लोकसभा चुनाव में बीजेपी का खेल बिगाड़ सकती है जातिगत गणना
देश की राजनीति में बीजेपी के हिन्दू मुस्लिम एजेंडे को पीछे धकेल सकता है अगड़ा-पिछड़ा मुद्दा
चरण सिंह राजपूत
बिहार में जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी करने के बाद देश की राजनीति में उबाल आ गया है। 27.12 फीसद पिछड़ा और 36.12 फीसद अत्यंत पिछड़ा वर्ग का आंकड़ा आने के बाद न केवल बिहार बल्कि उत्तर प्रदेश के साथ ही उत्तर भारत के दूसरे राज्यों में अगड़ा और पिछड़ा माहौल बनने के पूरे आसार हो गए हैं। राम मंदिर और सनातन धर्म के नाम पर जो बीजेपी 2024 का लोकसभा चुनाव हिन्दू मुस्लिम करने की फ़िराक में है वह खेल लालू प्रसाद और नीतीश कुमार ने गड़बड़ा दिया है। उधर एससी एसटी 19.65 फीसद होने के बाद दलित राजनीति अलग से गरमा गई है।
अब पिछड़ा, अत्यंत पिछड़ा और एससी एसटी के हिस्सेदारी मांगने के लिए आंदोलनों की भूमिका बन रही है। यदि जातिगत गणना का यह मामला देशभर में सुलग गया तो फिर बीजेपी को लेने के देने पड़ जाएंगे।
मतलब पिछड़ा, अत्यंत पिछड़ा और दलित वोटबैंक सवर्ण जातियों के 15.52 को लेकर अपना गणित लगाने लगे हैं। अब जितनी संख्या उतनी ही भागेदारी की मांग उठने लगी है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी जितनी संख्या उतनी ही भागेदारी की बात कर बीजेपी की धड़कनें बढ़ा दी हैं। हालांकि बीजेपी नेता सुशील मोदी बीजेपी और जदयू राज में इस जातिगत गणना की बात कर रहे हैं और बीजेपी अध्यक्ष सम्राट चौधरी जातिगत गणना की पैरवी करते हुए इसमें सुधार की बात कर रहे हैं। उधर हिन्दू मुस्लिम का चुनाव बनाने में माहिर माने जाने वाले पीएम मोदी जाति और परिवारवाद की राजनीति पर हमला बोल कांग्रेस के साथ ही क्षेत्रीय दलों को टारगेट कर रहे हैं।
दरअसल बिहार में जातिगत गणना के बाद विपक्ष का इंडिया गठबंधन अगड़ा-पिछड़ा तो बीजेपी हिन्दू मुस्लिम चुनाव बनाने में लग गई है। यदि चुनाव अगड़ा-पिछड़ा हो गया तो न केवल बिहार बल्कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़ के साथ ही देश के दूसरे राज्यों में इंडिया का पलड़ा भारी हो सकता है।
हालांकि मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँच गया है और 6 अक्टूबर को मामले की सुनवाई होनी है। वैसे भी बिहार में जाति आधारित जनगणना का काम आसान नहीं रहा है। इस तरह की जनगणना को अदालत में भी चुनौती दी गई और यह मामला पटना हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा।बिहार के जातिगत आंकड़े जारी होने के बाद राहुल ने जो ट्वीट किया है उसके देश की राजनीति में महत्वपूर्ण माना जा रहा है। उन्होंने सोशल प्लेटफार्म एक्स पर लिखा है, “बिहार की जातिगत जनगणना से पता चला है कि वहां ओबीसी + एससी + एसटी 84% हैं. केंद्र सरकार के 90 सचिवों में सिर्फ़ 3 ओबीसी हैं, जो भारत का मात्र 5% बजट संभालते हैं. इसलिए, भारत के जातिगत आंकड़े जानना ज़रूरी है. जितनी आबादी, उतना हक़ ये हमारा प्रण है.”
दरअसल, इसी साल जनवरी में जाति आधारित जनगणना के पहले चरण में राज्य भर के मकानों की सूची तैयार की गई थी। इसमें मकान के मुखिया का नाम दर्ज किया गया था और साथ में मकान या भवन को एक नंबर दिया गया था।
इसमें क़रीब दो करोड़ 59 लाख़ परिवारों की सूची तैयार गई थी। कास्ट सर्वे का दूसरा चरण 15 अप्रैल से शुरू होकर 15 मई को ख़त्म होना था, लेकिन मई के पहले सप्ताह में पटना हाई कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी।
पटना हाई कोर्ट ने अगस्त में यह रोक हटाई थी और जातिगत जनगणना का काम आगे बढ़ा था। लेकिन हाई कोर्ट के आदेश के बाद यह मामला दोबारा सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। पहली बार में सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को पटना हाई कोर्ट जाने को कहा था। यह मामला अब भी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, हालांकि कोर्ट ने इसपर किसी भी तरह की रोक लगाने से इनकार कर दिया था।