राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से बीजेपी में बौखलाहट
सीएस राजपूत
केंद्र सरकार ने नेशनल मीडिया को अपने नियंत्रण में करने के बाद पर सोशल मीडिया पर भी अंकुश लगाने की योजना बनाई है। दरअसल नेशनल मीडिया तो केंद्र की महिमा मंडित करता ही रहता है। एक सोशल मीडिया ही है जहां केंद्र सरकार की आलोचना होती है। विपक्ष के आंदोलनों को नेशनल मीडिया तो कवरेज नहीं करता है पर सोशल मीडिया पर आंदोलनों के पक्ष में एक अच्छा माहौल बन रहा है। विशेषकर राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का।
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को लोगों के मिल रहे समर्थन से बीजेपी में बेचैनी है। ऐसे में केंद्र सरकार सोशल मीडिया पर हिंसा फ़ैलाने का आरोप लगाकर उस पर नियंत्रण करना चाहती है। दरअसल अभिशार शर्मा, प्रणय प्रसून वाजपेयी, अजीत अंजुम बाद एनडीटीवी से इस्तीफा देने के बाद रवीश कुमार ने भी केंद्र सरकार के खिलाफ बड़ा मोर्चा खोल रखा है। ऐसे में सोशल मीडिया पर अंकुश लगाने के बहाने सरकार अपने खिलाफ खबर चलाने वाले यूट्यूब चैनलों पर नियंत्रण करना चाहती है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या चैनलों या फिर यूट्यूब चैनलों के लिए जो गाइड लाइन हैं, उनसे अंकुश नहीं लग रहा है ?
केंद्र सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने सोमवार को सभी टेलीविजन चैनलों को महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों के खिलाफ हिंसा समेत दुर्घटनाओं, मौतों और हिंसा की ऐसी घटनाओं की रिपोर्टिंग के खिलाफ एक एडवाइजरी जारी की है, जो प्रसारण के तौर-तरीकों से समझौता करते हैं। मंत्रालय द्वारा टेलीविजन चैनलों द्वारा कई मामलों में कमी देखने के बाद यह एडवाइजरी जारी की गई है।
मंत्रालय ने कहा है कि टेलीविजन चैनलों ने लोगों के शवों और चारों ओर खून के छींटे, घायल व्यक्तियों के चित्र/वीडियो दिखाए हैं। इसके साथ ही महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों सहित लोगों को बेरहमी से पीटते हुए वीडियो भी दिखाए, जिसमें पीड़ित रो रहे हैं, बच्चे को पीटा जा रहा है। मंत्रालय ने कहा कि ऐसे वीडियो और छवियों पर सावधानी बरतने की जगह इनको लंबे शॉट्स के रूप में दिखाया गया और भयानक बना दिया गया। घटनाओं की रिपोर्टिंग का तरीका दर्शकों के लिए बेहद परेशान करने वाला है।
एडवाइजरी में विभिन्न श्रोताओं पर इस तरह की रिपोर्टिंग के प्रभाव पर प्रकाश डाला है। इसमें कहा गया है कि ऐसी खबरों का बच्चों पर विपरीत मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी पड़ सकता है। यह निजता के हनन का एक महत्वपूर्ण मुद्दा भी है, जो संभावित रूप से निंदनीय और हानिकारक हो सकता है। साथ ही कहा गया कि टेलीविजन एक ऐसा प्लेटफार्म है, जिसको घर, परिवार में लोग एक साथ बैठकर देखते हैं।
मंत्रालय ने यह भी देखा कि ज्यादातर मामलों में वीडियो सोशल मीडिया से लिए जा रहे हैं और प्रोग्राम कोड के अनुपालन और निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए संपादकीय और संशोधनों के बिना प्रसारित किए जा रहे हैं। मंत्रालय ने हाल में प्रकाशित सामग्री के उदाहरणों की सूची भी जारी की है। जिसमें प्रमुख निम्नवत है।
06-07-202: बिहार की राजधानी पटना के एक कोचिंग क्लास रूम में एक शिक्षक को 5 साल के बच्चे को बेरहमी से पिटाई करते तब तक दिखाया गया, जब तक कि वह बेहोश नहीं हो गया। क्लिप को म्यूट किए बिना चलाया गया था, जिसमें दया की भीख मांगते बच्चे की दर्दनाक चीखें सुनी जा सकती हैं। इसे 09 मिनट से अधिक समय तक दिखाया गया था।
ऐसे में प्रश्न यह भी उठता है कि इसे तरह के मामले दबा दिए जाते हैं। जिससे हिंसा बढ़ने की और आशंका होती है। मीडिया तो सरकार और प्रभावशाली लोगों के लिए काम कर रही है। ऐसे में एक सोशल मीडिया ही है जिसका थोड़ा बहुत डर लोगों में है। मतलब हिंसा के नाम पर केंद्र सरकार सोशल मीडिया पर अंकुश लगाने की योजना बना रही है। केंद्र सरकार लोकसभा या फिर विधानसभाओं में होने वाली झड़प पर कोई एडवाइजरी क्यों नहीं जारी करती है ? केंद्रीय राज्य गृह मंत्री अजय मिश्र के किसानों पर धमकी भरे बयान को हिंसा वाला बयान क्यों नहीं मानती ?
इस तरह के प्रसारण पर चिंता जताते हुए और इसमें शामिल व्यापक जनहित को ध्यान में रखते हुए और बुजुर्गों, महिलाओं और बच्चों सहित टेलीविजन चैनलों के दर्शकों की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए, मंत्रालय ने सभी निजी टेलीविजन चैनलों को दृढ़ता से सलाह दी है कि वे अपने सिस्टम और रिपोर्टिंग घटनाओं की प्रथाओं को ध्यान में रखें।