दिल्ली, पंजाब और गुजरात में 50-55 सीटों पर चुनाव लड़ने की है आप संयोजक की रणनीति
कांग्रेस और बीजेपी की टक्कर वाले राज्यों में दमखम लगाने की सोच रहे केजरीवाल
चरण सिंह राजपूत
नई दिल्ली। दिल्ली और पंजाब में सरकार बनाने के बाद अब केजरीवाल की निगाहें लोकसभा चुनाव पर हैं। क्योंकि केजरीवाल ने विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का वोटबैंक कब्ज़ा कर जीत हासिल की है तो अब लोकसभा चुनाव में भी वह कांग्रेस को ब्लैकमेल कर अधिक से अधिक सीटों पर लड़कर भारी जीत हासिल करना चाहते हैं।
दिल्ली में दबाव बनवाकर केजरीवाल ने उनका विरोध कर रहे अनिल सिंह चौधरी को उनके पद से हटवाकर अपने पैरोकार अरविंदर सिंह लवली को दिल्ली का प्रदेश अध्यक्ष बनाने को मजबूर कर दिया। मतलब दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल के हिसाब से सीटों का बंटवारा होगा। ऐसे ही केजरीवाल अब पंजाब से अपने सिपहसालारों से दबाव बनवा रहे हैं। कांग्रेस के पंजाब अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा और विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा के नखरे देखाने पर भगवंत मान ने स्पष्ट कर दिया है कि आप अकेले लड़ना भी जानती है और जितना भी साथ ही जीतकर सरकार चलाना भी। उधर उनके मंत्री अनमोल गगन मान ने तो यहां तक कह दिया है कि आप का कांग्रेस से कोई गठबंधन नहीं होगा। हम 13 सीटों पर अकेले लड़ेंगे। मतलब केजरीवाल टीम कांग्रेस पर अधिक से अधिक सीटें देने का दबाव बनाने में लगी है। ऐसे ही गुजरात में भी आप अधिक से अधिक सीटें लेने की फ़िराक में है।
दरअसल केजरीवाल की समझ में आ चुका है कि आज की तारीख में कांग्रेस को जितना दबाओगे उतना दबेगी। अरविन्द केजरीवाल की रणनीति है कि दिल्ली, पंजाब, गुजरात और दूसरे राज्यों में लगभग 50-55 सीटों लड़ने को आप को मिल जाये। 25-30 सीटों को जीतने का टारगेट लेकर केजरीवाल चल रहे हैं। ऐसे में वह कांग्रेस से जमकर पंगा ले रहे हैं। अरविन्द केजरीवाल के दोनों हाथों में लड्डू हैं। यदि उनका गठबंधन होता है तो अच्छी बात यदि नहीं होता है तो वह कांग्रेस पर ठीकरा फोड़ अकेले भी चुनाव लड़ लेंगे।
यह केजरीवाल की दबाव की ही रणनीति है कि विपक्ष की पहली मीटिंग जब पटना में हुई तो उन्होंने मीटिंग से पहले ही अध्यादेश को लेकर दबाव बनाना शुरू कर दिया था। जब मीटिंग में उनको गंभीरता से नहीं लिया गया तो वह बीच मीटिंग से ही दिल्ली वापस आ गए थे। बाद में कांग्रेस के अध्यादेश मामले में केजरीवाल का साथ देने वादा करने पर भी वह बेंगलुरु की मीटिंग में गए।
दरअसल अन्ना आंदोलन के दम पर पार्टी बनाने वाले केजरीवाल ने बहुत जल्द न केवल दिल्ली बल्कि पंजाब पर भी कब्ज़ा कर लिया। उसी रफ़्तार से वह लोकसभा में भी अपना रुतबा कायम करना चाहते हैं।
देखने की बात यह भी है कि केजरीवाल की बात न मानी गई तो वह ममता बनर्जी, अखिलेश यादव और केसीआर को लेकर तीसरे मोर्चे की कवायद में भी जुट सकते हैं।