दिल्ली दर्पण
नीलम शुक्ला देवांगन
नई दिल्ली, 31 जुलाई 2024। पिछले कुछ दिनों से दिल्ली हादसों का शहर बन चुकी है। पहले करेंट लगने से युवक की मौत और फिर ओल्ड राजेंद्र नगर के बेसमेंट में पानी भरने से तीन छात्रों की मौत ने इतना तो तय कर दिया है कि दिल्ली दुर्घटनाओं के लिहाज से सुरक्षित नहीं है। पर दिल्ली को इस हालत तक पहुंचाने का जिम्मेदार कौन है? इसी की पड़ताल करती रिपोर्ट –
एक बच्चे का ऊंची उड़ान का सपना डूब जाता है, एक दंपति का आठ साल बाद माता पिता बनने का सपना जल जाता है और बचे हुए लोग रो रोकर सूख चुकी आंखों से जमीन को एकटक देखते रहते हैं जीवन भर , बिना कुछ भी भूले। दिल्ली ही है या सारा भारत है ये मालूम नहीं। हादसों का शहर बनी दिल्ली में कुछ भी सुरक्षित नहीं है। कहने को तो दिल्ली देश की राजधानी है पर इसकी चरमराती व्यवस्था इसे किसी और ओर धकेल रही है।
दिल्ली में पिछले दस सालों से सड़कें न तो बन रही हैं न व्यवस्थित ढंग से दुरस्त की जा रही हैं। सीवर सिर्फ किसी कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में ही फटेगा। जरूरी नहीं है या सिर्फ पानी की ही समस्या आयेगी जिससे खतरा होगा ये भी जरूरी नहीं है। वैसे वर्षों का अवलोकन था कि यहां मानसून में तमाम मरम्मत और निर्माण के काम बंद कर दिए जाते थे लेकिन अब तो ये सारे काम मानसून में ही किए जाए और अब तो महीनों तक काम चलता रहता है। यहां तक कि सालों के लिए सड़कों को खोद कर छोड़ दिया जाता है। सड़कों में गड्ढे हैं या गड्ढों में सड़कें पता ही नहीं चलता।
हैरानी इस बात पर भी है कि दिल्ली की मुफ्तखोर जनता को कोई फर्क नहीं पड़ता कि बारिश के महीनों में उनके घर और दुकान के सामने गड्ढे खोदकर छोड़ दिए जाते हैं। सीवर की सफाई में निकली गाद बारिश के पानी के साथ वापस सीवर में ही बह जाती है। जितने दावे बारिश शुरू होने से पहले किए जाते हैं, हर साल पहली बारिश में ही धुल जाते हैं। और खास बात यह है कि किसी को कुछ भी फर्क नहीं पड़ता है। यहां तक कि विपक्ष के लिए भी ये कोई मुद्दा नहीं है।
दिल्ली में ये हाल है तो बाकी जगह क्या होगा सोचकर डर लगता है। जिम्मेदार पूरा प्रशासन है। अधिकारी से लेकर मंत्री तक। सब करप्ट हैं। तभी तो राजधानी दिल्ली का ऐसा हाल है। शासन प्रशासन अधिकारी मंत्री सब दोषी हैं इसके।
ओल्ड राजेन्द्रनगर हादसे पर दिल्ली उच्च न्यायायल ने भी अधिकारियों से कहा कि आप बहुमंजिला इमारतों को अनुमति दे रहे हैं लेकिन वहाँ उचित नाली की व्यवस्था नहीं है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने अधिकारियों पर कटाक्ष करते हुए कहा कि उन्हें बुनियादी ढांचे का निर्माण करने की जरूरत है। साथ ही न्यायालय ने कहा कि अजीब जांच चल रही है, पुलिस कार चलाने वाले राहगीर के खिलाफ कार्रवाई कर रही है लेकिन एमसीडी अधिकारियों के खिलाफ नहीं।
हादसे हुए हैं, हादसे होते रहेंगे। कभी किसी हॉस्पिटल में आग लगेगी तो कभी किसी कोचिंग सेंटर में बच्चे डूबेंगे, कभी कहीं कोई करेंट से मर जायेगा और कभी कहीं कोई राह चलता पानी में डूब जायेगा। और बनेगी सिर्फ अखबार के तीसरे पेज की खबर। उससे ज्यादा कुछ होगा तो मुआवजा दे दिया जाएगा। जिनका कुल खर्चा भी आम लोगो से वसूला जाएगा। इतने पीआईएल दाखिल होते हैं अदालत में आखिर इन जरूरी मुद्दों पर कब पीआईएल दाखिल होगा या जरा जरा सी बात पर संज्ञान लेने वाली खुद कोर्ट कब संज्ञान लेगी? यक्ष प्रश्न है जिसका जवाब ढूढना जरूरी है वरना हादसे यूं ही होते रहेंगे और हम अपनों को खोते रहेंगे।