सहारा इंडिया के साथ ही केंद्र भी दबाव में है निवेशकों के देशभर में चल रहे आंदोलन से
सी.एस. राजपूत
इसे निवेशकों और जमाकर्ताओं का जीत की ओर बढ़ना कहें या फिर सहारा के लिए आफत कि सहारा भुगतान को लेकर चल रहे आंदोलन का असर न केवल सहारा प्रबंधन पर पड़ रहा है बल्कि सरकार भी कहीं न कहीं इसके दबाव में आ रही यही । 15 नवम्बर को देशभर में हुए आंदोलन के बाद 17-18 दिसंबर को उत्तर प्रदेश के अयोध्या शहर में हुई ऑल इंडिया जन आंदोलन संघर्ष न्याय मोर्चा की बैठक में लिए गए निर्णय से सहारा प्रबंधन में हड़कंप है। उधर जप तप के राष्ट्रीय संयोजक मदन लाल आज़ाद दूसरी भारत यात्रा पर निकल कर अलग से सहारा के साथ दूसरी ठगी कंपनियों की नाक में दम करे हुए हैं। वह बड्स एक्ट के तहत ठगी कंपनियों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं। ऐसे में सुब्रत रॉय का प्रयास है कि किसी तरह से यह आंदोलन ठंडा पड़ जाए।
दिल्ली जोन के नोएडा ऑफिस पर दिए गए आंदोलनकारियों के अल्टीमेटम से न केवल सहारा प्रबंधन सोचने को मजबूर है बल्कि पुलिस प्रशासन की समझ में कुछ नहीं आ रहा है। इसकी बड़ी वजह यह है कि नोएडा ऑफिस पर आंदोलन करने वाले निवेशक और जमाकर्ता उस क्षेत्र पश्चिमी उत्तर से हैं जिसमें भारतीय किसान यूनियन का बड़ा प्रभाव है। बिहार में ऑल इंडिया जन आंदोलन संघर्ष न्याय मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष मोहित कुमार और राष्ट्रीय प्रवक्ता अनिल सिंह ने चौरतफा मोर्चा खोल रखा है। झारखंड राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नागेंद्र कुशवाहा और प्रदेश अध्यक्ष प्रभात कुमार ने सहारा इंडिया के साथ ही सरकार के खिलाफ लड़ाई लड़ने का ऐलान कर दिया है।
जिस तरह से पूरे देश में चल रहे सहारा इंडिया समेत दूसरी ठगी कंपनियों के खिलाफ आंदोलन में केंद्र सरकार पर काबिज बीजेपी के खिलाफ बिगुल फूंक दिया गया है। साथ ही लोकसभा में वित्तमंत्री सीतारमण ने सहारा के पैसे न देने की स्थिति में सरकार के पैसे देने की बात कही है, ऐसे लग रहा है कि केंद्र सरकार भी सहारा मामले में गंभीर है। इसकी बड़ी वजह है कि सुब्रत रॉय के मामले में बीजेपी पर चौतरफा अंगुली उठने लगी है। ऐसे में मामले को ठंडा करने के लिए किसान कानून वापस लेने की तर्ज पर सहारा भुगतान मामले में प्रधानमंत्री कोई बड़ी पहल कर सकते हैं। जैसे उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले तीन कृषि कानून वापस गए थे ऐसे ही सहारा मामले में पीएम मोदी खुछ बड़ा खेल कर सकते हैं।
दरअसल सहारा नोएडा जोन जिस ऑफिस में है वह सहारा मीडिया का ऑफिस है। सहारा मीडिया का उच्च प्रबंधन यहां पर ही बैठता है। खुद सुब्रत राय के छोटे भाई जयब्रत राय भी यहां पर ही बैठते हैं। आंदोलनकारियों के 15 दिन का अल्टीमेटम खत्म होने के बाद प्रबंधन में हड़कंप है। इस हड़कंप का बड़ा कारण यह है कि नोएडा ऑफिस पर जुटने वाले अधिकतर निवेशक और जमाकर्ता पश्चिमी उत्तर प्रदेश के थे। तीन नये किसान कानूनों के मामले में जिस किसान आंदोलन ने केंद्र सरकार को झुकने के लिए विवश किया था उसमें अधिकतर किसान पश्चिमी उत्तर प्रदेश के थे। खुद यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेश टिकैत और किसान आंदोलन के चेहरा प्रवक्ता राकेश टिकैत भी इसी क्षेत्र मुजफ्फरनगर से हैं।
यह भी जमीनी सच्चाई है कि 1857 की क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोगों को अड़ियल माना जाता है और सहारा निवेशकों की लड़ाई लड़ रहे ऑल इंडिया जन आंदोलन संघर्ष न्याय मोर्चा के पदाधिकारी इस बार ट्रैक्टर ट्राली लेकर आने की बात कहकर गए हैं और गेट तोड़कर अंदर घुसने की चेतावनी भी आंदोलनकारियों ने दी है। यही वजह है कि सहारा प्रबंधन किसी भी सूरत में नोएडा ऑफिस पर बड़ा आंदोलन होने नहीं देना चाहता है।
विश्वसनीय सूत्रों से पता चला है कि पूरे देश में एफआईआर दर्ज होने तथा बड़े स्तर पर आंदोलन होने से सहारा के चेयरमैन सुब्रत राय पूरी तरह से हिल चुके हैं। उनके सलाहकारों और सिपहसालारों ने भी उन्हें इस आफत से निपटने के लिए बड़े प्रयास करने का सुझाव दिया है। इस समय उन्हें प्रधानमंत्री ही बड़ा सहारा समझ में आ रहा है। जानकारी यह भी मिली रही है कि सुब्रत राय निवेशकों के आंदोलन से निपटने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कोई पहल कराने का अनुरोध कर सकते हैं। वैसे भी गुजरात के मुख्यमंत्री रहते सुब्रत रॉय कई बार उनसे मिले थे। सुब्रत राय का प्रयास है कि केंद्र सरकार की ओर भुगतान की एक समय सीमा निर्धारित कर दी जाए। क्योंकि सुब्रत राय कई बार भुगतान की डेट दे चुके हैं पर कुछ हुआ नहीं। वह तो कई बार निवेशकों का पाई-पाई चुकाने की भी बात कर चुके हैं। सेबी से पैसा मिलने की कोई उम्मीद दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रहे है। उधर केंद्र सरकार पर भी सहारा मामले में बड़ा दबाव है। चारों ओर केंद्र सरकार पर सुब्रत राय को बचाने के आरोप लग रहे हैं। देखने की बात यह है कि सुब्रत राय के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के अलावा गृहमंत्री अमित शाह से भी अच्छे संबंध बताये जाते हैं। खुद अमित शाह, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भी सहारा मामले में भुगतान कराने की बात कर चुके हैं।
दरअसल देश में भले ही कितनी ठगी कंपनियों के निवेशक आंदोलन कर रहे हों पर सहारा इंडिया का मामला बड़ा मामला माना जा रहा है। सहारा इंडिया पर निवेशकों का २ लाख करोड़ से ऊपर का बकाया भुगतान बताया जा रहा है। विभिन्न प्रदेशों से बीजेपी को सहारा आंदोलन की वजह से 2024 का आम चुनाव प्रभावित होने का फीडबैक मिल रहा है। मध्य प्रदेश के बीजेपी प्रवक्ता ने तो केंद्र सरकार से सहारा निवेशकों का पैसा दिलवाने और सुब्रत राय समेत दूसरे निदेशकों पर कार्रवाई करने की अपील की थी। बिहार में बीजेपी नेता सुशील मोदी भी सहारा निवेशकों का मामला उठा चुके हैं। ऐसे में वाहवाही लूटने में माहिर माने जाने वाले प्रधानमंत्री कुछ ऐसा खेल कर सकते हैं कि ऐसा कुछ हो जाए कि सहारा के खिलाफ चल रहे आंदोलन का असर बीजेपी की छवि और आम चुनाव पर न पड़े। वैसे भी नोटबंदी के बाद सहारा इंडिया का मामला थोड़ा मजबूत हुआ है। नोटबंदी में सहारा ने काफी काले धन को सफेद धन में बदल लिया है। सुब्रत राय फिर से सहारा को संवारने में लग गये हैं।