पर्यटन स्थल की जगह तीर्थ स्थल घोषित करने की मांग कर रहा है जैन समाज
सी.एस. राजपूत
तीर्थक्षेत्र सम्मेद शिखरजी को पर्यटन स्थल घोषित कर हेमंत सोरेन सरकार ने जैन समाज की भावनाओं से खिलवाड़ किया है। सरकार के इस क्षेत्र को पर्यटन स्थल को घोषित करते ही जैन समाज भड़क गया है और समाज के लोग के लोग सड़क पर उतरकर इसका विरोध जता रहे हैं। विरोध जताने का बड़ा विरोध है कि जैन समाज के लिए यह जगह पवित्र स्थल माना जाता है। समाज के लोगों को अंदेशा है कि इसके पर्यटन स्थल घोषित होने से यहां पर पर्यटक शराब का सेवन भी करेंगे। साथ ही दूसरे ऐब करने का अंदेशा जैन समाज को है। जैनियों के भड़कने का बड़ा कारण यह भी है क्योंकि हाल ही में हैं यहां पर से शराब पीते हुए एक युवक का वीडियो वायरल हुआ था।
दरअसल शिखर जी को पर्यटन स्थल घोषित कर हेमंत सोरेन सरकार ने जैन समाज की आस्था पर गहरी चोट की है। जैन समाज के लोग, श्वेताम्बर हों या दिगंबर सभी इस बात से नाराज हैं कि झारखण्ड सरकार ने उनके सबसे पवित्र ‘तीर्थक्षेत्र’ सम्मेद शिखरजी को पर्यटन स्थल घोषित कर दिया है। जैन समाज में इस फैसले से बहुत आक्रोश देखा जा रहा है।
दरअसल 2019 में केंद्र सरकार ने एक नोटिफिकेशन जारी किया था, जिसमें सम्मेद शिखरजी को इको-टूरिज्म प्लेस के तौर पर चिन्हित किया गया था। इसके बाद झारखंड सरकार के मुख्य सचिव ने भी नोटिफिकेशन जारी करके इस पर मुहर लगा दी थी तब तो जैन समाज ने इस पर कोई खास ध्यान नहीं दिया था पर अब पूरा जैन समाज शिखर जी के पर्यटन स्थल घोषित करने का विरोध कर रहा है। जैन समाज की मांग है कि सम्मेद शिखरजी को पर्यटन स्थल की जगह तीर्थस्थल घोषित किया जाये।
जमीनी हकीकत यह है कि जैन मत के अनुसार सम्मेद शिखरजी का कण-कण अत्यंत पवित्र है। जैन धर्म में इसकी मान्यता तीर्थराज के रूप में है। सम्मेद शिखरजी तीर्थ स्थल झारखंड में गिरिडीह के पास पारसनाथ की पहाड़ियों में स्थित है। यह झारखंड का सबसे ऊंचा पहाड़ है जिसे मैदान का हिमालय भी कहा जाता है। दरअसल सम्मेद शिखरजी को जैन समाज का सबसे पवित्र तीर्थ स्थल माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि जैन समाज के 24 में से 20 तीर्थंकरों को यहीं ही मोक्ष प्राप्त हुआ था। ऐसा भी माना जाता है कि जैन समुदाय के अनुसार शिखरजी से भगवान पारसनाथ भी मोक्ष को प्राप्त हुए थे और उनके चरण आज भी सम्मेद शिखरजी की सबसे बड़ी टोक पर स्थित है।
इस स्थान को दिगंबर जैन के साथ ही श्वेताम्बर जैन भी बेहद पवित्र मानते हैं। जैन समाज के लोग सम्मेद शिखरजी के दर्शन करते हैं और 27 किलोमीटर के क्षेत्र में फैले सैकड़ों मंदिरों में जाकर पूजा करते हैं। पवित्र पहाड़ी पर स्थित कई मंदिर 2000 वर्ष पुराने हैं। यहां पर किसी भी तरह की असामाजिक गतिविधि उस पवित्र स्थान की पवित्रता और जैनियों की आस्था को ठेस पहुंचाती है। ऐसे में यह भी प्रश्न उठता है कि आखिरकार झारखंड सरकार शिखरजी पर क्यों विवाद खड़ा कर रही है ?
जैन समाज के शिखर जी के मामले पर बवाल का बड़ा कारण यह भी है कुछ समय पूर्व सम्मेद शिखरजी से एक विडियो वायरल हुआ था, जिसमें कुछ युवा वहां शराब पी रहे थे। इस घटना ने पूरे जैन समाज की आस्था को चोट पहुंचा दी है। इसे संयोग ही कहा जाएगा कि ठीक इसी समय झारखंड सरकार के मुख्य सचिव ने भी नोटिफिकेशन जारी कर सम्मेद शिखरजी को पर्यटन क्षेत्र घोषित करने की सिफारिश केंद्र सरकार को भेज दी। इसका बड़ा असर यह हुआ है कि पहले से ही आहत बैठे जैन समुदाय के घावों पर झारखंड सरकार ने नमक छिड़कने का काम किया है। जैन समुदाय को अंदेशा है कि यदि सम्मेद शिखरजी को पर्यटन स्थल घोषित किया गया तो यहां मांस, मदिरा का सेवन होगा जो जैनियों की मान्यता के अनुसार गलत है।
झारखंड सरकार के इस फैसले का असर यह हुआ है कि दिल्ली, मुंबई, इंदौर, अहमदाबाद में जैन समुदाय के लाखों लोग सड़कों पर उतर आये हैं। यह भी जमीनी सच्चाई है कि शत्रुंजय पर्वत को सम्मेद शिखरजी के बाद जैनियों का यह दूसरा सबसे पवित्र स्थल माना जाता है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि पर्यटन स्थल घोषित होने से क्या होगा? किसी भी पवित्र धार्मिक स्थल की मान्यता उस धर्म या पंथ को मानने वालों में सर्वाधिक होती है तो फिर उनकी भावनाओं से खिलवाड़ क्यों ? यह भी जगजाहिर है कि उस पवित्र नगरी में मांस, मदिरा आदि तामसिक वस्तुओं का सेवन वर्जित होता है। कई तीर्थ स्थल आम जनमानस की मान्यताओं से पवित्र स्थल घोषित होते हैं और यहाँ के 2-5 किलोमीटर के दायरे में मांस, मदिरा का क्रय-विक्रय नहीं होता। झारखंड सरकार को यह भी समझ लेना चाहिए कि जब यह यहां पर पर्यटक आएंगे तो फिर शराब का सेवन भी होगा। जब बिना पर्यटन स्थल घोषित किये यहां पर कुछ युवकों ने शराब पी गई तो फिर अब पर्यटन स्थल घोषित होने पर तो शराब पी ही जाएगी।
दरअसल कुछ नगरों को सरकारें पवित्र नगरी घोषित करती हैं और इनके नियम-कायदे स्थानीय मान्यताओं को देखकर बनाये जाते हैं। मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार ने 2004 से 2013 तक सर्वप्रथम राज्य के 17 शहरों को पवित्र नगरी घोषित किया था जिनमें उज्जैन, अमरकंटक, महेश्वर, ओरछा, ओंकारेश्वर, मंडला, मुलताई, दतिया, जबलपुर, चित्रकूट, मैहर, सलकनपुर, मंडलेश्वर, पशुपतिनाथ मंदिर मंदसौर, ग्वारीघाट जबलपुर एवं बरमान शामिल हैं। इनमें अधिकांश हिन्दू धार्मिक स्थल हैं किन्तु सलकनपुर एवं बरमान जैनियों के भी आस्था केंद्र हैं। हालांकि राजनीतिक दल पवित्र स्थलों/नगरी घोषित करने के मामले में आस्था को भुनाते रहे हैं क्योंकि इन 17 शहरों में मांस, मदिरा का सेवन बदस्तूर जारी है।
जैन समाज की मांग है कि सम्मेद शिखरजी को पर्यटन स्थल के बजाय पवित्र तीर्थ स्थल घोषित किया जाये ताकि जैन समाज की भावनाओं को ठेस न पहुंचे और वृहद् समाज इस तीर्थ के संरक्षण में आगे आये। यदि सम्मेद शिखरजी पवित्र तीर्थ स्थल घोषित होता है तो यहाँ मांस, मदिरा इत्यादि का क्रय-विक्रय बंद होगा। वर्तमान में सम्मेद शिखरजी के आसपास तमाम ऐसे होटल बनते जा रहे हैं जहाँ मांस, मदिरा के सेवन पर कोई रोकटोक नहीं है। फिर वे ही यात्री शिखरजी की यात्रा करते हैं, जिससे जैन समाज आहत होता है। लोग भी समझें पवित्र स्थलों की महिमा हम एक समाज में रहते हैं और सामाजिक व धार्मिक मान्यताओं को मानने से उससे हमारी एकरूपता बनी रहती है।
यह भी जमीनी हकीकत है कि पिछले कुछ वर्षों से यह देखने में आया है कि लोगों ने धार्मिक तीर्थाटन को भी पिकनिक बना लिया है। मंदिर के प्रांगण में नाचते हुए वीडियो बनाना, पालतू पशुओं को मंदिर के गर्भगृह तक ले जाना, उल्टी-सीधी भाव-भंगिमाओं के चित्र खींचना, मंदिर के पार मदिरा के सेवन करना, मांस का भक्षण करना आदि कुछ ऐसे कृत्य हैं जो धार्मिक आस्थाओं पर चोट करते हैं। गुरुद्वारों में मोबाइल लेकर जाना इसलिए प्रतिबंधित हुआ क्योंकि युवाओं ने इतने भद्दे-भद्दे वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डाले, जिसे सिख समाज गुरु की बेअदबी माना। उज्जैन स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग में भी अब मोबाइल प्रतिबंधित है।
जैन समाज के कई मंदिरों में चमड़े का सामान भीतर ले जाना भी प्रतिबंधित है। चूँकि यह आस्था का मामला है। धार्मिक स्थलों पर जाकर अपने आराध्य को पूजना और पिकनिक मनाना, दोनों में जमीन-आसमान का अंतर है। ऐसे में लोगों को भी धार्मिक स्थलों की आस्थाओं का मान रखना चाहिये ताकि आपके पवित्र स्थल, आपके आने के बाद भी पवित्र रहें। सम्मेद शिखरजी पर यदि शराब पीते युवकों का वीडियो वायरल नहीं हुआ होता तो संभवतः यह मामला इतना तूल नहीं पकड़ता। सरकारें भी समुदायों की धार्मिक मान्यताओं एवं भावनाओं का मान रखें ताकि किसी भी समुदाय को अपनी बात मनवाने के लिए सड़कों पर न उतरना पड़े।