Friday, November 8, 2024
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Budget 2023 : अर्थव्यवस्था सीढ़ियों से ऊपर जाती है-लिफ्ट से नहीं

“लिफ्ट से केवल कर्ज ऊपर उठता है”

संजय कनौजिया

यदि हम चाणक्य और कोटल्या के अर्थशास्त्र को समझेंगे तो, उनके अर्थशास्त्र के स्वरुप के मूल सिद्धांत को समझ सकेंगे.. समाज शिक्षा और स्वास्थ्य से अपने मूल स्वरुप पर आता है..वो सड़के बना देने, पुल बना देने, से या केवल हाइवे बना देने भर से नहीं..जरुरत इनकी भी है, लेकिन पहले मनुष्यता के मौलिक अधिकार को समझने की है..हम किस दिशा में नई पीढ़ी को ले जाना चाहते है जो भारत के भविष्य के सिपाही हैं क्या उन्हें केवल सिर्फ, पिज्जा-कोरियर सप्लाई करने वाले नौजवान या देश के मुख्या का ये गैर-जिम्मेदार रूप से कहना कि पकोड़े तलना भी एक रोजगार है..सोचिये जिस काम में केवल 8000/ रुपए ही मिलते हों, क्या एक शिक्षित नौजवान अपने घर का घरेलू गैस सिलेंडर भर सकता है ? कैसे इतनी ही आमदनी में वो भला अपने घर का राशन भरवा सकता है ? वो कैसे अपने दैनिक दिनचर्या के यातायात में अपने मुकाम का सफर पूरा कर सकता है ?..जबकि वर्तमान सरकार को कभी 35 से 40 रुपए लीटर का पैट्रोल-डीजल महंगा लगता था, तो आज उन्ही के शासन में पूरे देश में 100/ रुपया पार कर गया..आज देश के सभी सरकारी संस्थानों को बेचा जा रहा है और गरीब को केवल 5 किलो राशन पर जिन्दा रखा जा रहा है और उस पर अहसान जताया जा रहा है..क्या सिर्फ गरीब के केवल वोट की खातिर..?
देश की जनता केवल इसलिए वोट देकर किसी का चयन करती है, कि देश की बिगड़ी हुई स्थिति को, उसका चुना हुआ व्यक्तित्व सुधार पर ला सके, इसलिए नहीं की लोकलुभावन और लच्छेदार भाषण देकर और राष्ट्र की सबसे महत्वपूर्ण महापंचयत की कुर्सी पर बैठकर वो और उसके सहयोगी, ये कहें कि हमारे वायदे केवल जुमले थे..इसका मतलब तो ये हुआ कि कुछ फिरंगियों ने लूटा तो अब कुछ फिरंगियों के मुखबर लूटेंगे, जनता जाए भाड़ में..!
समझने वाले यदि समझ सकें तो समझ ले..यदि समझ आए तो, उन्हें वर्ष-2004 के उस कार्येकाल को ध्यान में लाना होगा..जब अटल सरकार के बाद देश का सबसे बड़ा संस्थान, जिसका जाल समुन्द्र की भांति देश में काबिज़ है और उसी जाल को कहते है “भारतीय रेलवे”.. वह घाटे में आने के कारण बिकने को तैयार खड़ी थी और नई सरकार के आगे गंभीर चुनौती..लेकिन जनता द्वारा चुनी हुई नई, “यूँ.पी.ए”. सरकार की संरक्षक “श्री मति सोनिया गांधी जी” के विवेक द्वारा निर्णय ने, देश के दो अर्थशास्त्रीयों को ज्वलंत समस्या से निपटने पर भरोसा जताया..एक थे अर्थशास्त्र के शिक्षित “सरदार मनमोहन सिंह साहब” और दूसरे थे ज़मीनी हक़ीक़त के शिक्षित एवं अर्थशास्त्री “शेरे-ऐ-हिंदुस्तान श्री लालू प्रसाद यादव साहब”..!
लालू जी के अर्थशास्त्र की समझ ने “चाणक्य व कोटल्या” की दर्शाई दिशा को तथा “अंबेडकर और लोहिया” के मार्ग का अनुसरण करते हुए..बिकने के कगार पर खड़ी रेल को बचाया ही नहीं बल्कि उसे अपनी सूझ-बूझ से 90 हज़ार करोड़ रुपए के लाभ पर ला कर दिखाया था..रेल को इतने मुनाफे पर ला दिया कि रेलवे के हर कर्मचारी को दिवाली के अवसर पर दुगना बोनस मिलने लगा था..उनके कार्यकाल में एक रुपया तक रेल यात्रियों के लिए नहीं बढ़ाया गया..हर श्रेणी में रोजगार के अवसर उपलब्ध होने लगे, खासकर गरीब वर्ग को ध्यान में रखते हुए उन्होंने चतुर्थ श्रेणी में नियम के तहत हर जाति-धर्म के नोजवानो को भर्ती हेतू होने सरल राह निकाली..नई-नई रेल देश को भेंट करी, गरीब रथयात्रा तो उसी भेंट का सफल प्रयोग रही..जिसमे गरीब भी वातानुकूलित यात्रा का सस्ती दर में आनंद लेता हुआ अपने सफ़र को अंजाम देने लगा था..अनगिनित महत्वपूर्ण रेल परियोजनाओं को पास किया था..मणिपुर तक रेल का सफर हो सके उस परियोजना को पास कर 7 सो, करोड़ रुपया पास करवाया था..प्लास्टिक को रेल से मुक्त करवाने वाले लालू ही तो थे..लालू जी द्वारा रेल को स्वर्णिम बनाने के लिए देश के महामहिम राष्ट्रपति जी भी भूरी-भूरी प्रशंसा किये बगैर नहीं थकते थे..कुछ ऐसे ही काम करते आएं है श्री लालू जी, और इस तरह के काम करने का निर्देशन रहा है “लालू जी” का..जिसे अब संवैधानिक नियम के तहत “श्री तेजस्वी जी” अंजाम दे रहें हैं..!
हम सब “श्री लालू यादव साहब” के पूर्ण स्वस्थ्य होकर लौटने का इंतज़ार कर रहे है और पूर्ण विशवास है कि वे भारतीय सरजमीं पर जल्द कदम रखते ही..इस केंद्र में बैठी बेढंगी सरकार को अर्थशास्त्र का पाठ पढ़ाएंगे..!!

हम सब “बजट वर्ष-2023”, की कठोर शब्दों में निंदा करते हैं…!!

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