नई दिल्ली, 10 जुलाई 2024। सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं के गुजारा भत्ते पर बहुत बड़ा फैसला दिया है। मुस्लिम महिलाओं को भी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत राहत मांगने की हकदार है। याद रहे ऐसे ही फैसले को पलटने के लिए राजीव गांधी सरकार ने 1986 में कानून लाया गया था।
मुस्लिम तलाकशुदा महिला भी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत गुजारे भत्ते के लिए अपने पति के खिलाफ याचिका दायर कर सकती है। बीते दिनों तेलंगाना हाईकोर्ट ने अब्दुल समद को अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया था। इस आदेश के विरोध में अब्दुल समद ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की। अब्दुल ने अपनी याचिका में कहा कि उनकी पत्नी सीआरपीसी की धारा 125 के अंतर्गत उनसे गुजारा भत्ता मांगने की हकदार नहीं है।
देश की सर्वोच्च अदालत ने तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को भी आपराधिक दंड संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ते की मांग करने का हकदार बताया है। सीआरपीसी की धारा 125 में पत्नी संतान और माता-पिता के भरण-पोषण को लेकर जानकारी दी गई है।
राजीव गांधी सरकार ने शाह बानो केस में सुप्रीम कोर्ट के इसी तरह के आदेश को पलटने के लिए नया कानून बना दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम महिला (तलाक संबंधी अधिकारों का संरक्षण) कानून, 1986 की सीमाओं को तोड़ते हुए कहा कि महिला चाहे किसी भी धर्म की हो, उसे शादी टूटने पर पति से गुजारा-भत्ता मांगने का हक है। शाह बानो नाम की मुस्लिम महिला को जब सुप्रीम कोर्ट ने पति से गुजारा भत्ता लेने का हकदार बताया था तब मुस्लिम समुदाय के आक्रोश के आगे झुककर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने संसद से उपर्युक्त कानून पारित करवा दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि यह कानून हर धर्म की महिलाओं के लिए लागू होता है।
कोर्ट का सुप्रीम फैसला, अब मुस्लिम महिला भी पति से मांग सकती हैं गुजारा भत्ता
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