अडानी इंटरप्राइजेज और हिंडनबर्ग रिपोर्ट मामले में सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर, इस जनहित याचिका में नैथन एंडरसन के खिलाफ कार्रवाई करते हुए अडानी ग्रुप में निवेश करने वाली कंपनियों को मुआवजे देने की मांग की गई है
सीएस राजपूत
वाह मान गये देश की व्यवस्था को। अब निजी कंपनियों के पक्ष में भी जनहित याचिका दायर की जाने लगी हैं। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट जारी होने के बाद कंपनी के खिलाफ कोर्ट में जाने की धमकी देने वाला अडानी ग्रुप तो कोर्ट नहीं गया। अडानी ग्रुप के इस रिपोर्ट को देश पर हमला बोलने पर भी केंद्र सरकार ने भी मामले को नहीं नहीं उठाया। वह भी तब जब 7 दिन में अडानी समूह को इस रिपोर्ट की वजह से 9.22 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हो गया है और एलआईसी के 18000 करोड़ रुपये डूबने की बात सामने आ रही है। सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है। दिलचस्प बात यह है कि यह जनहित याचिका अडानी ग्रुप के खिलाफ नहीं बल्कि हिंडनबर्ग रिसर्च कंपनी के खिलाफ दायर की गई है। इस जनहित याचिका में अडानी इंटरप्राइजेज में निवेश करने वाली कंपनियों को मुआवजा देने की मांग की गई है। मतलब याचिकाकर्ता ने अडानी समूह में निवेश करने वाले लोगों को मुआवजे की मांग नहीं की है बल्कि निवेश करने वाली कंपनियों को मुआवजा देने की मांग की है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि यह जनहित याचिका दायर कराई गई है या फिर दायर की गई है। कहीं यह सब अडानी ग्रुप और केंद्र सरकार का खेल तो नहीं है। क्योंकि जिस तरह से केंद्र सरकार ने सब कुछ ताक पर रखकर अडानी ग्रुप को आगे बढ़ाया है। समूह के इस संकट में ग्रुप की छवि निखारने के लिए सुप्रीम कोर्ट से अडानी ग्रुप में निवेश करने वाली कंपनियों को मुआवजा भी दिलवा दे।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट में दायर एक जनहित याचिका में एंडरसन को शार्ट सेलर बताया गया है और अडानी समूह की कंपनियों के निवेशकों को धोखा देने के लिए उसके खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई है। मतलब एमएल शर्मा के अनुसार यदि कोई कंपनी, मीडिया हाउस या पत्रकार अडानी ग्रुप की खामियों को लेकर रिपोर्ट जारी करेगा उस पर धोखाधड़ी का केस बन जाएगा। ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या जनहित याचिका दायर करने वाले वकील एमएल शर्मा ने यह याचिका जनहित में दायर की है या फिर पूंजीपति हित में। जनहित में तो एक जनहित याचिका अडानी समूह के खिलाफ बनती है कि इस ग्रुप ने असलियत छिपाकर निवेशकों को धोखे में रखा है। यदि नहीं तो हिंडनबर्ग रिसर्च कंपनी के खिलाफ अडानी ग्रुप कोर्ट क्यों नहीं गया ? या फिर याचिकाकर्ता को सहारा इंडिया, बाइक बोट जैसे ठगी कंपनियों के खिलाफ देशभर में चल रहा निवेशकों को आंदोलन नहीं दिखाई दिया ?
देशभर में जो ठगी कंपनियों ने लाखों करोड़ रुपये लोगों को ठग रखा है उन कंपनियों के खिलाफ किसी वकील ने जनहित याचिका दायर करने की जहमत क्यों नहीं उठाई ? कहीं एक जनहित याचिका दायर करने के पीछे करोड़ों और अरबों रुपये कमाने का खेल तो नहीं है ?
यह अपने आप में हास्यास्पद है कि इस जनहित याचिका में एंडरसन पर कार्रवाई करते हुए अडानी इंटरप्राइजेज में निवेशकों को मुआवजा देने की मांग की गई है। मतलब अडानी इंटरप्राइजेज में कंपनियों ने ही निवेश कर रखा है। अडानी ग्रुप में कंपनियों ने लगाया है न आम लोगों ने। आम लोगों ने उन कंपनियों में लगाया है जिन्होंने अडानी ग्रुप में पैसा लगा रखा है। जैसे एलआईसी, एसबीआई और कोडक बैंक। मतलब कंपनियों को नुकसान होने पर भी जनहित याचिका दायर होने लगी।
यह अपने आप में प्रश्न है कि यदि एंडरसन की कंपनी हिंडनबर्ग ने गलत रिपोर्ट जारी की है तो अडानी ग्रुप या फिर सरकार इसके खिलाफ कोर्ट में क्यों नहीं जाते ? वैसे भी अडानी ग्रुप ने हिंडनबर्ग की रिपोर्ट को देश पर हमला बताया है। ऐसे में तो सरकार का कंपनी के खिलाफ खड़ा होना बनता भी है। ऐसे में प्रश्न यह भी उठता है कि ऐसा अडानी ग्रुप में क्या कमी है कि एक रिपोर्ट पर लाखों करोड़ का नुकसान हो गया। या फिर हिंडनबर्ग रिसर्च कंपनी दुनिया के किसी भी कंपनी पर रिपोर्ट जारी कर देगी तो उसको भारी नुकसान हो जाएगा ? ऐसे तो हिंडनबर्ग दुनिया की किसी भी कंपनी को नुकसान कर सकता है।
यदि बात जनहित याचिका की करें तो प्रख्यात सोशल एक्टिविस्ट स्वामी अग्निवेश दावा करते थे कि जब उन्होंने हरियाणा के फरीदाबाद में पत्थर खदान मजदूरों की लड़ाई लड़ी तो उन्होंने उन मजदूरों को बंधुआ मजदूर करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट में उनकी लड़ाई लड़ी थी तो संसाधनों और पैसे के अभाव में उन्होंने एक पोस्टकार्ड पर उन मजदूरों की समस्याओं को लिखकर सुप्रीम कोर्ट में भेजा था। सुप्रीम कोर्ट ने उस पोस्टकार्ड को ही जनहित याचिका माना था। तभी से जनहित याचिका दायर करने का मामला सुप्रीम कोर्ट में शुरू हुआ। उस जनहित याचिका के बल पर ही फरीदाबाद के सेक्टर 143ए में 6 एकड़ जमीन पर उन मजदूरों को पुनर्वास कराया गया है।
यह कैसी जनहित याचिका है कि पूंजीपतियों के हित में दायर की गई है। जनहित याचिका जनता से जुड़े हितों को लेकर दायर की जाती है न कि कारपोरेट कंपनियों को लेकर। हां यदि किसी कॉरपोरेट कंपनी ने यदि अपने कर्मचारियों, निवेशकों या किसी जनता से जुड़े किसी व्यक्ति से ठगी की है तो तब जनहित याचिका बनती है। बीएल शर्मा द्वारा दायर की गई यह जनहित याचिका अडानी इंटरप्राइजेज और उसमें निवेश करने वाली कंपनियों के पक्ष में दायर की गई है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या कंपनियों के हितों से जुड़ा मामला भी जनहित में आता है ?
दरअसल जब 24 जनवरी को हिंडनबर्ग की रिपोर्ट जारी हुई तो अडानी ग्रुप में इस रिपोर्ट को देश पर हमला करार देते हुए कोर्ट में जाने की धमकी दी थी। रिपोर्ट को जारी हुए सात दिन हो चुके हैं। 9.22 लाख करोड़ का अडानी ग्रुप को नुकसान भी हो चुका है पर अडानी ग्रुप कोर्ट तो नहीं गया है। हिंडनबर्ग के 88 सवालों के जवाब में भी राष्ट्रवाद की गाथा एंडरसन को भेजने की बात सामने आ रही है। तो फिर यह माना जाए कि इस जनहित याचिका ने यह साबित कर दिया कि अब गरीब आदमी के लिए नहीं बल्कि अमीर आदमी के लिए जनहित याचिका दायर की जाएंगी। दरअसल जनहित याचिका के मामले में यह माना जाता है कि यदि कोई व्यक्ति कोर्ट का खर्च वहन नहीं कर सकता है तो उसके लिए कोर्ट ने एक विशेष सुविधा दे रखी है कि उसके पक्ष में एक जनहित याचिका दायर की जा सकती है। यह भी माना जाता है कि यदि कोई मामला जनहित से जुड़ा हुआ हो तो जनहित याचिका दायर की जाती है।
इस मामले में जनहित तो अडानी ग्रुप से जुड़ा है। क्योंकि लोगों ने निवेश अडानी ग्रुप में किया था न कि हिंडनबर्ग रिसर्च कंपनी में ? क्या हिंडनबर्ग रिसर्च कंपनी देश की दूसरी किसी कंपनी को लेकर रिपोर्ट जारी कर देगी तो उसे भी अडानी ग्रुप की तरह नुकसान हो जाएगा ? या फिर भारत सरकार के खिलाफ रिपोर्ट जारी कर दे तो देश को नुकसान हो जाएगा ? यदि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट गलत है तो अडानी ग्रुप या फिर सरकार को कोर्ट जाना चाहिए। मामले पर जांच बैठानी चाहिए। यह अपने आप में संदेह के घेरे में आने वाला मामला है कि न तो अडानी ग्रुप कोर्ट गया और न ही सरकार ने कोई जांच बैठाई बल्कि एक जनहित याचिका दायर की गई। मतलब जहां केंद्र सरकार को अपने विवेक से यह मामला अंतरराष्ट्रीय स्तर उठानी चाहिए था वहीं एक जनहित याचिका दायर कराई गई है।
दरअसल अडानी इंटरप्राइजेज का मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। मीडिया के अनुसार शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में यूएस बेस्ट फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च के खिलाफ जनहित याचिका दाखिल की गई है। सुप्रीम कोर्ट में हिंडनबर्ग के संस्थापक नैथन एंडरसन के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की गई है। दरअसल हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट के कारण अडानी ग्रुप के शेयरों में भारी गिरावट आई है। इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के अनुसार शुक्रवार को अधिवक्ता एमएल शर्मा की ओर से सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है। इस पीआईएल में अडानी ग्रुप की कंपनियों में निवेश करने वाले लोगों को मुआवजा देने की भी मांग की गई है। अडानी इंटरप्राइजेज मामले में सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका एंडरसन को शॉर्ट सेलर बताती है और अडानी समूह की कंपनियों के निर्दोष निवेशकों को धोखा देने के लिए उसके खिलाफ कार्रवाई की मांग करती है। दरअसल हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद अडानी ग्रुप की कंपनियों के शेयरों में गत सात दिन में लगातार गिरावट जारी है। भारतीय शेयर बाजार में अडानी एंटरप्राइजेज का शेयर 20 फीसदी में भी नहीं हैं।
दरअसल अडानी इंटरप्राइजेज के शेयर शुक्रवार को 35 फीसद तक गिर गये। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के डाटा पर नजर डालें तो हिंडनबर्ग की रिपोर्ट सामने आने के बाद 2 फरवरी तक अडानी ग्रुप की 9 कंपनियों के कुल 9.22 लाख करोड़ रुपये डूब गये हैं। 25 जनवरी को हिंडनबर्ग ने अडानी ग्रुप के संबंध में एक रिपोर्ट जारी की थी। रिपोर्ट के निष्कर्ष में 88 प्रश्नों को शामिल किया था। रिपोर्ट में दावा किया गया था कि अडानी ग्रुप दशकों से शेयरों के हेरफेर और अकाउंट की धोखाधड़ी में शामिल है।
देखने की बात यह भी है कि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद से अब तक उद्योगपति गौतम अडानी की नेटवर्थ को बड़ा झटका लगा है। जहां कुछ दिन पहले वह दुनिया के अमीरों की लिस्ट में तीसरे नंबर पर काबिज थे अब ये टॉप 20 में भी नहीं हैं 22 वे नंबर पर पहुंच गये हैं।
यह तो तब है जब हाल ही में अडानी ग्रुप के चेयरमैन गौतम अडानी ने अपनी कंपनी की स्थिरता को बरकरार रहने की बात करते हुए किसी बड़े अंदेशे से इनकार किया है और दूसरी ओर एलआईसी के साथ ही एसबीआई ने अपने पैसे को सुरक्षित बताया है। जब अडानी ग्रुप में निवेश करने वाली कंपनियों का पैसा सुरक्षित है तो फिर यह जनहित याचिका क्यों ?