सदस्य होंगें या फिर कुल तीस। ऐसे में गेम बीजेपी के पक्ष में भी जा सकता है।
कांग्रेस के पास 9 सीटें हैं, वहीं निर्दलियों को 3 सीटों पर विजय प्राप्त हुई हैं। ऐसे में यह दोनों अगर साथ आ जाते हैं तो यह दिल्ली में किंगमेकर बन सकते हैं। बीजेपी और आप दोनों ही चाहेगी कि इनके वोट अपनी-अपनी पार्टी के पक्ष में आ जाएं। अगर ये वोट किसी के पक्ष में नहीं भी जाता है तो वोटिंग की प्रक्रिया से अनुपस्थित होकर भी किसी पार्टी को परोक्ष तौर पर फायदा पहुंचाया जा सकता है। दूसरा विकल्प यह भी हो सकता है कि कांग्रेस अपना उम्मीदवार दे और बाकी दलों के कुछ पार्षदों से समर्थन की अपील करे। वैसे आम आदमी पार्टी द्वारा उसके पार्षद दौड़ने के प्रयास से कांग्रेस नाराज है। वैसे भी आम आदमी पार्टी की वजह से कांग्रेस को न केवल दिल्ली बल्कि पंजाब और गुजरात में भी नुक्सान उठाना पड़ा है। ऐसे में वह बीजेपी का साथ दे सकती है। खरीद फरोख्त के मामले में भी बीजेपी की स्थिति मजबूत है।
क्रॉस- वोटिंग
कांग्रेस-निर्दलीय बन सकते हैं किंगमेकर
क्रॉस-वोटिंग किसी भी सरकार के लिए खतरे की घंटी साबित होती है। मेयर के लिए पार्षद गुप्त मतदान देते हैं। यानि बैलट पेपर पर सभी मेयर उम्मीदवारों के नाम होते हैं और हर पार्षद बिना पार्टी के आधार पर अपने मनपसंद उम्मीदवार को बैलेट कक्ष में जाकर गुप्त रूप से मतदान करता है। किसने किसको वोट डाला यह नहीं पता चल सकता है। इसलिए अगर क्रॉस- वोटिंग होती भी है तो पता नहीं चल सकेगा।